इशांत जसवाल को 80वीं तो अभिषेक धीमान को 374वीं रैंक मिली है.
शिमला. हिमालच प्रदेश के पांच युवाओं ने इस बार यूपीएससी परीक्षा (UPSC 2020 Result) में अपना परचम लहराया है. इस दौरान बिलासपुर के घुमारवीं की ग्राम पंचायत पडयालग के रहने वाले इशांत जसवाल (Ishant Jaswal) ने यूपीएससी परीक्षा में देश भर में 80वीं ऑल इंडिया रैंक हासिल कर अपना डंका बजवाया है. वहीं, सोलन से व्योम बिंदल (141वीं रैंक), हमीरपुर के अभिषेक धीमान (374वां स्थान), सिरमौर के कोलार के उमेश लबाना (397वां) और सोलन जिले के बद्दी के विशाल चौधरी (665वां स्थान) ने यूपीएससी परीक्षा में अपना दम दिखाया है. अच्छी बात ये है कि इसमें कोई किसान का बेटा है तो किसी के पिता सरकारी विभाग में कार्यरत हैं.
हिन्दुस्तान टाइम्स की रिपोर्ट के अनुसार, नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी (एनआईटी), हमीरपुर के मैकेनिकल इंजीनियरिंग स्नातक 24 वर्षीय इशांत जसवाल ने 80वीं रैंक हासिल की है. उन्होंने यूपी के नोएडा में एक बहुराष्ट्रीय कंपनी में करीब एक साल तक काम किया और माता-पिता के सपने का पूरा करने लिए अपनी नौकरी छोड़कर यूपीएससी की तैयारी की. जसवाल ने कहा कि इस नौकरी के दौरान ही मैंने सिविल सेवा परीक्षा देने का फैसला किया. नौकरी छोड़ने के बाद दिल्ली में कोचिंग ली और अपने पहले प्रयास में ही परीक्षा पास कर ली. उनके पिता ने सेना में सेवा की, जबकि उनकी मां गृहिणी हैं.
अभिषेक धीमान: आबकारी अधिकारी से आईएएस
27 वर्षीय अभिषेक धीमान हमेशा से आईएएस अधिकारी बनने का सपना देखा करते थे. इंजीनियरिंग स्नातक धीमान को पहले आबकारी और कराधान निरीक्षक के पद के लिए चुना गया था, लेकिन वह सेवा में नहीं गए. बाद में उन्होंने एक वर्ष के लिए खंड विकास अधिकारी (बीडीओ) के रूप में कार्य किया. उसके बाद उन्होंने राज्य सिविल सेवा परीक्ष पास की और हिमाचल लोक प्रशासनिक संस्थान (एचआईपीए), शिमला में प्रशिक्षण प्राप्त कर रहे थे. धीमान ने कहा कि उन्होंने यूपीएससी के लिए कोई कोचिंग नहीं ली और यह उनका तीसरा प्रयास था. वह हमीरपुर जिले के नादौन अनुमंडल के जालोर के रहने वाले हैं. उनके पिता लोक निर्माण विभाग में उप-मंडल अधिकारी (एसडीओ) के पद से सेवानिवृत्त हुए और मां टीचर हैं. उन्होंने अपनी स्कूली शिक्षा हमीरपुर और कुल्लू से की और तमिलनाडु के वेल्लोर इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी से मैकेनिकल इंजीनियरिंग की डिग्री हासिल की है. वहीं, धीमान ने नियमित रिवीजन पर जोर दिया. उन्होंने कहा,’इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि आप कितने घंटे पढ़ते हैं, लेकिन नियमित रिवीजन सफलता की कुंजी है.’
उमेश लबाना: दिव्यांगता अवरोधक नहीं
सिरमौर में पांवटा साहिब के कोलार के रहने वाले उमेश लबाना की 100 फीसदी दृष्टि दिव्यांगता यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा में उनकी सफलता में बाधक नहीं बनी. लबाना ने देश भर में 397 वां और दृष्टिबाधित वर्ग में शीर्ष स्थान प्राप्त किया. उन्होंने हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय से राजनीति विज्ञान में एमए किया और नेट-जेआरएफ परीक्षा भी पास की. लबाना ने कहा कि सिविल सेवा परीक्षा पास करना उनका हमेशा से पहला उद्देश्य रहा है. वह वर्तमान में जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू) से पीएचडी कर रहे हैं. विकलांगता पर राज्य सलाहकार बोर्ड के विशेषज्ञ सदस्य प्रो अजय श्रीवास्तव ने कहा कि लबाना हमेशा एक मेधावी छात्र थे. उन्होंने अपनी पढ़ाई में सहायता के लिए प्रौद्योगिकी का पूरा लाभ उठाया. उन्होंने पिछले साल भी सिविल सेवा परीक्षा पास की थी, लेकिन इंटरव्यू राउंड में असफल रहे थे. लबाना के पिता एक किसान हैं और मां शिक्षिका पद से सेवानिवृत्त हुई हैं.
विशाल चौधरी: लोगों की सेवा करने की इच्छा
26 वर्षीय विशाल चौधरी ने अपने तीसरे प्रयास में सिविल सेवा परीक्षा में सफलता प्राप्त की है. चौधरी ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा अरबिंदो स्कूल बद्दी से प्राप्त की और 12 वीं कक्षा गवर्नमेंट मॉडल सीनियर सेकेंडरी स्कूल, सेक्टर 35, चंडीगढ़ से ली. इसके बाद उन्होंने श्री राम कॉलेज ऑफ कॉमर्स से बी.कॉम और दिल्ली स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स से एम.कॉम किया. उन्होंने 2018 में NET-JRF पास किया और साथ ही साथ सिविल सेवा परीक्षा में बैठे थे. उनके पिता राज्य सरकार के आयुर्वेद विभाग में फार्मासिस्ट के रूप में काम करते हैं. वहीं, चौधरी अपनी सफलता का श्रेय अपने माता-पिता और शिक्षकों को देते हैं. उन्होंने कहा,’यदि आप समर्पण के साथ काम करते हैं तो कोई लक्ष्य दूर नहीं है. वह हमेशा लोगों के लिए काम करना चाहते थे और आखिरकार उनका सपना साकार हो गया.’
योम बिंदल: सात साल की मेहनत
29 वर्षीय व्योम बिंदल ने छठे प्रयास में यूपीएससी की परीक्षा पास की. उन्होंने एनआईटी हमीरपुर से मैकेनिकल इंजीनियरिंग में स्नातक किया है. उन्होंने सिविल सेवा परीक्षा देने से पहले कुछ समय के लिए एक बहुराष्ट्रीय कंपनी में भी काम किया. उन्होंने 141वीं रैंक हासिल की है. बिंदल ने कहा कि असफलता से निराश नहीं होना चाहिए.
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