Jind By Election Result: बीजेपी खोलेगी खाता या कोई जाट बनाएगा रिकॉर्ड?

जींद में कौन तोड़ेगा सियासी रिकॉर्ड?
जाटलैंड कहे जाने वाले जींद (हरियाणा) में बीजेपी कभी चुनाव नहीं जीती है, दूसरी ओर 1972 के बाद कोई जाट यहां विधायक नहीं बना है, उप चुनाव का परिणाम एक रिकॉर्ड जरूर तोड़ेगा.
- News18Hindi
- Last Updated: January 31, 2019, 6:02 AM IST
जींद उप चुनाव का परिणाम आज आएगा. मनोहरलाल खट्टर सरकार में यह पहला उपचुनाव है. इसका परिणाम न सिर्फ हरियाणा की भविष्य की राजनीति तय करेगा बल्कि इससे प्रदेश में लोकसभा चुनाव को लेकर भी मतदाताओं के मूड का पता चलेगा. चुनाव में जीत-हार कांग्रेस के राष्ट्रीय प्रवक्ता रणदीप सुरजेवाला, सीएम मनोहरलाल खट्टर और दो नई पार्टियों का भविष्य तय करेंगे. पता चलेगा कि दुष्यंत चौटाला की जन नायक जनता पार्टी और बीजेपी के बागी सांसद राजकुमार सैनी की लोकतंत्र सुरक्षा पार्टी कितने पानी में है.
जाट बहुल इस सीट पर 1972 के बाद कोई जाट विधायक नहीं बना है, न तो कभी भाजपा का ही खाता खुला. देखना यह है कि इनेलो, कांग्रेस और जननायक जनता पार्टी जाट प्रत्याशी को जिता कर रिकॉर्ड बनाते हैं या फिर बीजेपी पहली बार जाटलैंड की इस सीट पर अपना खाता खोलकर इतिहास रचेगी? (इसे भी पढ़ें: इस प्रदेश में 2014 से कांग्रेस की जिला कमेटियां हैं भंग, पार्टी कैसे जीतेगी 2019 की जंग?)
रणदीप सुरजेवाला (file photo)
उपचुनाव के लिए सोमवार को वोट डाले गए थे. 1.72 लाख से अधिक रजिस्टर्ड वोटरों में से करीब 76 फीसदी ने मतदान करके 21 प्रत्याशियों के सियासी भाग्य का फैसला ईवीएम में बंद कर दिया था. सियासी जानकारों का कहना है कि यह चुनाव कांग्रेस और भाजपा से ज्यादा सीएम मनोहरलाल खट्टर और कांग्रेस के राष्ट्रीय मीडिया प्रभारी रणदीप सुरजेवाला की नाक का सवाल है. बीजेपी चुनाव हारती है तो पार्टी के अंदर खट्टर के विरोधी सक्रिय होंगे और अगर सुरजेवाला चुनाव हारते हैं तो हरियाणा में कांग्रेस की ओर से सीएम पद की उनकी दावेदारी लगभग खत्म हो जाएगी.सत्तारूढ़ भाजपा ने इस सीट पर जहां पंजाबी (गैर जाट) कार्ड खेला है, वहीं कांग्रेस, जननायक जनता पार्टी (जेजेपी) और इनेलो ने जाट प्रत्याशी पर दांव लगाया है. बीजेपी ने यहां इनेलो के विधायक रहे डॉ. हरीचंद मिड्ढा के बेटे कृष्ण मिड्ढा को टिकट दिया है. हरी मिड्ढा की मौत के बाद यह सीट खाली हुई थी. इसके बाद उनके बेटे बीजेपी में शामिल हो गए थे. वह यहां पर दो बार से विधायक थे. वह पंजाबी समुदाय से आते हैं.
वहीं मुख्य विपक्षी पार्टी कांग्रेस ने यहां अपने राष्ट्रीय मीडिया प्रभारी रणदीप सिंह सुरजेवाला को प्रत्याशी बनाया है, जो राहुल गांधी के खासमखास माने जाते हैं. वह इस वक्त कैथल से विधायक हैं. उधर हाल ही में इनेलो से टूटकर बनी जननायक जनता पार्टी ने दिग्विजय चौटाला को मैदान में उतारा था. जबकि इनेलो ने उम्मेद सिंह रेढू को.
