HPU में असिस्टेंट प्रोफेसर की भर्ती: एमटैक को दी ज्वाइनिंग Ph.D वाले दरकिनार, उठे सवाल

हिमाचल प्रदेश यूनिवर्सिटी.
यूनिवर्सिटी में असिस्टेंट प्रोफेसर की भर्ती के लिए साल 2021 से पीएच.डी अनिवार्य कर दी गई है और दूसरी ओर उसी पद के लिए पीएचडी उम्मीदवारों के होते हुए एमटेक उम्मीदवार रखे जाने से उम्मीदवारों में खासा रोष है.
- News18 Himachal Pradesh
- Last Updated: November 24, 2020, 3:01 PM IST
धर्मशाला. हिमाचल प्रदेश के अलग सरकारी कॉलेजों में समाजशास्त्र विभाग में बतौर सहायक प्रोफेसर लंबे समय से अपनी सेवाएं दे रहे चार वरिष्ठ समाजशास्त्रियों डॉ. रुचि रमेश, डॉ. रविंदर चौहान, डॉ. मनोज कुमार तेवतिया और डॉ. केवल कृष्ण ने लीक से हटकर अपनी ही यूनिवर्सिटी की कार्यप्रणाली पर सवाल खड़े कर दिये हैं.
दरअसल इन चार वरिष्ठ सहायक प्रोफेसरों ने हाल ही में हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय (HPU) की ओर से कॉल की गई एसिस्टैंट प्रोफेसर की भर्ती के लिए आवेदन भरा था और इन्हें चयन बोर्ड में अपनी प्रस्तुति देने का मौका भी मिला और इन्हें चयन बोर्ड ने रिजेक्ट भी कर दिया, मगर जिस उम्मीदवार का चयन एचपीयू के चयन बोर्ड ने किया वो इन चारों वरिष्ठ समाजशास्त्रियों के समकक्ष कहीं नहीं ठहरतीं.
बस यही वजह है कि अब ये चारों अपने ही संस्थान की कार्यप्रणाली की ख़िलाफ़त के लिये मुखर हो गये हैं और इन्होंने अब सीधे हाईकोर्ट का रुख करने का मन बना लिया है. बशर्ते, इससे पहले इन्होंने इस पूरी भर्ती प्रक्रिया को लेकर एचपीयू के उपकुलपति डॉ. प्रोफेसर सिकंदर कुमार को एक मांग पत्र भी सौंपा है, जिसमें इस पूरी भर्ती प्रक्रिया पर स्पष्टीकरण मांगा है.
क्या बोले आवेदकन्यूज़18 ने इन प्रोफेसर्स से बातचीत भी की है, जिसमें इन्होंने इस भर्ती प्रक्रिया में सरासर धांधली होने का आरोप लगाया है. इन चारों प्रोफेसर्स ने एक सुर में चयन बोर्ड की ख़िलाफ़त करते हुये कहा है कि इस भर्ती प्रक्रिया में उनके साथ कई ऐसे समाजशास्त्री भी शरीक हुये थे, जिन्हें सरकारी कॉलेजों के समाजशास्त्र विभाग में सेवायें देते हुये डेढ और दो दशक से भी ज्यादा का वक्त बीत चुका है, हममें से हरएक ने कई शोधपत्र और किताबें लिखी हैं. विदेशों में विशेष तौर पर बतौर समाजशास्त्री एक अलग पहचान रखते हैं. बावजूद, इसके एचपीयू ने असिस्टेंट प्रोफेसर की भर्ती के लिए जो आवेदन मांगे, उसमें भी उन्हें अंधेरे में रखा गया और जब भर्ती हुई तो भी वो अंधेरा छटा नहीं, बल्कि उनकी उम्मीदों से परे परिणाम घोषित करते हुये ऐसे उम्मीदवारों का चयन कर लिया गया, जो इस पद के लिये किसी भी नज़रये से फिट नहीं बैठते, भर्ती प्रक्रिया में जो मापदंड यूजीसी द्वारा अपनाये जाते हैं और जो सुनिश्चित किये गये हैं उसमें चयन उम्मीदवार की कसौटी किसी भी तरह से सही नहीं बैठती, उन्होंने कहा कि सवाल तो ये खड़ा होता है कि इतने ज्यादा अनुभवी उम्मीदवारों के होने के बावजूद भी एचपीयू का चयन बोर्ड उम्मीदवार के चयन में इतनी बड़ी धांधली कैसे कर सकता है, इससे साफ जाहिर होता है कि असल में ये भर्ती प्रक्रिया अपने-अपनों को लाभ दिलवाने के लिये अपनाई गई थी, इसमें सही मायनों में एचपीयू को सही और अनुभवी प्रध्याप्क की ज़रूरत नहीं थी.
