चमकी बुखार की वजह से हिमाचल में लोग नहीं खरीद रहे लीची. (सांकेतिक तस्वीर.)
बिहार में चमकी बुखार के कारण हो रही बच्चों की मौत से लीची के व्यापार पर खासा असर पड़ा है. क्योंकि बच्चों की मौत के पीछे लीची भी एक कारण है. ऐसे में दूसरे राज्यों में लीची की खरीद-फरोख्त पर असर पड़ रहा है.
हिमाचल में भी लीची की खरीद-फरोख्त पर प्रभाव पड़ा है. इसके दामों में भारी गिरावट देखी जा रही है. कांगड़ा के नूरपुर और उसके आस-पास के क्षेत्रो में भरपूर लीची की फसल हुई है. किसानों में खुशी की लहर थी, लेकिन अब चमकी बुखार की वजह से खुशी गम में बदल गई है.
100 रुपये बिकती थी अब दाम गिरे
एक समय था, जब लीची सौ रुपए किलो बिकती थी, लेकिन जैसे ही बिहार की खबर लोगों तक पहुंचनी शुरू हुई तो लोगों ने लीची से दूर रहना ही ठीक समझा. आज आलम ये है कि मंडी में लीची बीस से तीस रुपये किलो बिक रही है. लोग लीची खरीदने से परहेज कर रहे हैं. लोगों में लीची के प्रति दहशत है कि कहीं वह और उनके बच्चे लीची खाकर बीमार न हो जाएं.
लोगों में डर- किसान
लीची बागवान अमित पठानिया के अनुसार, दहशत की वजह से हमारा लीची का बाग इस बार नहीं बिक पाया है. बिहार में चमकी बुखार की बजह से लीची का दाम बिल्कुल भी नहीं मिल रहा है, जिन्होंने बगीचे को खरीदा था, वह भी बगीचा लेने से मना कर गए. इसकी वजह से काफी नुक्सान हुआ है. मंडी में लीची लेकर जाते हैं तो तो व्यापारी लीची खरीदने से मना कर रहे हैं. अगर लीची खरीदते भी हैं तो कम दाम पर. लीची खरीददार संजय शर्मा में बताया कि इस बार लीची के खाने का बिल्कुल भी मन नहीं हो रहा है. पता नहीं अफवाह है या क्या? लेकिन मन में भय है कि कहीं हम भी बुखार की चपेट में न आ जाएं.
20 से 30 किलो बिक रही
सब्ज़ी मंडी के खरीदार विकास ने बताया कि बुखार की बजह लीची में कीड़ा बताया गया. इस कारण लोग लीची खाना पसंद नहीं कर रहे हैं. जिस लीची का दाम 70-80 रुपये था, आज वह 20-25 रुपये है. व्यापारी और लोग लीची खरीदने के इच्छुक नहीं हैं. मार्केट में लीची की बिल्कुल भी डिमांड नहीं है.
(नुरपुर से भारत भूषण की रिपोर्ट)
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