ये भी पढ़ें: 'जनता जान चुकी है कि हरियाणा में दोबारा कौन करवाना चाहता है दंगा'
बताया जाता है कि तीन-तीन जाट उम्मीदवार सत्तारूढ़ भाजपा के लिए राहत की बात थे. इसलिए पार्टी नेता वोटिंग के बाद लगातार अपनी जीत के दावे कर रहे हैं. पार्टी ने तो लड्डू भी बनवा दिए हैं.
लोकनीति-सीएसडीएस (सेंटर फॉर द स्टडी ऑफ डेवलपिंग सोसायटी) के एक सर्वे में जाट बीजेपी से नाराज बताए गए थे. ऐसे में जाट बहुल सीट पर जाटों का वोट लेकर कमल खिलाने की सबसे बड़ी चुनौती बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष सुभाष बराला की थी. ये चुनौती तब और बढ़ गई है जब पार्टी के बड़े नेता दबी जुबान से गैरजाट की राजनीति करते नजर आते हैं.
जाटों के बाद यहां सबसे अधिक संख्या पंजाबी और वैश्य समाज की है. यहां पर करीब 1.70 लाख वोटर हैं जिसमें से 55 हजार जाट बताए जाते हैं. ऐसे में भाजपा को छोड़कर अन्य तीन प्रमुख पार्टियों ने जाटों पर ही दांव लगाना उचित समझा था. किस पार्टी की रणनीति कामयाब रही ये परिणाम बताएगा.
हरियाणा के वरिष्ठ पत्रकार नवीन धमीजा का कहना है कि यह उपचुनाव कई मायनों में दिलचस्प है. पहला यह कि यहां पर कांग्रेस के रणनीतिकार माने जाने वाले रणदीप सुरजेवाला की किस्मत दांव पर लगी है. तीन जाट प्रत्याशियों की वजह से सुरजेवाला की राह आसान नहीं दिख रही. मुझे यह नहीं समझ आ रहा कि जब सुरजेवाला कैथल से विधायक थे तो उनकी जगह जींद से किसी और नेता को क्यों नहीं प्रत्याशी बनाया गया? जबकि विधानसभा चुनाव के सात आठ माह ही बचे हुए हैं.
सुभाष बराला हरियाणा में बीजेपी के अध्यक्ष हैं.
कांग्रेस, जननायक जनता पार्टी (जेजेपी) और इनेलो ने जाट प्रत्याशी उतार कर अपनी लाइन क्लीयर कर दी थी लेकिन बीजेपी ने अपनी छवि के अनुसार गैर जाट प्रत्याशी पर ही भरोसा जताया. यह एक संदेश भी हो सकता है. सत्तारूढ़ पार्टी यहां पर कोई रिस्क नहीं लेना चाहती थी क्योंकि इस चुनाव के कुछ ही दिन बाद लोकसभा चुनाव है. ऐसे में इस चुनाव का परिणाम ये भी बताएगा कि जाटों की बीजेपी से नाराजगी दूर हुई है या नहीं. हालांकि, बीजेपी प्रवक्ता राजीव जेटली का कहना है कि हमारी पार्टी जाति में विश्वास नहीं करती. सबको साथ लेकर चलती है. इस बार हम यह चुनाव जीतकर मिथक तोड़ देंगे.
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जाट बहुल इस सीट पर 1972 के बाद कोई जाट विधायक नहीं बना है, न तो कभी भाजपा का ही खाता खुला. देखना यह है कि इनेलो, कांग्रेस और जननायक जनता पार्टी जाट प्रत्याशी को जिता कर रिकॉर्ड बनाते हैं या फिर बीजेपी पहली बार जाटलैंड की इस सीट पर अपना खाता खोलकर इतिहास रचेगी? (इसे भी पढ़ें: इस प्रदेश में 2014 से कांग्रेस की जिला कमेटियां हैं भंग, पार्टी कैसे जीतेगी 2019 की जंग?)

उपचुनाव के लिए सोमवार को वोट डाले गए थे. 1.72 लाख से अधिक रजिस्टर्ड वोटरों में से करीब 76 फीसदी ने मतदान करके 21 प्रत्याशियों के सियासी भाग्य का फैसला ईवीएम में बंद कर दिया था. सियासी जानकारों का कहना है कि यह चुनाव कांग्रेस और भाजपा से ज्यादा सीएम मनोहरलाल खट्टर और कांग्रेस के राष्ट्रीय मीडिया प्रभारी रणदीप सुरजेवाला की नाक का सवाल है. बीजेपी चुनाव हारती है तो पार्टी के अंदर खट्टर के विरोधी सक्रिय होंगे और अगर सुरजेवाला चुनाव हारते हैं तो हरियाणा में कांग्रेस की ओर से सीएम पद की उनकी दावेदारी लगभग खत्म हो जाएगी.सत्तारूढ़ भाजपा ने इस सीट पर जहां पंजाबी (गैर जाट) कार्ड खेला है, वहीं कांग्रेस, जननायक जनता पार्टी (जेजेपी) और इनेलो ने जाट प्रत्याशी पर दांव लगाया है. बीजेपी ने यहां इनेलो के विधायक रहे डॉ. हरीचंद मिड्ढा के बेटे कृष्ण मिड्ढा को टिकट दिया है. हरी मिड्ढा की मौत के बाद यह सीट खाली हुई थी. इसके बाद उनके बेटे बीजेपी में शामिल हो गए थे. वह यहां पर दो बार से विधायक थे. वह पंजाबी समुदाय से आते हैं.
