कमांडर इन्दर सिंह की उम्र 97 साल हो चुकी है और आज भी उस गौरवशाली पल को याद कर उनका सीना गर्व से चौड़ा हो जाता है.
रोहतक. 1971 की भारत-पाक जंग (1971 Indo-Pak war) में पाकिस्तान जानता था कि युद्ध की तस्वीर बदलने वाला असल फैक्टर है भारत का आईएनएस विक्रांत. इस लड़ाई में पाकिस्तान ने आईएनएस विक्रांत (INS Vikrant) को डुबोने के लिए अपनी नेवल सबमरीन गाजी को भेजा था, जिसे आईएनएस राजपूत (INS Rajput) ने 50 साल पहले 3 और 4 दिसंबर 1971 की मध्यरात्रि को डुबो दिया था. उस वक्त आईएनएस राजपूत के कमांडर थे इन्दर सिंह, जो रोहतक के रहने वाले हैं. उन्होंने न्यूज18 के साथ गाजी को डुबाने की दिलचस्प कहानी सांझा की. कमांडर इन्द्र सिंह (Commander Inder Singh) ने बताया कि PNS गाजी 1971 के युद्ध में पाकिस्तान का सबसे छुपा हुआ अमोघ अस्त्र था. उस समय भारत के पास एक भी पनडुब्बी नहीं थी. ऐसे में गाजी को रोकना बड़ी चुनौती थी. उससे भी बड़ी चुनौती थी गाजी का मनोवैज्ञानिक खौफ. गाजी अपने मिशन में कामयाब हो जाती यानि विक्रांत उसके हमले की जद में आ जाता तो ये पाकिस्तान की बहुत बड़ी मनोवैज्ञानिक जीत होती.
मुमकिन है कि असर जंग के नतीजे पर भी पड़ता, लेकिन ऐसा नहीं हुआ क्योंकि समंदर में चले चूहे और बिल्ली के खेल में भारतीय नौसेना ने गाजी को मात दे दी. पाकिस्तान की पनडुब्बी पीएनएस गाजी-समंदर में अदृश्य दुश्मन की तरह अरब सागर पार करते हुए बंगाल की खाड़ी तक पहुंच गई थी. अगर गाजी ने किसी भी तरह से भारत के सबसे बड़े जंगी जहाज INS विक्रांत को निशाना बना लिया होता तो जंग की शुरुआत में ही भारत दबाव में आ जाता, लेकिन भारतीय रणनीतिकारों ने इतनी सूझबूझ से समंदर में धोखे का जाल बिछाया कि गाजी उसमें फंसकर तबाह हो गई.
बंगाल की खाड़ी के बीच कहीं समंदर में ही है
पूर्वी पाकिस्तान के सैन्य प्रशासक जनरल नियाजी और उसकी फौज को मनोवैज्ञानिक सहारा मिलता रहे-इसलिए ये पैगाम देना जरूरी था कि पाकिस्तानी पनडुब्बी समंदर में भारत का पूरा चक्कर काटते हुए ढाका तक पहुंच सकती है. ये कमाल पाकिस्तान की अमेरिका से ली गई पनडुब्बी गाजी ही कर सकती थी, जो 75 दिन तक पानी के भीतर रह सकती थी और 20 हजार किलोमीटर लंबा सफर करने की क्षमता से लैस थी. इसीलिए 1971 का युद्ध शुरू होने से ठीक पहले 14 नवम्बर से 22 नवम्बर के बीच गाजी को चुपचाप कराची से बंगाल की खाड़ी की तरफ रवाना कर दिया गया. लेकिन उसका असली मिशन था-विमान वाहक पोत विक्रांत को खोजकर तबाह करना. मगर हुआ ठीक उलटा. भारतीय नौसेना को सिग्नल इंटरसेप्ट से पता चल चुका था कि गाजी कराची से बंगाल की खाड़ी के बीच कहीं समंदर में ही है.
