Struggle Story: हादसे में गंवाई टांगें, अब बेड पर लेटकर लोहे का सामान बनाते हैं विशन दास

ऊना के विशन दास ने एक हादसे में अपनी दोनों टांगें गंवा दी. बीते 12 वर्षों से बेड पर लेटकर लोहे का सामान बनाते हैं.
ऊना (Una) के वार्ड नंबर एक का विशन दास दिव्यांगों (Divyang) के लिए मिसाल बनता जा रहा है. एक हादसे में विशन दास (Vishan Das) की दोनों टांगों (Lost his legs) ने उनका साथ छोड़ दिया लेकिन इसके बावजूद भी उन्होंने हार नहीं मानी और आज अपनी हिम्मत और मेहनत के बल पर अपने परिवार का पालन पोषण कर रहे हैं.
- News18 Himachal Pradesh
- Last Updated: November 16, 2019, 6:56 PM IST
ऊना. हिमाचल प्रदेश में ऊना (Una) के वार्ड नंबर एक का विशन दास दिव्यांगों (Divyang) के लिए मिसाल बनता जा रहा है. एक हादसे में विशन दास (Vishan Das) की दोनों टांगों (Lost his legs) ने उनका साथ छोड़ दिया लेकिन इसके बावजूद भी उन्होंने हार नहीं मानी और आज अपनी हिम्मत और मेहनत के बल पर अपने परिवार का पालन पोषण कर रहे हैं. विशन दास पिछले 12 सालों से बिस्तर पर लेटकर ही वेल्डिंग का काम कर रहे हैं. विशन दास की हाथों में ऐसा जादू है कि उसके द्वारा बनाये गए लोहे के उत्पादों को देखकर कोई यह नहीं सकता कि इसे किसी दिव्यांग द्वारा बिस्तर पर लेटे लेटे बनाया गया है.
राह में बहुत हैं रोड़े
ऊना के वार्ड नंबर एक के निवासी विशन दास ने एक हादसे में अपनी टांगें गंवा दी. विशन दास ने अपनी दिव्यांगता को अपने काम में रोड़ा नहीं बनने दिया और बिस्तर पर लेटकर ही लोहे के उत्पाद बनाकर अपने परिवार का पेट पाल रहे हैं. विशन को दिक्कतें हर राह पर मिलती रहीं. वे उन्हें पार कर आगे बढ़ते रहे. ऊना के वार्ड नंबर एक में उसके घर तक जाने के लिए कोई रास्ता नहीं है. उनके आसपास के जमीन मालिकों ने अपनी जमीनों पर तारबंदी कर दी है इसलिए लोहे का भारी भरकम सामान उनके परिवार को कंधों पर उठाकर ही घर पहुंचाना पड़ता है.
15 साल पहले विशन के कामगार ने मारी थी गोलीविशन दास का करीब 15 साल पहले तक दिल्ली में वेल्डिंग का बहुत ही बढ़िया काम चल रहा था, लेकिन वर्ष 2004 में विशन दास के साथ एक दुखद हादसा घटा. आपसी लेन देन के कारण उसी के एक सहयोगी कामगार ने उसकी पीठ में गोली मार दी और इसके चलते उसे पैर गंवाना पड़ गया. विशन दास की कमर के नीचे के हिस्से ने पूरी तरह से काम करना बंद कर दिया तब दिल्ली में सारा काम छोड़ छाड़कर उसे अपने घर ऊना वापिस आना पड़ गया. दिल्ली से विशन दास अकेला नहीं आया बल्कि लोहे के उत्पाद बनाने में प्रयोग होने वाला अपना सारा सामान भी ऊना ले आया.
तीन साल तक बिस्तर पर ही पड़ा रहा विशन
हादसे के बाद विशन दास पूरी तरह से टूट गया और तीन साल तक बिस्तर पर ही पड़ा रहा, लेकिन इसके बाद जब उसे लगा कि उसपर पत्नी के साथ साथ एक बेटे और दो बेटियों की जिम्मेवारी भी है तो विशन दास ने हिम्मत रखते हुए बिस्तर पर लेटे लेटे ही वेल्डिंग का छोटा छोटा काम करना शुरू कर दिया और उसका नतीजा यह हुआ कि आज विशन दास वेल्डिंग का बड़े से बड़ा काम करने से भी पीछे नहीं हटता है.
पत्नी और बेटियां करती हैं के कामकाज में सहयोग
विशन दास की हिम्मत को आगे बढ़ाने में उसके पूरे परिवार ने पूरा सहयोग किया. विशन दास की एक बेटी बीए और दूसरी बेटी बीएससी की शिक्षा ग्रहण कर रही है जबकि बेटा आईटीआई में डीजल मैकेनिक की पढ़ाई करने के बाद एक निजी कम्पनी में काम कर रहा है. विशन दास के काम में उसकी पत्नी और बेटियां भी हाथ बंटाती हैं. विशन दास अपनी पत्नी सुरजीत कौर को इस हौसले का सबसे अधिक श्रेय देते हैं. बिशन दास की बेटियां अपने पिता की हिम्मत से बहुत प्रभावित है और उन्हें अपने पिता पर बहुत गर्व हैं. विशन दास की बड़ी बेटी प्रिया की माने तो उसके असली हीरो तो उसके पिता ही है.
