पूरे देश में नेत्रदान पखवाड़ा मनाया जा रहा है और लोगों को नेत्रदान करने के लिए जागरूक किया जा रहा है ताकि हमारे देश में मौजूद तकरीबन डेढ़ करोड़ लोगों को रोशनी दी जा सके.
पूरे देश में नेत्रदान पखवाड़ा मनाया जा रहा है और लोगों को नेत्रदान करने के लिए जागरूक किया जा रहा है ताकि हमारे देश में मौजूद तकरीबन डेढ़ करोड़ लोगों को रोशनी दी जा सके.
वहीं हरियाणा में इस मुहिम को कड़ा झटका लगा है. हालात ये बन गए कि इस साल अभीतक रोहतक पीजीआई में मौजूद प्रदेश के क्षेत्रीय नेत्र विज्ञान संस्थान में महज 29 लोगों ने नेत्रदान किया है, जो कि बेहद चिंताजनक स्थिति है.
इस संस्थान में प्रतिवर्ष औसतन 170 लोग नेत्रदान करते थे. फिलहाल 756 लोग इस इंतजार में हैं कि उन्हें आंखें मिलेंगी और वो इस दुनिया को देख पाएंगे. अगर यही हालात रहे तो इनका सपना पूरा होना नामुमकिन है.
देशभर में 25 अगस्त से आठ सितंबर तक नेत्रदान पखवाड़ा मनाया जाता है, ताकि लोगों को नेत्रदान की अहमियत से रूबरू करा सकें. नेत्रदान ऐसा दान होता है, जो कि मरने के बाद भी किसी को नया जीवन देता है.
दरअसल इसी साल मार्च में एक अफवाह उड़ी थी कि देश के जाने-माने मेडिकल कॉलेजों में दान की गई आंखों को कचरे के ढेर में फेंक दिया गया, क्योंकि निश्चित समयावधि में उनका इस्तेमाल नहीं कर पाने की वजह से वो खराब हो गई थी.
पीजीआई चंडीगढ़, एम्स दिल्ली और पीजीआई रोहतक का नाम इसमें शामिल था. हालांकि बाद में सरकार की तरफ से इसकी जांच भी कराई गई, लेकिन कोई अनियमितता नहीं मिली. लोगों के मन में एक आशंका जरूर पैदा हो गई कि दान की गई आंखों को कचरे के ढेर में फेंका जाता है और इसलिए लोग नेत्रदान के लिए आगे नहीं आ रहे और इस साल ये संख्या घटकर महज 29 रह गई है.
ईटीवी/न्यूज18 ने जब पीजीआई से पिछले पांच सालों का रिकॉर्ड मांगा तो उसमें भी चौंकाने वाले तथ्य सामने आए. पीजीआई के रिकार्ड के मुताबिक 2011-12 में कुल 154 आंखें दान की गई थी, जिनमें से 117 का कॉर्निया प्रत्यारोपण के लिए इस्तेमाल किया गया. इसी तरह 2012-13 में 167 आंखें दान में मिली थी, जिनमें से 122 का प्रयोग किया गया.
2013-14 में दान की गई 168 आंखों में से 99 का सफल प्रत्यारोपण किया गया और 2014-15 में भी 157 आंखें दान में मिली थी, जिनमें से 97 का कॉर्निया प्रत्यारोपण किया गया. इस साल अभी तक महज 29 आंखें मिली हैं, जिनमें से 25 का प्रयोग हुआ है.
अभी भी 756 लोग इस इंतजार में हैं कि उन्हें आंखें मिलेगी, लेकिन जिस तरह से इन अस्पतालों की छवि खराब हुई है, उससे इन्हें आंखें मिलने का सपना असंभव-सा हो गया है. पीजीआई के डॉक्टर्स का कहना है कि उन्होंने बड़ी मुश्किल से इस मुहिम को सफल बनाया था, लेकिन एक अफवाह के बाद नेत्रदान के प्रति जागरूक करने की मुहिम को एक बड़ा झटका लग गया.
अब हालात ये बन गए हैं कि औसतन प्रतिवर्ष 160-170 लोग नेत्रदान करते थे, उनकी संख्या घटकर बेहद कम रह गई है. अभीतक महज 29 लोगों ने ही आंखें दान की हैं. लोगों का विश्वास जीतना काफी मुश्किल होता है, क्योंकि यह ऐसा दान होता है, जो कि इंसान के मृत शरीर से लिया जाता है. अगर उसमें भी कोई शंका पैदा हो जाए तो मिशन फेल होने की संभावना बढ़ जाती है.
डॉक्टरों ने बताया कि अफवाह से नुकसान जरूर हुआ है, लेकिन हम लोगों को समझाने का प्रयास कर रहे हैं कि उनकी दान की हुई आंखें व्यर्थ नहीं जाएंगी. केवल उन्हीं आंखों को रिसर्च के लिए इस्तेमाल किया जाता है, जो कि किसी संक्रामक बीमारी से ग्रसित हैं या फिर उनमें विजन नहीं के बराबर होता है.
दान की हुई आंखों में 60 से 70 फीसदी ही इस्तेमाल के लायक होती हैं. रोहतक पीजीआई में पिछले 6 सालों के दौरान कुल 1057 आंखें दान की गई हैं, जिनमें से 748 का प्रयोग किया गया है.
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