INS राजपूत को INS विक्रांत होने का नाटक करने को कहा
ये खबर पूर्वी पाकिस्तान की समुद्री घेराबंदी के लिए विशाखापत्तनम के बंदरगाह से निकल चुके विक्रांत के लिए खतरे की घंटी थी. इसी मौके पर पूर्वी नेवल कमांड के वाइस एडमिरल एन. कृष्णन ने बड़ा दांव खेला. उन्होंने पनडुब्बी रोधी क्षमता से लैस INS राजपूत को INS विक्रांत होने का नाटक करने को कहा. INS राजपूत से भारी वायरलेस मैसेज भेजे जाने लगे. मद्रास नेवल बेस को कहा गया कि उनकी तरफ बड़ा युद्धपोत आने वाला है. एडमिरल एन. कृष्णन जानते थे कि ये सारी कवायद पाकिस्तानी नौसेना और भारत में मौजूद पाकिस्तानी जासूसों से बच नहीं पाएगी. पाकिस्तान को जरूर ऐसा लगेगा कि विक्रांत जैसा कोई बड़ा युद्धपोत विशाखापत्तनम में है और हुआ भी यही. 26 नवम्बर को पानी में घात लगाए गाजी को अपने कमांड सेंटर से सूचना मिली कि INS विक्रांत विशाखापत्तनम में ही है.
गुप्त ठिकाने की तरफ रवाना कर दिया गया
लिहाजा, गाजी विक्रांत को डुबोने के इरादे से विशाखापत्तनम की तरफ बढ़ने लगी. जैसे ही भारतीय नौसेना को गाजी के मद्रास पहुंचने की भनक लगी, वैसे ही INS विक्रांत को बचाने का मिशन भी शुरू हो गया. अमेरिका ने अपनी डायब्लो पनडुब्बी को 1965 की भारत-पाक जंग से कुछ ही समय पहले पाकिस्तान को पट्टे पर दिया था. पाकिस्तान ने इसका नाम गाजी रखा था. 1965 की जंग में गाजी का इतना खौफ था कि भारतीय नौसेना ने कराची पर हमले का प्लान टाल दिया था. गाजी का ये खौफ 1971 की जंग पर भी मंडरा रहा था. मुश्किल ये भी थी कि जंग शुरू होने से कुछ ही दिन पहले विक्रांत के बॉयलर में दरार आ गई थी. इस वजह से उसकी रफ्तार भी कम रह गई थी. इतनी कम रफ्तार में वो कभी भी किसी भी पनडुब्बी का शिकार बन सकता था. इसीलिए, गाजी के साए से विक्रांत को दूर रखने के लिए उसे चुपचाप एक गुप्त ठिकाने की तरफ रवाना कर दिया गया.
मद्रास से 1000 मील दूर अंडमान-निकोबार में था
ये गुप्त ठिकाना मद्रास से 1000 मील दूर अंडमान-निकोबार में था. तब तक गाजी को डुबोने की योजना पर अमल शुरू हो चुका था. अपने कमांड से विक्रांत के विशाखापत्तनम के पास होने की खुफिया सूचना पाकर पाकिस्तानी पनडुब्बी गाजी बेखौफ होकर वहां तक पहुंच गई थी. इसी मौके पर विशाखापत्तनम के समुद्र तट से कुछ ही दूर पर आईएनएस राजपूत के कैप्टन लेफ्टिनेंट कमांडर इंदर सिंह ने पानी पर बड़ी हलचल देखी. उन्होंने अनुमान लगाया कि इतनी हलचल किसी पनडुब्बी के पानी में गोता लगाने से ही हो सकती है. लिहाजा उन्होंने अपने नौसैनिकों को समंदर में पनडुब्बी नष्ट करने वाले दो डेफ्थ चार्जर डालने का हुक्म दिया.
याद कर उनका सीना गर्व से चौड़ा हो जाता है
पानी के भीतर पहुंच कर डेप्थ चार्जर ने अपना काम कर दिया. पानी के भीतर हुए धमाके ने गाजी को समंदर में ही जलसमाधि दे दी. नौसैनिक युद्ध में गाजी को डुबोने की ये घटना 1971 की जंग का एक सुनहरा इतिहास है. हालांकि, पाकिस्तान दावा करता है कि गाजी को INS राजपूत ने नहीं डुबोया था, बल्कि वो खुद ही डूब गई थी. कमांडर इन्दर सिंह की उम्र 97 साल हो चुकी है और आज भी उस गौरवशाली पल को याद कर उनका सीना गर्व से चौड़ा हो जाता है.
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