होम /न्यूज /हिमाचल प्रदेश /Indo-Pak Shimla Agreement: आधी रात को हुआ था समझौता, इंदिरा-भुट्टो ने पत्रकार की कलम से किए थे साइन

Indo-Pak Shimla Agreement: आधी रात को हुआ था समझौता, इंदिरा-भुट्टो ने पत्रकार की कलम से किए थे साइन

शिमला समझौता 3 जुलाई 1972 को हुआ था.

शिमला समझौता 3 जुलाई 1972 को हुआ था.

Indo-Pak Shimla Agrement: दोनों देशों ने तय किया था कि भविष्य में दोनों देश अपने झगड़े आपस में बिना किसी मध्यस्थता के म ...अधिक पढ़ें

    शिमला. जब भी भारत-पाकिस्तान (India Pakistan) की बात होगी तो 3 जुलाई 1972 की तारीख हमेशा याद की जाएगी. 3 जुलाई को इंदिरा गांधी और जुल्फिकार अली भुट्टो के बीच ऐतिहासिक शिमला समझौता हुआ था. आज उस समझौते को पूरे 49 साल हो गए हैं. हिमाचल प्रदेश की राजधानी शिमला में ऐसी बहुत सी ऐसी ऐतिहासिक यादें जुड़ी हैं जिनका भारतीय इतिहास में काफी महत्व है.

    राजभवन को बार्नेस कोर्ट भी कहा जाता था

    शिमला के राजभवन, जिसे उस समय हिमाचल भवन या बार्नेस कोर्ट भी कहा जाता था. साल 1971 के युद्ध के बाद जुल्फिकार अली भुट्टो ने इंदिरा गांधी के पास बातचीत का संदेश भिजवाया था. इंदिरा ने बात आगे बढ़ाने का फैसला लिया और 28 जून से 2 जुलाई के बीच शिमला में शिखर वार्ता तय हुई. तय कार्यक्रम के अनुसार पाकिस्तानी प्रतिनिधिमंडल के साथ भुट्टो भारत पहुंचे और भारतीय दल यहां पहले से मौजूद था.

    खटाई में पड़ गया था समझौता

    भारत ने पाकिस्तान के सामने दो तीन प्रमुख बातें रखीं, लेकिन पाकिस्तान ने इसे मानने से इंकार कर दिया. बात बिगड़ गई और पहली जुलाई को तय हो गया कि समझौता नहीं होगा. दो जुलाई को पाकिस्तानी दल के लिए विदाई भोज रखा गया था. उम्मीद थी कि भोजन के दौरान शायद कोई बात बन जाएगी, लेकिन जब ऐसा नहीं हुआ तो वहां मौजूद मीडिया समेत अधिकांश अधिकारियों ने भी सामान समेट लिया था. भारत ने पाकिस्तान के सामने दो तीन प्रमुख बातें रखीं, लेकिन पाकिस्तान ने इसे मानने से इंकार कर दिया. बात बिगड़ गई और पहली जुलाई को तय हो गया कि समझौता नहीं होगा.

    समझौता रद्द होने की खबर जा चुकी थी

    हिमाचल प्रदेश के गवर्नर के पूर्व मीडिया सलाहकार शशिकांत शर्मा ने बताया​ कि इस घटना को कवर कर रहे पत्रकार भी जब अपना सामान बांध वापस जाने की तैयारी करने लगे थे तारघर, जिसे अब सीटीओ के नाम से जाना जाता है, वहां जाकर टेलीग्राफी के जरिए खबर भिजवा दी कि समझौता रद्ध हो चुका है. खबर जा चुकी थी. लेकिन, अचानक राजभवन से संदेशा आया. रात के साढ़े नौ बजे थे. राजभवन में इंदिरा गांधी और जुल्फिकार भुट्टो बैठे थे.

