अमेजन प्राइम (Amazon Prime Video) पर रिलीज हुई वेब सीरीज ‘पंचायत 2’ (Panchaayat 2) इन दिनों अपने सादगी भरे और असरदार कंटेंट के चलते खूब तारीफें पा रही है. इस सीरीज में ‘फुलेरा’ नाम के गांव के जीवन को इस अंदाज से दिखाया गया है कि आप देश के किसी भी गांव की सूरत इस फुलेरा गांव की इस कहानी में देख सकते हैं. इसी सीरीज पर ब्लॉगर रवि रंजन ने भी अपनी बात रखी है. पढ़िए उनका ब्लॉग-
OTT प्लेटफॉर्म में आने वाली अनेकों वेब सीरीज की बाड़ के बीच में अमेजॉन प्राइम द्वारा लाया गया पंचायत सीजन 2 किसी शांति और भावना के द्वीप की तरह है. अश्लीलता, गाली गलौज, हिंसा से लबरेज वेब सीरीज के दौर में यूपी के पूर्वी भाग को साधारण ग्रामीण परिवेश को दिखाती पंचायत के दोनों भाग ने सिद्ध किया है की जबरदस्त कंटेंट, बेहतरीन अभिनय, बढ़िया पृष्टभूमि किसी एक खास ग्रूप की जागीर नहीं है. भारत की आत्मा गांवों मे बसती है और सही मायने में पंचायत आपको उसकी सैर करवाती है. हंसाते गुदगुदाते कहानी आपको आखिरी एपिसोड में आपका गला भी रुंध देती है. काफी समय से मैं इसकी प्रतीक्षा कर रहा था और सबसे अच्छी बात यह रही की मेरी प्रतीक्षा को इस वेब सीरीज ने बिलकुल भी व्यर्थ नहीं जाने दिया.
आम तौर पर देखा जाता है कि किसी वेब सीरीज के दूसरे सीजन में पहले जैसा आनंद नही रहता है. लेकिन जितनी सराहना इसके पहले सीजन की हुई थी, दूसरे सीजन को भी जनता का इतना ही प्यार मिल रहा है. यह कार्यक्रम मुझे व्यक्तिगत रूप से इस लिए भाया क्योंकि इसको देख कर लगा जैसे ये मेरी और मेरे जैसे करोड़ों पूर्वांचलियों की कहानी है जो भले ही आज अपने ग्राम, कस्बे, शहर से अलग कहीं रह रहे हों, लेकिन ये गांव और कस्बा उनसे अलग नहीं रह पाया है और आज भी उनके अंदर मौजूद है. फुलेरा गांव के वासी, उसकी मासूमियत, उनकी नोक झोंक, खट्टे-मीठे अनुभव सब कुछ देख कर लगता है जैसे ये हमारे अपने गांव की बात हो रही है. OTT प्लेटफॉर्म के आ जाने से पंचायत और गुल्लक जैसे कार्यक्रम आज हमारे बीच आ पा रहे हैं जो छोटे शहर और मध्यम वर्ग के लोगों, उनकी परेशानियों, उनकी खुशियों, उनकी अपेक्षाओं और उनके सपनों को वेब दुनिया में एक नया स्थान दे रहे हैं. इस वेब सिरीज़ में एक डायलॉग बहुत सटीक है जिस गांव के लोगों को शहर वाले 2 कौड़ी का गांव वाला, हम लोगों को गंवार समझते हैं, सबसे ज्यादा गांव के लड़के ही सेना में जाते हैं. देश की सीमाओं पर शहीद होते हैं ऐसी बात अक्सर कही जाती है.
फिल्म का कंटेंट लिखने वाले- निर्देशक और अभिनय करने वाले ने बखूबी गांव-कस्बे और छोटे शहर की बारीकियों को ध्यान में रखा है, जैसे हर गांव में किसी एक विशेष व्यक्ति होता है तब उनका नामकरण भी किया जाता है. कैसे भूषण किरदार का नाम “बनराकस” था वैसे ही सचिव जी में सहायक का एक डायलॉग जो खासकर पूर्वी यूपी से लेकर बिहार में बोलते है “हुमच के एक थप्पड़ मारना चाहिए था” ये कंटेंट वही लिख सकता है जिसने बारीकी से शोध किया हो. जैसे रिंकी का जन्मदिन मनाना उसका चित्रण ठीक वैसा ही किया गया है जैसा गाँव-देहात में किया मनाया जाता है.
पहले सीजन में परमेश्वर किरदार की बेटी की शादी थी उस शादी कार्यक्रम का चित्रण भी वैसे ही किया गया है, जैसे शहरों में तो शादियों की व्यवस्था का इंतजाम पूरा केटरिंग वाले के जिम्मे होता है, लेकिन गांव इत्यादि में आज भी शादी में पूरे मोहल्ले को जिम्मेदारी निभानी पड़ती है. इसका सुंदर और प्यारा सा चित्रण पंचायत में किया है, जो आपको हंसाता भी है और अपने गांव की ऐसी ही शादी की याद दिलाते हुए आपकी पलकों पर नमी भी छोड़ जाता है. ऐसा ही अत्यंत मार्मिक चित्रण उस सीन में देखने को मिलता है जब सरहद की सुरक्षा में लगा हुआ सैनिक वीरगति को प्राप्त कर ताबूत में अपने गांव वापस आता है. उस समय हर गांव वासी के हृदय में उमड़ती हुई पीड़ा को किस तरह से दिखाया गया है, उसके लिए निर्माता और निर्देशक दोनो की प्रशंसा की जानी चाहिए. ऐसी उम्मीद करता हूं की इस तरह की मानवीय संवेदनाओं और सांस्कृतिक मूल्यों को सबके सामने एक कहानी के रूप में लाने वाली अन्य वेब सीरीज भी लाई जाएंगी. गाली, अश्लीलता, फूहड़ता, धर्म और संस्कृति का उपहास उड़ाने से अच्छी वेब सीरीज बनती है, इस बात को पंचायत और गुल्लक जैसे कार्यक्रम गलत साबित कर रहे हैं. पंचायत जैसी वेब सीरीज बनाने वालों को धन्यवाद कम से कम एक ऐसी वेब सीरीज है पंचायत जिसे परिवार सहित देख सकते हैं.
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