पूर्व पार्षद ने विशन को पेंशन की राशि बढ़ाकर 5000 रुपये करने की मांग उठाई
ऊना नगर के पूर्व पार्षद एवं समाजसेवी नवदीप कश्यप ने कहा कि विशन उसके बचपन का साथी है. नवदीप कश्यप की मानें तो विशन दास को सरकार की ओर से केवल 1500 रुपये दिव्यांगता पेंशन मिल रही है. कश्यप ने सरकार से सौ प्रतिशत दिव्यांगों के लिए पेंशन राशि बढ़ाकर पांच हजार करने की मांग उठाई है.
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राह में बहुत हैं रोड़े
ऊना के वार्ड नंबर एक के निवासी विशन दास ने एक हादसे में अपनी टांगें गंवा दी. विशन दास ने अपनी दिव्यांगता को अपने काम में रोड़ा नहीं बनने दिया और बिस्तर पर लेटकर ही लोहे के उत्पाद बनाकर अपने परिवार का पेट पाल रहे हैं. विशन को दिक्कतें हर राह पर मिलती रहीं. वे उन्हें पार कर आगे बढ़ते रहे. ऊना के वार्ड नंबर एक में उसके घर तक जाने के लिए कोई रास्ता नहीं है. उनके आसपास के जमीन मालिकों ने अपनी जमीनों पर तारबंदी कर दी है इसलिए लोहे का भारी भरकम सामान उनके परिवार को कंधों पर उठाकर ही घर पहुंचाना पड़ता है.
15 साल पहले विशन के कामगार ने मारी थी गोलीविशन दास का करीब 15 साल पहले तक दिल्ली में वेल्डिंग का बहुत ही बढ़िया काम चल रहा था, लेकिन वर्ष 2004 में विशन दास के साथ एक दुखद हादसा घटा. आपसी लेन देन के कारण उसी के एक सहयोगी कामगार ने उसकी पीठ में गोली मार दी और इसके चलते उसे पैर गंवाना पड़ गया. विशन दास की कमर के नीचे के हिस्से ने पूरी तरह से काम करना बंद कर दिया तब दिल्ली में सारा काम छोड़ छाड़कर उसे अपने घर ऊना वापिस आना पड़ गया. दिल्ली से विशन दास अकेला नहीं आया बल्कि लोहे के उत्पाद बनाने में प्रयोग होने वाला अपना सारा सामान भी ऊना ले आया.
तीन साल तक बिस्तर पर ही पड़ा रहा विशन
हादसे के बाद विशन दास पूरी तरह से टूट गया और तीन साल तक बिस्तर पर ही पड़ा रहा, लेकिन इसके बाद जब उसे लगा कि उसपर पत्नी के साथ साथ एक बेटे और दो बेटियों की जिम्मेवारी भी है तो विशन दास ने हिम्मत रखते हुए बिस्तर पर लेटे लेटे ही वेल्डिंग का छोटा छोटा काम करना शुरू कर दिया और उसका नतीजा यह हुआ कि आज विशन दास वेल्डिंग का बड़े से बड़ा काम करने से भी पीछे नहीं हटता है.
पत्नी और बेटियां करती हैं के कामकाज में सहयोग
विशन दास की हिम्मत को आगे बढ़ाने में उसके पूरे परिवार ने पूरा सहयोग किया. विशन दास की एक बेटी बीए और दूसरी बेटी बीएससी की शिक्षा ग्रहण कर रही है जबकि बेटा आईटीआई में डीजल मैकेनिक की पढ़ाई करने के बाद एक निजी कम्पनी में काम कर रहा है. विशन दास के काम में उसकी पत्नी और बेटियां भी हाथ बंटाती हैं. विशन दास अपनी पत्नी सुरजीत कौर को इस हौसले का सबसे अधिक श्रेय देते हैं. बिशन दास की बेटियां अपने पिता की हिम्मत से बहुत प्रभावित है और उन्हें अपने पिता पर बहुत गर्व हैं. विशन दास की बड़ी बेटी प्रिया की माने तो उसके असली हीरो तो उसके पिता ही है.
पूर्व पार्षद ने विशन को पेंशन की राशि बढ़ाकर 5000 रुपये करने की मांग उठाई
ऊना नगर के पूर्व पार्षद एवं समाजसेवी नवदीप कश्यप ने कहा कि विशन उसके बचपन का साथी है. नवदीप कश्यप की मानें तो विशन दास को सरकार की ओर से केवल 1500 रुपये दिव्यांगता पेंशन मिल रही है. कश्यप ने सरकार से सौ प्रतिशत दिव्यांगों के लिए पेंशन राशि बढ़ाकर पांच हजार करने की मांग उठाई है.
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