हिमाचल के कांगड़ा में है ज्वालामुखी मंदिर.
ब्रजेश्वर साकी
ज्वालामुखी (कांगड़ा). हिमाचल प्रदेश को देवभूमि कहा जाता है. यहां पर विश्वप्रसिद्ध शक्तिपीठ हैं और इन्हीं पीठों में से एक मां ज्वालामुखी. कांगड़ा के ज्वालामुखी मंदिर सैंकड़ों वर्षों से साक्षातरूप में चमत्कारी ज्योति के रूप में मां ज्वाला दर्शन देती हैं. यह शक्तिपीठ अपने आप में इसलिए अनूठा हैं, क्योंकि यहां पर मूर्ति पूजा नहीं होती. मां ज्वाला के मंदिर में यह साक्षात ज्योतियां अपने ओज से वर्षों से प्रकाशमान हैं. देश हो या विदेश… मां ज्वाला देवी के दर्शनो के लिए श्रद्धालु पहुंचते हैं. मां ज्वाला देवी के मुख्य मंदिर के गर्भ गृह में 7 अखंड ज्योतियों विराजमान हैं, जिन्हे अलग-1 नामों से पुकारा जाता है. ज्योतियों में सर्वप्रथम मां ज्वाला महाकाली के रूप में हैं. चंडी, हिंगलाज, विध्यवासिनी,अन्नपूर्णा,महालक्ष्मी, महासरस्वती के रूप में मंदिर में यह ज्योतियां साक्षात भक्तों को दर्शन देती हैं. 51 शक्तिपीठों में मां ज्वाला को सर्वोपरि माना गया है.
जानकारी के अनुसार, शिव महापुराण में भी इस शक्तिपीठ का वर्णन है. जब भगवान शिव माता सत्ती को पूरे ब्रहांड़ के घूमाने लगे तब सत्ती मां की जीभ इस स्थान पर गिरी थी, जिससे यहां ज्वाला ज्योति रूप में यहां दर्शन देती हैं. एक अन्य दंत कथा के अनुसार, जब माता ज्वाला प्रकट हुई, तब ग्वालों को सबसे पहले पहाड़ी पर ज्योति के दिव्य दर्शन हुए थे. राजा भूमिचन्द्र ने मंदिर के भवन को बनवाया. यह भी धारणा है कि पांडव ज्वालामुखी में आए थे. कांगड़ा में एक एक भजन प्रचलित है.
अकबर भी हुआ था मां ज्वाला का मुरीद
राजा अकबर भी मां ज्वाला की परीक्षा लेने के लिए मां के दरबार में पंहुचा था. उसने ज्योतियों के बुझाने के लिए नहर का निर्माण करवाया, लेकिन मां के चमत्कार से ज्योतियां नहीं बुझ पाईं थी. फिर राजा अकबर ने यहां पर सोने का छत्र चढ़ाया था. राजा अकबर को इस पर अंहकार था कि उसने सोने का छत्र हिंदू मंदिर में चढ़ाया. लेकिन मां ज्वाला ने इस छत्र को अस्वीकार कर खंडित कर दिया था. आज भी दर्शनार्थ के लिए अकबर का छत्र मंदिर में मौजूद है.
हर साल आते हैं लाखों भक्त
ज्वालाजी मंदिर मंडप शैली निर्मित है. मुख्यमंदिर के बाहरी छत्र पर सोने का पालिश चढ़ाया गया है. इसे महाराजा रणजीत सिंह ने अपने शासनकाल में चढवाया था. उनके पौत्र कुंवर नौनिहाल सिंह ने मंदिर के मुख्य दरवाजों पर चांदी के पतरे चढ़वाऐ थे. जो कि आज भी दर्शनीय हैं.जून-जुलाई आषाढ़ शुक्ल में मां ज्वाला का प्रकटोत्सव मनाया जाता है. कहा जाता है मां ज्वाला इसी समय यहां प्रकट हुई थी. दर्शनीय स्थलटेढा मंदिर, अबिंकेश्वर महादेव, अर्जुननागा मंदिर, गोरखडिब्बी, लाल शिवालय, राधाकृष्ण मंदिर, तारा देवी, भैरव मंदिर, प्राचीन गणेश मंदिर, अष्टभुजी मंदिर ज्वालामुखी में दर्शनीय स्थल हैं. हल साल यहां पर लाखों की संख्या में भक्त आते हैं.
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