रिपोर्ट – अनंत कुमार
गुमला. गुमला जिला में प्राकृतिक पर्व सरहुल को हर्षोल्लास के साथ मनाया जा गया. परंपरा के अनुसार सरहुल से एक दिन पूर्व रात्रि में राइस पानी सरना स्थल पर सखुआ पेड़ के समीप दो घड़ा में रखा गया था. जिसमें सरई फुल डाला गया था. सरहुल पर इसकी विशेष पूजा अर्चना की गई. मान्यता है कि घड़ा में पानी भरा जाता है. जिससे वर्षा की भविष्यवाणी होती है. यह भविष्यवाणी सटीक बैठती है. इसके बाद सरई फूल व अक्षत से पूजा कर लोगों को सरई फूल दिया जाता है.
इसके साथ ही पाहान(पुजारी) के द्वारा सरना स्थल पर दो बर्तन में खाना पकाया जाता है व प्रसाद का वितरण किया जाता है. ऐसी मान्यता है कि राइस पानी को फसल के बिहन में मिलाकर खेती करने से अच्छी फसल होती है. उसके बाद सरना स्थल से पारंपरिक वेशभूषा व ढोल बाजे के साथ सरना स्थल से नाचते हुए शहर की ओर प्रस्थान किया गया. शहर में जुलूस निकालने का इतिहास वर्षों पुराना है. जुलूस में सरना धर्मावलंबियों की भारी भीड़ उमड़ी. जुलूस में आदिवासी समाज की कला, संस्कृति व परंपरा झलकी.
जुलूस में 108 खोड़हा दल शामिल
सरहुल पर सरना स्थल पर पाहान के द्वारा पूजा कर विश्व मंगल की कामना की गई. पूजा के बाद पाहान के द्वारा राइस पानी को घर घर में जा कर दिया गया. इसके बाद सभी एक जगह खड़ा होकर मांदर की थाप में नाच करते हुए जुलूस की शक्ल में शहर का भ्रमण किए. इस मौके पर शहर में हजारों लोगों की भीड़ उमड़ी थी. जुलूस में 108 खोड़हा दल शामिल हुए.
प्राकृति पर्व
पाहान कर्मा ने बताया कि आदिवासी में सरहुल पर्व का खास महत्व है. यह प्राकृति पर्व है. जिसमें आने वाले साल में मौसम को लेकर भविष्यवाणी की कोशिश की जाती है और ईश्वर से खेती के लिए आशीर्वाद मांगा जाता है.
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