रिपोर्ट- मृत्युंजय कुमार
बोकारो. इस दुनिया में आप चाहे कुछ भी कर लें, ज्ञान बिना कुछ नहीं और बिन शिक्षा ज्ञान नहीं. आज के दौर में शिक्षा का अधिकार सभी को है चाहे गरीब हो या अमीर. शिक्षा हर किसी की जरूरत है और शिक्षा के बिना जीवन में सफलता पाना नामुमकिन है. आज के दौर में शिक्षा का महत्व और इसकी जरूरत हर कोई जानता है. लेकिन एक दौर वह भी था जब अज्ञानता वश गरीबों में शिक्षा का स्तर काफी नीचे था. उस वक्त लगभग 27 साल पहले राजमिस्त्री का काम करने वाले सातवीं पास परशुराम राम ने मन में ठान लिया कि गरीब तबके और असहायों के बच्चों को शिक्षित करेंगे. वह भी फ्री.
बोकारो के सेक्टर 12 में झोपड़ी में रहने वाले 68 वर्षीय सातवीं कक्षा पास राजमिस्त्री परशुराम जो झुग्गी झोपड़ी में रहने वाले गरीब बच्चों कक्षा 1 से 5 तक की शिक्षा 27 वर्षों से फ्री में दे रहे हैं और समाज में ज्ञान का प्रकाश फैलाने का काम कर रहे हैं. आज से लगभग 27 साल पहले बोकारो के सेक्टर 12 में झोपड़ी नुमा स्कूल बिरसा मुंडा नि:शुल्क विद्यालय की स्थापना उन्होंने की थी. जिसमें गरीब के बच्चों को फ्री में पढ़ाई के साथ किताब, कॉपी और ड्रेस भी दिया जाता है.
परशुराम बताते हैं कि उनके माता पिता अत्यंत ही गरीब थे और मजदूरी करते थे. वह इतना कमा नहीं पाते थे कि अपने बच्चों को पढ़ा सके. किसी तरह परशुराम ने अपनी सातवीं की पढ़ाई पूरी की. जिसके बाद राजमिस्त्री का काम करने लगे. एक दिन काम के दौरान एक महिला लेबर काम को बीच में रोककर रोते बिलखते अपने बच्चे को स्तनपान कराने लगी. तभी ठेकेदार वहां आया और उस महिला लेबर को फटकार लगाई और स्तनपान कर रहे बच्चे को मां से अलग कर दिया और कहां काम नहीं रुकना चाहिए. तभी परशुराम ने यह देखा और मन में ठान ली कि हर गरीब के बच्चे को अच्छी शिक्षा दूंगा. ताकि पढ़ लिख कर वह अच्छा काम करे. तभी से उसने राजमिस्त्री का काम छोड़कर अपनी सारी जमा पूंजी विद्यालय खोलने में लगा दी.
शुरुआत में ही उन्होंने 17 बच्चों को शिक्षा दिलाने का काम शुरू किया और अब तक लगभग 4500 बच्चे यहां से नि:शुल्क शिक्षा प्राप्त कर चुके हैं. इतना ही नहीं यहां बच्चों को पढ़ाने के लिए जो शिक्षक-शिक्षिका हैं, वह भी अपनी सेवाभाव से नि:शुल्क योगदान दे रहे हैं. बिना वेतन लिए ही बच्चों को पढ़ाने के लिए अपना पूरा समय समर्पित कर अपने सामाजिक दायित्व का निर्वाह कर रहे हैं.
बोकारो स्टील कर्मी की पत्नी अनिता कुमारी ने बताया कि वह अपने खाली समय में इन गरीब बच्चों को पढ़ाने का काम करती है. इस काम को करने से मन को काफी सुकून मिलता है. ताकि यह गरीब बच्चे पढ़ लिख कर कुछ अच्छा कर सकें.
परशुराम ने अपना पूरा जीवन बच्चों को शिक्षा देने में लगा दिया है. उन्हें 2006 में जनकल्याण सामाजिक संस्था के नाम से मान्यता भी मिल गई. परशुराम बताते हैं कि बच्चों को पढ़ने के लिए कॉपी किताब कपड़े व स्कूल में बैठने के लिए टेबल आदि लोगों के सहयोग से तथा कुछ सामाजिक संगठनों की मदद समय-समय पर मिलती रहती है. लेकिन बच्चे आज भी झोपड़ी नुमा विद्यालय में पढ़ रहे हैं. अगर सरकार कुछ मदद करती है तो जो सुविधाओं का अभाव है उसको दूर करते हुए शिक्षा के स्तर को और बेहतर बनाया जा सकता है.
आपको बता दें कि परशुराम हमेशा बच्चों की पढ़ाई को लेकर अपने विद्यालय की निगरानी में रहते हैं और खाली समय मिलने पर वह फावड़ा लेकर खेतों में भी चल पड़ते हैं. साथ ही साथ आसपास के जितने भी झुग्गी झोपड़ी बस्तियां हैं जहां ठेला चालक, रिक्शा चालक, दैनिक मजदूरी करने वाले लोग रहते हैं. उन्हें शिक्षा को लेकर जागरूक भी करते हैं और बच्चों को स्कूल में भेजने के लिए प्रेरित भी करते हैं. वहां आसपास के लोग भी परशुराम के काम से काफी प्रभावित है और खुशी मन से अपने बच्चों को उनके विद्यालय भेजकर शिक्षा दिला रहे हैं.
ब्रेकिंग न्यूज़ हिंदी में सबसे पहले पढ़ें News18 हिंदी | आज की ताजा खबर, लाइव न्यूज अपडेट, पढ़ें सबसे विश्वसनीय हिंदी न्यूज़ वेबसाइट News18 हिंदी |
Tags: Bokaro news, Jharkhand news