रिपोर्ट : आदित्य आनंद
गोड्डा. गोड्डा में चैत्र काली पूजा में विशेष मान्यताओं के साथ महिलाएं ग्रामीण क्षेत्र में पूजा-अर्चना करती हैं. जिस महिला की मांगी गई मनोकामनाएं पूरी होती है, वह चैत्र काली पूजा में उपवास रखकर 7 गांवों में भिक्षा मांगती है और पूजा करती है. वहीं भिक्षा मांगने की इस प्रक्रिया को नेमिन पूजा भी कहा जाता है. महिलाएं बताती हैं कि इस पूजा की मुख्य पुजारी वही होती है जिसकी मनोकामना पूर्ण हुई होती है. उसके साथ गांव की दर्जनों महिलाएं नवमी पूजा से पहले 7 गांव में घूम-घूमकर ढोल नगाड़े के साथ भिक्षा मांगती हैं और मांगे गए चावल, दाल, आलू को बेचकर रामनवमी के दिन मां काली की पूजा करती है.
इस पूजा में मुख्य पुजारिन 9 दिन उपवास रखकर मां काली की पूजा करती है और शाम को किसी मीठे चीज से उपवास तोड़ती हैं. गांव की दर्जनों महिलाओं के साथ पैदल चल कर 7 गांव में लोगों को नवमी के दिन होनेवाली इस पूजा के लिए निमंत्रण दिया जाता है. वहीं गांव की जो भी महिलाएं मुख्य पुजारिन के साथ घूमती हैं. उनके घर में भी 9 दिन लहसुन, प्याज तक वर्जित रहता है.
माना जाता है कि इस पूजा को करने वाली मुख्य पुजारिन पर माता की विशेष कृपा होती है. लोंगो की मान्यता है कि जिसकी मनोकामना पूरी होती है और जो यह व्रत रखती है उस पर माता की विशेष कृपा होती है और अगर वह दरवाजे पर भिक्षा लेने के लिए आ जाए तो वह देवी तुल्य होती है. इसीलिए उसके चरण धोकर रीति रिवाज के अनुसार उसे प्रणाम किया जाता है और उसका स्वागत किया जाता है. पूजा के लिए उसे चावल आलू या पैसे दान दिए जाते हैं.
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