हिमाचल प्रदेश की कांगड़ा टी को यूरोप में जीआई टैग मिला है.
धर्मशाला. हिमाचल प्रदेश की कांगड़ा टी को यूरोपियन यूनियन ने बहुत बड़ी सौगात दी है. कांगड़ा टी को यूरोपियन यूनियन ने जीआई टैग दिया है. ये सौगात कांगड़ा चाय को यूरोपियन बाजारों में उच्च गुणबत्ता के साथ उतारने के लिए हरि झंडी के तौर पर दी है.
दरअसल, कांगड़ा के लोगों के लिये ये बेहद ही खुशी भरे पल हैं कि कांगड़ा चाय को यूरोपियन यूनियन (EU) ने जियोग्राफिकल इंडिकेशन यानी ( GI) टैग प्रदान दिया है. इसकी पुष्टि बाकायदा भारत में स्थित ईयू डेलिगेशन ने ट्वीट करके दी है. उन्होंने लिखा है कि कांगड़ा चाय को अब जीआई टैग मिल गया है. क्योंकि यूरोपीय संघ और भारत ये दोनों ही टैग पर जोर देते हैं. साथ ही दोनों स्थानीय भोजन को भी महत्व देते हुए स्थानीय परंपराओं को बनाए रखने पर जोर देते हैं. इसके अलावा, इन दोनों का मकसद सांस्कृतिक विरासत को समृद्ध और संरक्षित करना भी रहता है.
जानकारी के अनुसार, कांगड़ा चाय इस समय काफी कम जगह पर उगाई जा रही है और इसका उत्पादन भी अपेक्षाकृत कम ही है. बावजूद इसके कांगड़ा चाय की उच्च गुणवत्ता ने प्रदेश ही नहीं देश के लिए भी यह बड़ा सम्मान अर्ज किया है. जानकारों के मुताबिक यूरोपियन टैग अभी देश में कम ही उत्पादों को मिला हुआ है. ऐसे में कांगड़ा चाय का इस सूची में शामिल होना कांगड़ा चाय व चाय उत्पादकों के लिए काफी प्रोत्साहनजनक है.
गौरतलब है कि बीते कुछ सालों में कांगड़ा चाय के उत्पादन में कमी दर्ज की जा रही है. हालांकि चाय उत्पादकों ने गुणवत्ता को बनाए रखा है. कांगड़ा चाय की अपनी खास महक और जायका है और कांगड़ा टी को जीआई टैग 2005 में मिला था. प्रदेश में इस समय लगभग 24 सौ हैक्टेयर रकबे में चाय बागान हैं. आज से चार दशक पूर्व करीब तीन हजार हैक्टेयर क्षेत्र में चाय बागान थे. 1990 से लेकर 2002 तक कांगड़ा चाय उद्योग बुलंदियों पर था और हर साल यहां पर दस लाख किलो से अधिक चाय का उत्पादन हो रहा था. चाय उत्पादकों के प्रयासों से 1998-99 में चाय उत्पादन के सभी रिकार्ड टूट गए और उस साल 17,11,242 किलो चाय का उत्पादन हुआ.
चाय का उत्पादन कितना
विभिन्न कारनों से यह ट्रेड जारी नहीं रह सका और पिछले कुछ सालों में तो चाय उत्पादन का आंकड़ा दस लाख किलो से कम ही रहा है. हालांकि अब विभिन्न क्षेत्रों से हो रहे प्रयासों के चलते कांगड़ा चाय की पैदावार एक बार फिर बढ़ने लगी है. दूसरे प्रदेशों के मुकाबले में प्रदेश के चाय बागानों का आकार काफी कम है. दूसरे प्रदेशों में बड़े चाय बागान मालिकों को सबसे बड़ा लाभ यह रहता है कि उनका यहां सही दाम में लेबर पूरा साल उपलब्ध रहती है. छोटे चाय बागान होने से पूरा साल लेबर नहीं रख सकते और कुछ समय के लिए आने वाली लेबर काफी अधिक दाम वसूलती है. इन सब के बावजूद प्रदेश की चाय ने अब अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर एक बड़ा मुकाम हासिल किया है.
कोरोना से लड़ने की क्षमता
टी-बोर्ड ऑफ इंडिया पालमपुर अधिकारी अभिमन्यू शर्मा ने कहा कि यूरोपियन जीआई टैग मिलना कांगड़ा चाय के लिए एक बहुत बडी उपलब्धि है. इससे अंतर्राष्ट्रीय बाजार में कांगड़ा चाय की पहचान और मजबूत होगी. वहीं, कांगड़ा चाय की अपनी खास महक और जायका है और कांगड़ा टी को देश में जीआई टैग 2005 में मिला था. कांगड़ा चाय का निर्यात जर्मनी, फ्रांस , इंग्लैड, किया जाता है. यूरोपियन जीआई टैग के लिए हिमाचल सरकार द्वारा ही बहुत प्रयास किए गए है. बता दें कोरोना काल में दावा किया गया था कि कांगड़ा टी कोरोना से लड़ने की क्षमता रखती है.
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