    रात को पौन एक बजे हुए समझौते पर दस्तखत

    करीब एक घंटे की बातचीत के बाद तय हुआ कि समझौता होगा और अभी होगा. आनन फानन में समझौते के दस्तावेज बनाए गए और 12 बजकर 40 मिनट पर शिमला समझौता हुआ, इसलिए समझौता के हस्ताक्षर की तारीख 3 जुलाई, 1972 दर्ज हुई. समझौते की ठीक तीन मिनट बाद ही इंदिरा गांधी वहां से खुद दस्तावेज लेकर चली गईं.

    शिमला के राजभवन में लगी इंदिरा की तस्वीर.

    मुहर नहीं लग पाई, क्यों पाकिस्तान भेज चुका था सामान

    दोनों नेताओं ने जिस टेबल पर समझौता किया, उस पर टेबल क्लॉथ तक नहीं था, उसपर कमरे का पर्दा उतारकर बिछाया गया था. यहां तक की दस्तावेजों पर हस्ताक्षर करने के लिए जब कलम की बात आई तो एक पत्रकार ने अपना पेन दे दिया था. यहां तक कि दस्तावेजों पर दोनों देशों की मुहर तक नहीं लग पाई, क्योंकि पाकिस्तानी दल अपना सामान सड़क मार्ग से दोपहर को भी भेज चुका था. ऐसे में इंदिरा गांधी ने भी मुहर के बिना दस्तखत किए. हालांकि बाद में मुहर लगाने की औपचारिकताएं पूरी हुईं.

    बेगम की जगह बेटी 

    बेगम की जगह बेटी को साथ लाए पाक पीएम: इस समझौते से जुड़ा एक और मजेदार किस्स भी है इस यात्रा में भुट्टो के साथ उनकी बेगम को आना था, लेकिन बीमार होने के चलते भुट्टो अपनी बेटी बेनजीर को ले लाए. जो उस समय महज 18 साल की थीं. लोग बेनजीर को एक नज़र देखने के लिए दीवाने हो गए थे. बेनजीर भुट्टो की जीवनी -डॉटर ऑफ ईस्ट में भी इसका जिक्र है कि शिमला बेनजीर की झलक पाने को दीवाना हो गया था.

    भुट्टो पर 93 हजार सैनिकों को रिहा करवाने का दवाब था

    दरअसल, भारत ने इस समझौते के जरिए एक बड़ा मास्टर स्ट्रोक लगाया था. भुट्टो पर 93 हजार पाक सैनिकों को भारतीय कैद से रिहा करवाने का दबाव था, इसलिए उन्होंने इस मौके पर कश्मीर का जिक्र तक नहीं किया, उधर, समझौते में भुट्टो के हाथ से लिखवा लिया गया कि दोनों देश 17 दिसंबर 1971 की स्थितियों के अनुसार अपनी-अपनी जगह पर रहेंगे और उसी को एलओसी माना जाएगा. दोनों देशों ने तय किया था कि भविष्य में दोनों देश अपने झगड़े आपस में बिना किसी मध्यस्थता के मिल-बैठ कर सुलझाएंगे. यह मास्टर स्ट्रोक था, जिसके दम पर आज तक भारत तीसरे पक्ष को दूर रखने में कामयाब है.

    आज भी मौजूद है वो टेबल

    शिमला समझौता जिस टेबल पर हुआ उसे आनन-फानन में राजभवन के किसी कोने से लाकर रखा गया था, लेकिन आज वही टेबल ऐतिहासिक हो गया है और राजभवन के मुख्य हॉल में शान से रखा गया है. उस वक्त रखे गए दोनों देशों के छोटे ध्वज भी टेबल पर मौजूद हैं. समझौते की गवाह एक ब्लैक एंड व्हाइट तस्वीर टेबल के पीछे दीवार पर टंगी है तो दो फ्रेम की गई तस्वीरें टेबल पर हैं. तमाम सुरक्षा प्रबंधों के बावजूद इस टेबल को राजभवन जाकर देखने वालों को आज भी बिना बिलंब भीतर जाने की इज़ाज़त दी जाती है.

    Tags: Himachal pradesh, Indo Pak Partition, Shimla

    टॉप स्टोरीज
    अधिक पढ़ें