आखिर क्यों जरूरी था जम्मू-कश्मीर से लद्दाख को अलग करना?

लद्दाख का पूरा इलाका बौद्ध बाहुल्य है.
लद्दाख का पूरा इलाका बौद्ध बाहुल्य है. इस इलाके को 1979 में करगिल और लेह दो जिलों में बांटा गया था.
- News18Hindi
- Last Updated: August 6, 2019, 3:25 PM IST
जम्मू-कश्मीर में आर्टिकल 370 को निष्प्रभावी करने के बाद राज्य का पुनर्गठन करने की तैयारी भी हो गई है. राज्यसभा में राज्य का पुनर्गठन के बिल पास होने के बाद ये तय है कि जम्मू-कश्मीर दो हिस्सों में बंट जाएगा, क्योंकि सराकर के पास लोकसभा में पहले से ही स्पष्ट बहुमत है. ऐसे में बिल पास होने के बाद लद्दाख एक अलग केंद्र शासित प्रदेश के रूप में भारत के नक्शे पर आ जाएगा. लेकिन यहां सवाल ये है कि आखिर केंद्र सरकार को आर्टिकल 370 को निष्प्रभावी करने के साथ-साथ लद्दाख को अलग करने की जरूरत क्यों पड़ी.
लंबे अर्से से लद्दाख को अलग करने की हो रही थी मांग
लद्दाख का पूरा इलाका बौद्ध बाहुल्य है. इस इलाके को 1979 में करगिल और लेह दो जिलों में बांटा गया था. लेह जिले में 90 फीसदी के आस-पास बौद्ध आबादी है और सैकड़ों की संख्या में मठ बने हुए हैं. इस इलाके में करीब 20 फीसदी मुसलमान हैं जो ज्यादातर करगिल जिले में रहते हैं. 1989 में पहली बार इस इलाके में बौद्ध और मुसलमानों के बीच दंगे हुए थे. उसके बाद से ही लद्दाख को जम्मू-कश्मीर से अलग करने की मांग तेज होने लगी थी. सन 1989 में ही लद्दाख ऑटोनामस हिल डेवलपमेंट काउंसिल का गठन हुआ और तब से ही लद्दाख को जम्मू-कश्मीर से अलग करने की मांग तेज होती गई. इस पूरे इलाके की संस्कृति जम्मू और कश्मीर दोनों से अलग है. इसलिए यहां के स्थानीय लोग अक्सर स्थानीय सरकार के खिलाफ रहते थे.
फैसले के बाद क्या हैं लद्दाख के हालातलद्दाख से जो खबरे अब तक आ रही हैं उनसे एक बात तय है कि करगिल के कुछ इलाकों को छोड़कर लद्दाख के लोग केंद्र सरकार के इस फैसले का स्वागत कर रहे हैं. हालंकि, कुछ लोग केंद्र शासित राज्य बनाए जाने की बजाय पूर्ण राज्य का दर्जा देने पर ज्यादा खुश होते, लेकिन स्थानीय लोगों का मानना है कि ये शुरुआत है और इससे इस इलाके में विकास की रफ्तार तेज होगी.
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लंबे अर्से से लद्दाख को अलग करने की हो रही थी मांग
लद्दाख का पूरा इलाका बौद्ध बाहुल्य है. इस इलाके को 1979 में करगिल और लेह दो जिलों में बांटा गया था. लेह जिले में 90 फीसदी के आस-पास बौद्ध आबादी है और सैकड़ों की संख्या में मठ बने हुए हैं. इस इलाके में करीब 20 फीसदी मुसलमान हैं जो ज्यादातर करगिल जिले में रहते हैं. 1989 में पहली बार इस इलाके में बौद्ध और मुसलमानों के बीच दंगे हुए थे. उसके बाद से ही लद्दाख को जम्मू-कश्मीर से अलग करने की मांग तेज होने लगी थी. सन 1989 में ही लद्दाख ऑटोनामस हिल डेवलपमेंट काउंसिल का गठन हुआ और तब से ही लद्दाख को जम्मू-कश्मीर से अलग करने की मांग तेज होती गई. इस पूरे इलाके की संस्कृति जम्मू और कश्मीर दोनों से अलग है. इसलिए यहां के स्थानीय लोग अक्सर स्थानीय सरकार के खिलाफ रहते थे.
फैसले के बाद क्या हैं लद्दाख के हालातलद्दाख से जो खबरे अब तक आ रही हैं उनसे एक बात तय है कि करगिल के कुछ इलाकों को छोड़कर लद्दाख के लोग केंद्र सरकार के इस फैसले का स्वागत कर रहे हैं. हालंकि, कुछ लोग केंद्र शासित राज्य बनाए जाने की बजाय पूर्ण राज्य का दर्जा देने पर ज्यादा खुश होते, लेकिन स्थानीय लोगों का मानना है कि ये शुरुआत है और इससे इस इलाके में विकास की रफ्तार तेज होगी.
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