शिमला. जिस परिवारवाद को लेकर भाजपा (BJP) ने हिमाचल उपचुनाव (Himachal By elections) में टिकट बांटे, वहीं उनके लिए भारी पड़ा. आलम यह हुआ कि जुब्बल कोटखाई (Jubbal Kotkhai elections) में उसकी जमानत जब्त हो गई. जबकि परिवारवाद और अपने दादा की सियासी विरासत को संभाल रहे रोहित ठाकुर जीत गए. कांगड़ा की फतेहपुर सीट (Fatehpur by elections) पर भी कुछ ऐसा ही हुआ. भाजपा परिवारवाद के नाम पर कांग्रेस को घेरने लगी रही, लेकिन जनता ने उसी परिवारवाद की उपज और पूर्व दिवंगत विधायक सुजान सिंह पठानिया के बेटे के सिर जीत का सेहरा बांधा.
मंडी में भी परिवारवाद ही हावी रहा. यहां से वीरभद्र परिवार सबसे ज्यादा बार चुनाव लड़ा और जीता भी. नतीजा यह हुआ कि फिर से कांग्रेस की प्रतिभा सिंह सांसद बनी हैं. बीते पांच चुनाव में यहां से कांग्रेस तीन बार चुनाव जीती हैं. तीनों बार एक ही वीरभद्र सिंह परिवार पर लोगों ने भरोसा जताया है.
जुब्बल में भाजपा को तगड़ा झटका?
इतना भी गुमान न कर अपनी जीत पर ‘ऐ बेखबर’, शहर में तेरी जीत से ज्यादा चर्चे तो मेरी हार के हैं! यह शेयर जरूर चेतन बरागटा और समर्थकों के मन में चल रहा होगा. दरअसल, जुब्बल कोटखाई में भाजपा ने पूर्व मंत्री और दिवंगत विधायक नरेंद्र बरागटा के बेटे चेतन बरागटा का टिकट काट दिया. यहां पर चेतन बरागटा ने ही कांग्रेस के रोहित ठाकुर को चुनौती पेश की. उन्होंने 24 हजार के करीब वोट हासिल किए. आजाद प्रत्याशी के तौर पर उन्होंने इतने ज्यादा वोट हासिल किए, यह अपने आप में बड़ी बात है. भाजपा की नीलम सरैइक को महज 4 फीसदी मत मिले और उनकी जमानत जब्त हो गई. यूं कहें कि यहां पर कांग्रेस की जीत से ज्यादा चेतन बरागटा और भाजपा प्रत्याशी की हार के चर्चे रहे.
क्या रहा जुब्बल का परिणाम
जुब्बल-कोटखाई विधानसभा क्षेत्र से कांग्रेस के रोहित ठाकुर की जीत का 6293 वोट रहा. रोहित ठाकुर को 29, 955 भाजपा की नीलम सरैईक को महज 2644 और आजाद और बागी चेतन सिंह बरागटा को 23662 वोट मिले. भाजपा प्रत्याशी की तो जमानत ही जब्त हो गई.
कांग्रेस का गढ़ रही है सीट
यह सीट कांग्रेस का गढ़ मानी जाती है. बीते 1951 से अब तक हुए विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने दस बार इस सीट पर कब्जा जमाया है. कांग्रेस के रामलाल ठाकुर यहां से सबसे ज्यादा 6 बार विधायक रहे हैं. वहीं, उनके पोते रोहित ठाकुर ने 2012 में यहां से चुनाव लड़ा था. रोचक बात यह है कि इस सीट पर 1990 के चुनाव में वीरभद्र सिंह को रामलाल ठाकुर के हाथों हार मिली थी. भाजपा के खाते में दो बार यह सीट गई है. नरेंद्र बरागटा यहां से दो बार विधायक रहे हैं. वहीं, जनता दल ने 1990 में एक बार यह सीट जीती थी. 13 बार इस सीट पर चुनाव हुए और 10 मर्तबा कांग्रेस को यहां से जीत मिली है. 1990, 2007 और 2021 के चुनाव को छोड़ दें तो बाकी विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने इस सीट पर कब्जा जमाया है.
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