वहीं मुख्य विपक्षी पार्टी कांग्रेस ने यहां अपने राष्ट्रीय मीडिया प्रभारी रणदीप सिंह सुरजेवाला को प्रत्याशी बनाया है, जो राहुल गांधी के खासमखास माने जाते हैं. वह इस वक्त कैथल से विधायक हैं. उधर हाल ही में इनेलो से टूटकर बनी जननायक जनता पार्टी ने दिग्विजय चौटाला को मैदान में उतारा था. जबकि इनेलो ने उम्मेद सिंह रेढू को.
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बताया जाता है कि तीन-तीन जाट उम्मीदवार सत्तारूढ़ भाजपा के लिए राहत की बात थे. इसलिए पार्टी नेता वोटिंग के बाद लगातार अपनी जीत के दावे कर रहे हैं. पार्टी ने तो लड्डू भी बनवा दिए हैं.
लोकनीति-सीएसडीएस (सेंटर फॉर द स्टडी ऑफ डेवलपिंग सोसायटी) के एक सर्वे में जाट बीजेपी से नाराज बताए गए थे. ऐसे में जाट बहुल सीट पर जाटों का वोट लेकर कमल खिलाने की सबसे बड़ी चुनौती बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष सुभाष बराला की थी. ये चुनौती तब और बढ़ गई है जब पार्टी के बड़े नेता दबी जुबान से गैरजाट की राजनीति करते नजर आते हैं.
हरियाणा के सीएम मनोहरलाल खट्टर, बीजेपी में गैर जाट चेहरा हैं
जाटों के बाद यहां सबसे अधिक संख्या पंजाबी और वैश्य समाज की है. यहां पर करीब 1.70 लाख वोटर हैं जिसमें से 55 हजार जाट बताए जाते हैं. ऐसे में भाजपा को छोड़कर अन्य तीन प्रमुख पार्टियों ने जाटों पर ही दांव लगाना उचित समझा था. किस पार्टी की रणनीति कामयाब रही ये परिणाम बताएगा.
हरियाणा के वरिष्ठ पत्रकार नवीन धमीजा का कहना है कि यह उपचुनाव कई मायनों में दिलचस्प है. पहला यह कि यहां पर कांग्रेस के रणनीतिकार माने जाने वाले रणदीप सुरजेवाला की किस्मत दांव पर लगी है. तीन जाट प्रत्याशियों की वजह से सुरजेवाला की राह आसान नहीं दिख रही. मुझे यह नहीं समझ आ रहा कि जब सुरजेवाला कैथल से विधायक थे तो उनकी जगह जींद से किसी और नेता को क्यों नहीं प्रत्याशी बनाया गया? जबकि विधानसभा चुनाव के सात आठ माह ही बचे हुए हैं.

कांग्रेस, जननायक जनता पार्टी (जेजेपी) और इनेलो ने जाट प्रत्याशी उतार कर अपनी लाइन क्लीयर कर दी थी लेकिन बीजेपी ने अपनी छवि के अनुसार गैर जाट प्रत्याशी पर ही भरोसा जताया. यह एक संदेश भी हो सकता है. सत्तारूढ़ पार्टी यहां पर कोई रिस्क नहीं लेना चाहती थी क्योंकि इस चुनाव के कुछ ही दिन बाद लोकसभा चुनाव है. ऐसे में इस चुनाव का परिणाम ये भी बताएगा कि जाटों की बीजेपी से नाराजगी दूर हुई है या नहीं. हालांकि, बीजेपी प्रवक्ता राजीव जेटली का कहना है कि हमारी पार्टी जाति में विश्वास नहीं करती. सबको साथ लेकर चलती है. इस बार हम यह चुनाव जीतकर मिथक तोड़ देंगे.
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