कोर्ट का रुख करेंगे
डॉ. रुचि रमेश ने कहा कि अगर एचपीयू के उपकुलपति डॉ. प्रोफेसर सिकंदर कुमार की ओर से उन्हें संतोषजनक जबाव नहीं मिला तो वो इस भर्ती प्रक्रिया में अपनाई गई प्रणाली की सूचना के अधिकार के तहत जानकारी हासिल करेंगे और तुरंत हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटायेंगे ताकि दूध का दूध और पानी का पानी हो सके.

काबिलेगौर है कि हाल ही में एचपीयू की ओर से अलग-अलग विभागों के लिए एसिस्टैंट प्रोफेसरों की भर्ती प्रक्रिया करवाई गई है जिनमें से सिविल इंजीनियरिंग और समाजशास्त्र विभाग के घोषित उम्मीदवारों की सूची में पीएचडी डिग्री धारकों, अनुभवी और शोधार्थियों को दरकिनार करके उनके स्थान पर एमटेक डिग्री धारक और अयोग्य उम्मीदवारों को चयन करने का आरोप लग रहा है. सिविल इंजीनियरिंग के सामान्य श्रेणी के 3 पदों के लिए 35 उम्मीदवारो का साक्षात्कार 6 और 7 नवम्बर को वीसी ऑफिस में लिया गया था. 35 उम्मीदवारों में से 15 उम्मीदवार पीएचडी धारक थे, जिन उम्मीदवारों को साक्षात्कार में उत्तीर्ण घोषित किया गया है, उनमें से एक उम्मीदवार एम. टैक डिग्री धारक है. विज्ञप्ति प्रक्रिया में 100 में से 10 अंक यूजीसी अप्रूव्ड रिसर्च पेपर्स के रखे गए थे, जिनमें से कुछ अभ्यर्थियों को अधिक अंक दिए हैं, जिससे पता चलता है कि पेपर्स की सत्यता को नहीं जांचा गया.
परिणाम से पहले ज्वाइनिंग
एक तरफ यूजीसी के अनुसार यूनिवर्सिटी में असिस्टेंट प्रोफेसर की भर्ती के लिए साल 2021 से पीएच.डी अनिवार्य कर दी गई है और दूसरी ओर उसी पद के लिए पीएचडी उम्मीदवारों के होते हुए एमटेक उम्मीदवार रखे जाने से उम्मीदवारों में खासा रोष है. उन्होंने इसकी जांच की मांग उठाते हुए कहा कि जिन उम्मीदवारों का चयन हुआ है, उनमें से कुछ शनिवार को ही ज्वाइन कर गए हैं जबकि शाम साढ़े 4 बजे तक रिजल्ट घोषित नहीं हुआ था, जिससे साफ़ जाहिर है कि चयनित उम्मीदवारों को पहले ही उनके चयन की सूचना मिल चुकी थी. साथ ही समाजशास्त्र विभाग के प्रध्यापकों का कहना है कि समाजशास्त्र विभाग में भी इसी तरह से प्रणाली को अपनाया गया है जो कि कतई सही नहीं है.
दरअसल इन चार वरिष्ठ सहायक प्रोफेसरों ने हाल ही में हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय (HPU) की ओर से कॉल की गई एसिस्टैंट प्रोफेसर की भर्ती के लिए आवेदन भरा था और इन्हें चयन बोर्ड में अपनी प्रस्तुति देने का मौका भी मिला और इन्हें चयन बोर्ड ने रिजेक्ट भी कर दिया, मगर जिस उम्मीदवार का चयन एचपीयू के चयन बोर्ड ने किया वो इन चारों वरिष्ठ समाजशास्त्रियों के समकक्ष कहीं नहीं ठहरतीं.
बस यही वजह है कि अब ये चारों अपने ही संस्थान की कार्यप्रणाली की ख़िलाफ़त के लिये मुखर हो गये हैं और इन्होंने अब सीधे हाईकोर्ट का रुख करने का मन बना लिया है. बशर्ते, इससे पहले इन्होंने इस पूरी भर्ती प्रक्रिया को लेकर एचपीयू के उपकुलपति डॉ. प्रोफेसर सिकंदर कुमार को एक मांग पत्र भी सौंपा है, जिसमें इस पूरी भर्ती प्रक्रिया पर स्पष्टीकरण मांगा है.
