देश की कोयला राजधानी कही जाने वाली धनबाद के लोकसभा चुनाव पर दरभंगा से लेकर दिल्ली तक की नजरें टिकी हुई हैं. यहां भाजपा के सीटिंग सांसद पीएन सिंह के खिलाफ कांग्रेस की ओर से पूर्व क्रिकेट खिलाड़ी कीर्ति झा आजाद मैदान में हैं. इन्हीं दोनों के बीच मुख्य मुकाबला देखा जा रहा है. हालांकि निर्दलीय उम्मीदवार सिद्धार्थ गाैतम और झरिया राजघराने की महारानी तृणमूल कांग्रेस की प्रत्याशी माधवी सिह ने मुकाबले को बहुकोणीय बनाने की कोशिश की है. कुल 20 प्रत्याशी चुनावी दंगल में हैं.

कांग्रेस का हाथ पकड़ते कीर्ति आजाद
धनबाद सीट पर एक ओर पीएन सिंह जहां हैट्रिक बनाने की जुगत में हैं, वहीं दूसरी ओर कीर्ति झा आजाद 15 वर्ष बाद इस सीट को कांग्रेस के पाले में करने में जुटे हैं. पीएन सिंह पिछले 24 वर्षों से लगातार विधायक या सांसद रहे हैं. जबकि कीर्ति आजाद 2014 में दरभंगा से भाजपा के टिकट पर चुनाव जीते. लेकिन 2019 के चुनाव से ठीक पहले उन्होंने भाजपा से बगावत कर कांग्रेस का दामन थाम लिया. इसलिए बीजेपी ने जहां कीर्ति आजाद को बोरो प्लेयर कह कर घेरने की कोशिश की, वहीं कीर्ति खुद को झारखंडी साबित करने पर तुले रहे.

धनबाद के सीटिंग सांसद पीएन सिंह
दरअसल कांग्रेस नेतृत्व पिछला रिकॉर्ड देखकर कीर्ति को धनबाद से उतारा. 2004 में कांग्रेस के ददई दुबे ने चार बार की बीजेपी सांसद रीता वर्मा को हराया था. कांग्रेस को लगा कि इस सीट को कोई ब्राह्मण उम्मीदवार ही पार्टी की झोली में डाल सकता है. इसलिए कीर्ति को दरभंगा से धनबाद लाकर दांव खेला गया है.
उधर, इस सीट पर सिंह मेंसन के सिद्धार्थ गौतम की निर्दलीय उम्मीदवारी ने भाजपा के लिए चुनौती पैदा की है. सिद्धार्थ झरिया के भाजपा विधायक संजीव सिंह के भाई हैं. भाजपा की ओर से सिद्धार्थ को मनाने की तमाम कोशिशें की गईं, लेकिन वह नहीं माने. सिद्धार्थ के खड़े होने से पीएन सिंह को स्वजातीय वोट का घाटा लग सकता है. वैसे भी धनबाद की सियासत में सिंह मेंसन का दबदबा रहा है.
धनबाद सीट पर कांग्रेस- बीजेपी में टक्कर होती रही है. यहां पर 1951 और 1957 के चुनाव में कांग्रेस के पीसी बोस जीते. 1962 में कांग्रेस के पीआर चक्रवर्ती जीतने में कामयाब हुए. 1967 में निर्दलीय प्रत्याशी रानी ललिता राज्य लक्ष्मी जीतीं. 1971 में कांग्रेस ने वापसी की और राम नारायण शर्मा जीते.
1977 में इस सीट पर कम्यूनिस्ट पार्टी का कब्जा हो गया. एके रॉय यहां के सांसद बने. 1980 के चुनाव में भी एके रॉय जीत हासिल करने में कामयाब हुए. 1984 में कांग्रेस ने फिर वापसी की और शंकर दयाल सिंह जीते. 1989 का चुनाव कम्यूनिस्ट पार्टी के एके रॉय जीते और तीसरी बार सांसद बने.
1991 में इस सीट पर पर पहली बार बीजेपी का खाता खुला. यहां से शहीद एसपी रणधीर वर्मा की पत्नी रीता वर्मा जीतीं. वह लगातार चार बार 1991, 1996, 1998 और 1999 में बीजेपी के टिकट पर यहां से जीतती रहीं. लेकिन 2004 में कांग्रेस के चंद्रशेखर दुबे ने रीता वर्मा की जीत के सिलसिले को रोक दिया. 2009 में बीजेपी ने फिर वापसी की और पशुपति नाथ सिंह सांसद बने. 2014 में वह अपनी सीट बचाने में कामयाब हुए.
धनबाद लोकसभा सीट पर शहरी मतदाताओं का दबदबा है. यहां अनुसूचित जाति की तादात 16 फीसदी और अनुसूचित जनजाति की तादात 8 फीसदी है. इसके अलावा उत्तर प्रदेश, बिहार और पश्चिम बंगाल के लोगों की अच्छी आबादी है. इस संसदीय क्षेत्र के तहत 6 विधानसभा सीटें, बोकारो, सिन्दरी, निरसा, धनबाद, झरिया और चन्दनकियारी आती हैं. इनमें से निरसा पर वामदल और चंदनकियारी से जेवीएम के विधायक हैं. बाकी चार सीटें बीजेपी के खाते में हैं. यहां मतदाताओं की कुल संख्या 18.89 लाख है. इनमें 10.32 लाख पुरुष और 8.57 लाख महिला वोटर्स शामिल हैं. 2014 के चुनाव में यहां 61 फीसदी मतदान हुआ था.
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Tags: Dhanbad S27p07, Jharkhand Lok Sabha Constituencies Profile, Jharkhand Lok Sabha Elections 2019, Lok Sabha Election 2019
FIRST PUBLISHED : May 09, 2019, 19:51 IST