रिपोर्ट : अनंत कुमार
गुमला. गुमला के घाघरा सारंगो के बांस शिल्प कारीगर कला केंद्र में बांस कारीगरों की आर्थिक स्थिति में उत्थान के लिए जिला प्रशासन द्वारा पहल किया जा रहा है. जिसके तहत बांस शिल्प कारीगर कला केंद्र का निर्माण, बांस कारीगरों के बीच टूल किट का वितरण एवं प्रशिक्षण इत्यादि भी दिया जा रहा है. जिले में 6 बांस शिल्प कारीगरी कला केंद्र स्थापित है. जहां जिले के बांस कारीगर एक ही छत के नीचे कारीगरी का काम करते है. साथ ही समय-समय पर बांस कारीगरों की आवश्यकता को देखते हुए उनके बीच विशेष केंद्रीय सहायता मद से टूल किट वितरण किया जाता है.
कारीगर मोहन तुरी ने बताया कि पूर्व में हमलोग अपने घरों या खेत खलिहान में काम कर बड़ी मुश्किल से बांस की सामग्री बनाकर औने-पौने दाम में बेचकर अपना और परिवार का भरण-पोषण करते थे. जिससे उनका मेहनताना भी नहीं निकलता था. मौसम खराब रहने पर हम काम भी नहीं कर पाते थे. परंतु प्रशिक्षण मिलने, सरकार द्वारा टूल किट दिए जाने एवं केंद्र के बन जाने से बांस से टोकरी, सूप, दउरा, फर्नीचर एवं अन्य सजावटी सामान का निर्माण कर रहे हैं. जिससे उनकी आर्थिक स्थिति में भी बदलाव आया है. अब हम महीने में 20 से 25 हजार रुपए कमा रहे है और दुगनी क्षमता से काम भी कर पा रहे है.
बांस है हरा सोना
उपायुक्त सुशांत गौरव ने सभी कारीगरों को बांस की खेती करने के लिए जागरूक किया और नए वर्ष में बांस कारीगरों को और अधिक सुविधाएं देने का आश्वासन दिया है. उन्होंने बताया कि बांस की खेती बंजर भूमि में भी की जा सकती है. एक बार बांस लगाकर 100 वर्षो तक कटिंग कर बांस से सामान निर्मित कर अपना जीविका चला सकते है. बांस हरा सोना है. बांस का अचार, मुरब्बा, सब्जी जैसे उत्पाद भी बनाए जा रहे हैं.गुमला के लोग इससे जुड़ कर तरक्की कर रहे हैं.
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