शिमला में कुत्तों और बंदरों का आतंक, DDU अस्पताल में एक साल में आए 3588 मामले

शिमला में कुत्तों और बंदरों का भारी आंतक है.
Dogs and Monkey Menace in Shimla: शहर में नवजात कुत्तों और आवारा कुत्तों को देखते हुए निगम के दावे खोखले साबित होते दिखाई दे रहे हैं.
- News18 Himachal Pradesh
- Last Updated: February 26, 2020, 10:03 AM IST
शिमला. हिमाचल प्रदेश की राजधानी शिमला (Shimla) में लोगों की खान-पान की आदतों ने शहर ने मौजूद बंदरों और कुत्तों (Dogs and Monkey) का स्वभाव बदल दिया है. शहर में कुत्तों और बंदरों का आतंक इतना बढ़ गया है कि शहर के अस्पतालों में रोजाना एक दर्जन से ज्यादा मामले इनके काटने (Byte) के आ रहे हैं. राजधानी के जिला अस्पताल दीन दयाल उपाध्याय अस्पताल (DDU Hospital) की अगर बात करें तो अकेले इस अस्पताल में साल 2019-20 में 3588 मामले जानवरों के काटने के दर्ज हुए हैं.
डॉग एडॉप्शन योजना पर सवाल
अस्पताल के मुख्य चिकित्सा अधिकारी डॉ जितेंद्र चौहान ने बतया कि जानवरों के काटने में कोई कमी नहीं आई है. जो आंकड़ा साल 2018-19 में था, वही, आंकड़ा 2019-20 में भी है. इसके अलावा, नगर निगम की डॉग एडॉप्शन योजना के बाद भी इसमें कोई कमी नहीं आई है. उन्होंने बताया अकेले इसी अस्पताल में हर माह सैंकड़ों मरीज जानवरों के काटने के पहुंचते हैं, जिन्हें एंटी रेबीज का टीका लगाकर वापिस घर भेजा जाता है.
रोजाना आठ से दस मामलेइसके अलावा, अस्पताल में रोजाना आठ से दस मामले आते हैं जिनका मुफ्त में उपचार किया जाता है. वहीं स्थानीय लोगों ने भी कुत्तों और बंदरों के बढ़ते आतंक पर नगर निगम पर सवाल उठाए हैं और इस समस्या का स्थाई समाधान करने कि मांग की है.
अकेला और सामान लेकर चलना दुश्वार
गौरतलब है कि राजधानी शिमला में आवारा कुतों और बंदरों का आतंक इतना बढ़ गया है कि शहर के किसी भी रस्ते पर अकेले नहीं चल सकते हैं. बंदरों और कुत्तों का आतंक शहर में इस कद्र बढ़ गया है कि माल और रिज में कुछ भी खाने-पीने की चीज़ों को पर्यटकों और स्थानीय लोगों से छीन कर आसानी से भाग जाते हैं. हालांकि, नगर निगम शिमला के दावे के मुताबिक़, निगम ने साल 2019 में 186 कुत्तों की नसबंदी की है. इसके अलावा, 173 कुत्तों के काटने की शिकायतों का निपटारा किया गया है.
शिमला में डॉग एडॉप्शन योजना
गौरतलब है की नगर निगम शिमला ने आवारा कुत्तों से निजात पाने के लिए शिमला में डॉग एडॉप्शन योजना शुरु की है, जिसके तहत निगम आवारा कुत्तों को गोद लेने पर पार्किंग और गारबेज फीस की फ्री सेवा देता है. अब तक इस योजना के तहत करीब 150 लोग फायदा उठा चुके हैं, लेकिन शहर में समस्या अभी भी जस की तस बनी हुई है. निगम की इस योजना के बाद भी शहर के सभी वार्डों में नवजात कुतों से लेकर बड़े आवारा कुत्तों की संख्या पर कोई लगाम नहीं लग पाई है. इससे अब निगम की डॉग एडॉप्शन योजना पर भी सवाल उठने लगे हैं. शहर में नवजात कुत्तों और आवारा कुत्तों को देखते हुए निगम के दावे खोखले साबित होते दिखाई दे रहे हैं.
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डॉग एडॉप्शन योजना पर सवाल
अस्पताल के मुख्य चिकित्सा अधिकारी डॉ जितेंद्र चौहान ने बतया कि जानवरों के काटने में कोई कमी नहीं आई है. जो आंकड़ा साल 2018-19 में था, वही, आंकड़ा 2019-20 में भी है. इसके अलावा, नगर निगम की डॉग एडॉप्शन योजना के बाद भी इसमें कोई कमी नहीं आई है. उन्होंने बताया अकेले इसी अस्पताल में हर माह सैंकड़ों मरीज जानवरों के काटने के पहुंचते हैं, जिन्हें एंटी रेबीज का टीका लगाकर वापिस घर भेजा जाता है.
रोजाना आठ से दस मामलेइसके अलावा, अस्पताल में रोजाना आठ से दस मामले आते हैं जिनका मुफ्त में उपचार किया जाता है. वहीं स्थानीय लोगों ने भी कुत्तों और बंदरों के बढ़ते आतंक पर नगर निगम पर सवाल उठाए हैं और इस समस्या का स्थाई समाधान करने कि मांग की है.
अकेला और सामान लेकर चलना दुश्वार
गौरतलब है कि राजधानी शिमला में आवारा कुतों और बंदरों का आतंक इतना बढ़ गया है कि शहर के किसी भी रस्ते पर अकेले नहीं चल सकते हैं. बंदरों और कुत्तों का आतंक शहर में इस कद्र बढ़ गया है कि माल और रिज में कुछ भी खाने-पीने की चीज़ों को पर्यटकों और स्थानीय लोगों से छीन कर आसानी से भाग जाते हैं. हालांकि, नगर निगम शिमला के दावे के मुताबिक़, निगम ने साल 2019 में 186 कुत्तों की नसबंदी की है. इसके अलावा, 173 कुत्तों के काटने की शिकायतों का निपटारा किया गया है.
शिमला में डॉग एडॉप्शन योजना
गौरतलब है की नगर निगम शिमला ने आवारा कुत्तों से निजात पाने के लिए शिमला में डॉग एडॉप्शन योजना शुरु की है, जिसके तहत निगम आवारा कुत्तों को गोद लेने पर पार्किंग और गारबेज फीस की फ्री सेवा देता है. अब तक इस योजना के तहत करीब 150 लोग फायदा उठा चुके हैं, लेकिन शहर में समस्या अभी भी जस की तस बनी हुई है. निगम की इस योजना के बाद भी शहर के सभी वार्डों में नवजात कुतों से लेकर बड़े आवारा कुत्तों की संख्या पर कोई लगाम नहीं लग पाई है. इससे अब निगम की डॉग एडॉप्शन योजना पर भी सवाल उठने लगे हैं. शहर में नवजात कुत्तों और आवारा कुत्तों को देखते हुए निगम के दावे खोखले साबित होते दिखाई दे रहे हैं.
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