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'हरियाणा में इस साल तीन हजार लोगों ने लगाया मौत को गले'

दुनिया में हर साल तकरीबन आठ लाख लोग आत्महत्या करते हैं और भारत में यह आंकडा भी औसतन सवा लाख से उपर है.

दुनिया में हर साल तकरीबन आठ लाख लोग आत्महत्या करते हैं और भारत में यह आंकडा भी औसतन सवा लाख से उपर है.

दुनिया में हर साल तकरीबन आठ लाख लोग आत्महत्या करते हैं और भारत में यह आंकडा भी औसतन सवा लाख से उपर है.

    दुनिया में हर साल तकरीबन आठ लाख लोग आत्महत्या करते हैं और भारत में यह आंकडा भी औसतन सवा लाख से उपर है.

    गुरूवार को पूरी दुनिया में सुसाइड प्रिवेंशन डे मनाया जा रहा है यानि लोगों को आत्महत्या से बचाव के लिए जागरूक किया जा रहा है. सबसे बडी चिंता की बात ये है कि हमारे प्रदेश में भी आत्महत्या के मामले लगातार बढ रहे हैं, लेकिन आत्महत्या के कारणों को जानने की कोशिश या फिर पीड़ित परिवार की काउंसलिंग करने की कोई व्यवस्था नहीं है.

    हरियाणा में भी औसतन तीन हजार व्यक्ति हर वर्ष आत्महत्या करते हैं, लेकिन सरकार या समाज को इससे कोई लेना देना नहीं है. शुक्रवार को बेशक आत्महत्या जैसे गंभीर विषय को लेकर लोगों को जागरूक करने के लिए जगह-जगह पोस्टर प्रदर्शनी लगाई गई और कई कार्यक्रम आयोजित भी किए गए. रोहतक पीजीआई में भी मनोरोग विभाग की तरफ से पोस्टर प्रदर्शनी का आयोजन किया गया और लोगों की काउंसलिंग की भी की गई.

    हकीकत ये है कि मानसिक स्वास्थ्य को लेकर न तो हमारा समाज गंभीर है और न ही सरकार. नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो के मुताबिक साल 2014 में उत्तरी भारत के राज्यों में सबसे ज्यादा हरियाणा के लोगों ने आत्महत्या की है. आंकडों के मुताबिक जम्मू-कश्मीर में 258, हिमाचल के 644, पंजाब में 943, उत्तराखंड 207, दिल्ली में 2095 तो हरियाणा में 3203 लोगों ने आत्महत्या की है.

    उत्तरप्रदेश में 2014 में 3590 लोगों ने आत्महत्या की, हालांकि लोगों ने इस तरह की पहल की सराहना की है और कहा है कि लोगों को जागरूक किया जाना चाहिए, ताकि वे समस्याओं का डटकर मुकाबला करें, क्योंकि आत्महत्या किसी भी समस्या का समाधान नहीं है.

    पीजीआई के मनोरोग विभाग के विभागाध्यक्ष डॉ राजीव गुप्ता ने माना कि समाज में आत्महत्या की प्रवृत्ति बढ़ती जा रही है, लेकिन इसे रोकने के लिए सरकार और समाज की जो जिम्मेदारी होती है, उसका निर्वहन नहीं हो रहा. स्कूलों में बच्चों की काउंसलिंग होनी चाहिए, लेकिन इसके नाम पर सिर्फ खानापूर्ति ही होती है.

    स्वास्थ्य सेवाओं के लिए सरकार के पास बजट काफी कम है और उसमें भी मानसिक स्वास्थ्य और उससे संबंधित कार्यक्रमों के लिए तो यह न के बराबर है. व्यक्ति की समस्या को जानकर अगर उसकी सही ढंग से काउंसलिंग की जाए तो वह आत्महत्या जैसा कदम नहीं उठाएगा, लेकिन काउंसलिंग न तो व्यक्ति की होती और न ही उसके मरने के बाद उसके परिवार के लोगों की होती है.

    इसी वजह से यह समस्या लगातार बढ़ती जा रही है, समाज को इसके प्रति जागरूक होना पड़ेगा, तभी इस पर अंकुश लगाया जा सकता है. अगर ऐसा नहीं किया गया तो आने वाले समय में इसके घातक परिणाम हो सकते हैं.

    Tags: Suicide

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