73 वर्षीय उमेश आकरे ने बताया कि ये सोच उनके छोटे बेटे आदित्य आकरे और बहू पलक अरोड़ा आकरे की थी. दोनों चंडीगढ़ में रहते हैं. बेटे और बहू ने जब इसके बारे में बात की तो कई सवाल उठे कि ये सब कैसे होगा. वो लोग चंडीगढ़ में हैं और यहां इस उम्र में कैसे सब मैनेज होगा और कैसे इस पहल को अंजाम दिया जाएगा. कैसे लोग हमसे संपर्क करेंगे. फिर उनको बेटे और बहू ने प्लान बनाकर भेजा कि कैसे स्टार्ट करना है. उसके बाद इस पहल पर कार्य शुरू कर दिया. उमेश आकरे ने बताया कि उन्होंने इस पहल की जानकारी अपने व्हाट्सएप ग्रुप में भेजी. बेटे और बहू ने अपने परिचितों को संदेश भेजे कि जो कोरोना पीड़ित जरूरतमंद है, वो हमसे मदद ले सकता है. इतना ही नहीं, उमेश आकरे की बेटी, जो अंडमान निकोबार में रहती है, उसने वहां से अपने ग्रूप में मैसेज भेजे. संपर्क करने के लिए आदित्य का मोबाइल नंबर और होटल के रिसेप्शन का नंबर दिया गया है. जो मदद मांगता है, उसे कोविड पॉजिटिव होने संबंधी दस्तावेज भेजने होते हैं. क्रॉस चेक करने के बाद उसे खाना पहुंचाया जाता है.
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