स्वयं भगवान ब्रह्मा और बिष्णु ने भैरव के नाम पर यहां का नाम बैद्यनाथ धाम रखा (फाइल फोटो)
देवघर के बैद्यनाथ धाम की गिनती देश के पवित्र द्वादश ज्योतिर्लिंगों में होती है. शास्त्रों में भी यहां की महिमा का उल्लेख है. मान्यता है कि सतयुग में ही यहां का नामकरण हो गया था. स्वयं भगवान ब्रह्मा और बिष्णु ने भैरव के नाम पर यहां का नाम बैद्यनाथ धाम रखा. ऐसी आस्था है कि यहां मांगी हर मनोकामनाएं पूरी होती हैं. इसके लिए सावन का महीना खास होता है. इसलिए पूरे सावन में यहां श्रद्धालुओं का तांता लगा रहता है.
बाबा बैद्यनाथ की महिमा अपार
वरिष्ठ तीर्थ पुरोहित पंडित दुर्लभ मिश्रा कहते हैं कि शास्त्रों के अनुसार यहां माता सती के हृदय और भगवान शिव के आत्मलिंग का सम्मिश्रण है. इसलिए यहां के ज्योतिर्लिंग में अपार शक्ति है. यहां सच्चे मन से पूजा- पाठ और ध्यान करने पर हर मनोकामना अवश्य पूरी होती है. बड़े- बड़े साधु- संत मोक्ष पाने के लिए यहां आते हैं.
ऐसे पड़ा बैद्यनाथ नाम
पंडित दुर्लभ मिश्रा कहते हैं कि शिवपुराण के शक्ति खंड में इस बात का उल्लेख है कि माता सती के शरीर के 52 खंडों की रक्षा के लिए भगवान शिव ने सभी जगहों पर भैरव को स्थापित किया था. देवघर में माता का हृदय गिरा था. इसलिए इसे हृदय पीठ या शक्ति पीठ भी कहते हैं. माता के हृदय की रक्षा के लिए भगवान शिव ने यहां जिस भैरव को स्थापित किया था, उनका नाम बैद्यनाथ था. इसलिए जब रावण शिवलिंग को लेकर यहां पहुंचा, तो भगवान ब्रह्मा और बिष्णु ने भैरव के नाम पर उस शिवलिंग का नाम बैद्यनाथ रख दिया.
पंडितों की माने तो यहां के नामकरण के पीछे एक और मान्यता है. त्रेतायुग में बैजू नाम का एक शिव भक्त था. उसकी भक्ति से भगवान शिव इतने प्रसन्न हुए कि अपने नाम के आगे बैजू जोड़ लिया. इसी से यहां का नाम बैजनाथ पड़ा. कालातंर में यही बैजनाथ, बैद्यनाथ में परिवर्तित हुआ.
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