क्या बोले आवेदकन्यूज़18 ने इन प्रोफेसर्स से बातचीत भी की है, जिसमें इन्होंने इस भर्ती प्रक्रिया में सरासर धांधली होने का आरोप लगाया है. इन चारों प्रोफेसर्स ने एक सुर में चयन बोर्ड की ख़िलाफ़त करते हुये कहा है कि इस भर्ती प्रक्रिया में उनके साथ कई ऐसे समाजशास्त्री भी शरीक हुये थे, जिन्हें सरकारी कॉलेजों के समाजशास्त्र विभाग में सेवायें देते हुये डेढ और दो दशक से भी ज्यादा का वक्त बीत चुका है, हममें से हरएक ने कई शोधपत्र और किताबें लिखी हैं. विदेशों में विशेष तौर पर बतौर समाजशास्त्री एक अलग पहचान रखते हैं. बावजूद, इसके एचपीयू ने असिस्टेंट प्रोफेसर की भर्ती के लिए जो आवेदन मांगे, उसमें भी उन्हें अंधेरे में रखा गया और जब भर्ती हुई तो भी वो अंधेरा छटा नहीं, बल्कि उनकी उम्मीदों से परे परिणाम घोषित करते हुये ऐसे उम्मीदवारों का चयन कर लिया गया, जो इस पद के लिये किसी भी नज़रये से फिट नहीं बैठते, भर्ती प्रक्रिया में जो मापदंड यूजीसी द्वारा अपनाये जाते हैं और जो सुनिश्चित किये गये हैं उसमें चयन उम्मीदवार की कसौटी किसी भी तरह से सही नहीं बैठती, उन्होंने कहा कि सवाल तो ये खड़ा होता है कि इतने ज्यादा अनुभवी उम्मीदवारों के होने के बावजूद भी एचपीयू का चयन बोर्ड उम्मीदवार के चयन में इतनी बड़ी धांधली कैसे कर सकता है, इससे साफ जाहिर होता है कि असल में ये भर्ती प्रक्रिया अपने-अपनों को लाभ दिलवाने के लिये अपनाई गई थी, इसमें सही मायनों में एचपीयू को सही और अनुभवी प्रध्याप्क की ज़रूरत नहीं थी.
कोर्ट का रुख करेंगे
डॉ. रुचि रमेश ने कहा कि अगर एचपीयू के उपकुलपति डॉ. प्रोफेसर सिकंदर कुमार की ओर से उन्हें संतोषजनक जबाव नहीं मिला तो वो इस भर्ती प्रक्रिया में अपनाई गई प्रणाली की सूचना के अधिकार के तहत जानकारी हासिल करेंगे और तुरंत हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटायेंगे ताकि दूध का दूध और पानी का पानी हो सके.

आरोप लगाने वाले प्रोफेसर्स.
काबिलेगौर है कि हाल ही में एचपीयू की ओर से अलग-अलग विभागों के लिए एसिस्टैंट प्रोफेसरों की भर्ती प्रक्रिया करवाई गई है जिनमें से सिविल इंजीनियरिंग और समाजशास्त्र विभाग के घोषित उम्मीदवारों की सूची में पीएचडी डिग्री धारकों, अनुभवी और शोधार्थियों को दरकिनार करके उनके स्थान पर एमटेक डिग्री धारक और अयोग्य उम्मीदवारों को चयन करने का आरोप लग रहा है. सिविल इंजीनियरिंग के सामान्य श्रेणी के 3 पदों के लिए 35 उम्मीदवारो का साक्षात्कार 6 और 7 नवम्बर को वीसी ऑफिस में लिया गया था. 35 उम्मीदवारों में से 15 उम्मीदवार पीएचडी धारक थे, जिन उम्मीदवारों को साक्षात्कार में उत्तीर्ण घोषित किया गया है, उनमें से एक उम्मीदवार एम. टैक डिग्री धारक है. विज्ञप्ति प्रक्रिया में 100 में से 10 अंक यूजीसी अप्रूव्ड रिसर्च पेपर्स के रखे गए थे, जिनमें से कुछ अभ्यर्थियों को अधिक अंक दिए हैं, जिससे पता चलता है कि पेपर्स की सत्यता को नहीं जांचा गया.
परिणाम से पहले ज्वाइनिंग
एक तरफ यूजीसी के अनुसार यूनिवर्सिटी में असिस्टेंट प्रोफेसर की भर्ती के लिए साल 2021 से पीएच.डी अनिवार्य कर दी गई है और दूसरी ओर उसी पद के लिए पीएचडी उम्मीदवारों के होते हुए एमटेक उम्मीदवार रखे जाने से उम्मीदवारों में खासा रोष है. उन्होंने इसकी जांच की मांग उठाते हुए कहा कि जिन उम्मीदवारों का चयन हुआ है, उनमें से कुछ शनिवार को ही ज्वाइन कर गए हैं जबकि शाम साढ़े 4 बजे तक रिजल्ट घोषित नहीं हुआ था, जिससे साफ़ जाहिर है कि चयनित उम्मीदवारों को पहले ही उनके चयन की सूचना मिल चुकी थी. साथ ही समाजशास्त्र विभाग के प्रध्यापकों का कहना है कि समाजशास्त्र विभाग में भी इसी तरह से प्रणाली को अपनाया गया है जो कि कतई सही नहीं है.