कोलडैम के विस्थापित परिवारों को 16 वर्ष बाद भी नहीं मिल पाई सड़क, शौचालय और बस की सुविधा

कोलडैम बिजली परियोजना लगने के 16 वर्ष बीतने के बाद भी विस्थापितों के गांव तक पक्की सड़क तक नहीं बन पाई.
कोलडैम (KolDam) बिजली परियोजना (Power Project) के लिए अपनी सोना उगलती जमीनें (Land) कुर्बान करने वाले हजारों विस्थापितों (Migrated) को वर्षों बाद भी बुनियादी सुविधाएं नहीं मिल पाई है.
- News18 Himachal Pradesh
- Last Updated: November 26, 2019, 7:43 PM IST
बिलासपुर. हिमाचल प्रदेश के चार जिलों की सीमाओं पर लगी 800 मेगावाट की कोलडैम (Koldam) बिजली परियोजना (Power Project) से भले ही देश को लाभ पंहुचा हो लेकिन इस बांध के लिये अपनी सोना उगलती जमीनें कुर्बान करने वाले हजारों विस्थापितों (Migrated) के लिये आज भी मूलभूत सुविधायें मुहैया करवा पाने में सरकारें नाकाम रही हैं. हालात यह है कि परियोजना लगने के 16 वर्ष बीतने के बाद भी विस्थापितों के गांव तक पक्की सड़क तक नहीं बन पाई है और ना ही इनके लिए कोई भी सरकारी बस की सुविधा भी सरकार नहीं दे पाई है. इसके चलते आज भी क्षेत्र के हजारों विस्थापित ग्रामीण महिलाएं, बच्चे, बुजुर्ब समस्या से जूझ रहे हैं.
तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने 5 जून 2003 को रखी थी आधारशिला
कोलडैम परियोजना की आधारशिला तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने 5 जून 2003 को रखी थी. इसके बाद इसे देश की नवरत्न कंपनी एनटीपीसी द्वारा यहां निर्माण कार्य शुरू किया गया था. कोलडैम बनने के दौरान बिलासपुर जिला का बाहौट कसोल गांव सबसे ज्यादा विस्थापन की चपेट में आया, जिसमें हजारों लोगों की सोना उगलती जमीनें इस प्रोजेक्ट की भेंट चढ़ी थी. उस दौरान यहां के लोगों को हर तरह की सुविधाएं प्रदान करने के कई तरह के वायदे किए गए, लेकिन आज 16 वर्ष बीतने के बाद भी विस्थापित गांव अपनी मूलभूत सुविधाओं को तरस रहे हैं.
गांव कसोल से लेकर बाहौट गांव तक नहीं बनी आज भी सड़कगांव कसोल से लेकर बाहौट गांव तक बनाई गई महज एक किलोमीटर लंबी सड़क आज भी वैसी ही कच्ची और टूटी, फूटी है. इसी गांव के लिए सरकारी बस सुविधा भी नाम मात्र की ही है. गांव में कोई भी सार्वजनिक शौचालय तक नहीं है. स्कूल के बच्चों को आने जाने में मुश्किलों का सामना करना पड़ता है. बरसातों में बुजुर्गोंं की हालत बदतर हो जाती है.
बेरोजगारी भी है प्रमुख मुद्दा
बौहट गांव के विस्थापितों का कहना है कि पूरे गांव में 1200 सौ के लगभग विस्थापित परिवार हैं. देश में विकास के नाम पर इस परियोजना के लिये उनसे जमीनें छीन ली गई थीं. गांव के पढ़े—लिखे युवक आज बेरोजगार हैं. रोजगार के नाम पर उन्हे छला गया है. अगर उनकी जमीनें उनके पास होती तो कृषि करके अपना रोजगार चला सकते थे. विस्थापितों के बच्चों को आने जाने के लिये बस सुविधा तक नहीं है. विस्थापितों ने मांग की है कि एनटीपीसी सलापड़ पुल से विस्थापितों के गांव तक मुफ्त बस सुविधा का प्रबंध करे.यह भी पढ़ें: हिमाचल में भी हुआ महाराष्ट्र जैसा ड्रामा और वीरभद्र को देना पड़ा था इस्तीफा!
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तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने 5 जून 2003 को रखी थी आधारशिला
कोलडैम परियोजना की आधारशिला तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने 5 जून 2003 को रखी थी. इसके बाद इसे देश की नवरत्न कंपनी एनटीपीसी द्वारा यहां निर्माण कार्य शुरू किया गया था. कोलडैम बनने के दौरान बिलासपुर जिला का बाहौट कसोल गांव सबसे ज्यादा विस्थापन की चपेट में आया, जिसमें हजारों लोगों की सोना उगलती जमीनें इस प्रोजेक्ट की भेंट चढ़ी थी. उस दौरान यहां के लोगों को हर तरह की सुविधाएं प्रदान करने के कई तरह के वायदे किए गए, लेकिन आज 16 वर्ष बीतने के बाद भी विस्थापित गांव अपनी मूलभूत सुविधाओं को तरस रहे हैं.
गांव कसोल से लेकर बाहौट गांव तक नहीं बनी आज भी सड़कगांव कसोल से लेकर बाहौट गांव तक बनाई गई महज एक किलोमीटर लंबी सड़क आज भी वैसी ही कच्ची और टूटी, फूटी है. इसी गांव के लिए सरकारी बस सुविधा भी नाम मात्र की ही है. गांव में कोई भी सार्वजनिक शौचालय तक नहीं है. स्कूल के बच्चों को आने जाने में मुश्किलों का सामना करना पड़ता है. बरसातों में बुजुर्गोंं की हालत बदतर हो जाती है.
बेरोजगारी भी है प्रमुख मुद्दा
बौहट गांव के विस्थापितों का कहना है कि पूरे गांव में 1200 सौ के लगभग विस्थापित परिवार हैं. देश में विकास के नाम पर इस परियोजना के लिये उनसे जमीनें छीन ली गई थीं. गांव के पढ़े—लिखे युवक आज बेरोजगार हैं. रोजगार के नाम पर उन्हे छला गया है. अगर उनकी जमीनें उनके पास होती तो कृषि करके अपना रोजगार चला सकते थे. विस्थापितों के बच्चों को आने जाने के लिये बस सुविधा तक नहीं है. विस्थापितों ने मांग की है कि एनटीपीसी सलापड़ पुल से विस्थापितों के गांव तक मुफ्त बस सुविधा का प्रबंध करे.
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First published: November 26, 2019, 7:43 PM IST
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