कोकून की कमाई से किसानों की जिंदगी में बहार

कोकून की कमाई से किसान की जिंदगी में बहार
किसानों का कहना है कि पहले उनका परिवार आर्थिक संकट से गुजरता था, लेकिन अब सब सहज हो गया है. अब वे अपने बच्चों को कोकून की कमाई से अच्छी शिक्षा दे पा रहे हैं.
- ETV Bihar/Jharkhand
- Last Updated: March 13, 2018, 12:47 PM IST
पाकुड़ में कोकून तैयार कर ग्रामीण और किसान आत्मनिर्भर बन रहे हैं. उन्हें अग्र परियोजना केन्द्र से इस सिलसिले में मदद मिलती है और ग्रामीण कोकून का पालन कर अच्छी आमदनी कर रहे हैं.
पाकुड़ के महेशपुर के अमृतपुर गांव के किसानों ने शहतूत की खेती और रेशम के कोकून को तैयार कर न सिर्फ अपने गांव की अगल पहचान बना रहे हैं बल्कि अच्छी खासी आमदनी कर आत्मनिर्भर भी बन रहे हैं. प्रखंड मुख्यालय से 8 किलोमीटर दूर स्थित अमृतपुर गांव में लगभग दो सौ घर हैं, जिनमें से लगभग 80 परिवार शहतूत की खेती कर रेशम के लिए कोकून तैयार करने में जुटे हुए हैं.
गांव के किसानों का कहना है कि पहले उनका परिवार आर्थिक संकट से गुजरता था, लेकिन अब सब सहज हो गया है. अब वे अपने बच्चों को कोकून की कमाई से अच्छी शिक्षा दे पा रहे हैं.
एक बीघा खेत में लगे शहतूत के पौधे के लिए 20 ग्राम के 100 डीएफएलएस(अंडे) की जरुरत होती है. इसकी कीमत 400 रुपये पड़ती है. शहतूत के पौधे बड़े होने पर उसके पत्तों पर इन अंडों को रखा जाता है. अंडे से लावा बनता है और लावा से कोकून तैयार होता है. इस तरह से एक बीघा में 40 से 50 किलोग्राम कोकून तैयार होता है.बाजार में कोकून प्रति किलो 300 से 400 रुपये की दर से बिकता है. इस प्रकार एक बीधा की खेती में किसानों को लगभग 10 से 15 हजार रुपये की आमदनी होती है. एक कृषक साल में 5 बार शहतूत की खेती कर सकता है.
शहतूत की खेती करने वाले 77 परिवारों को 30 हजार रुपये की दर से केन्द्रीय रेशम अनुसंधान केन्द्र से से मदद राशि मिलती है. इतना ही नहीं ब्लीचिंग पाउडर सहित अन्य सामग्री भी दी जाती है. साथ ही समय- समय पर खेती करने के लिए प्रशिक्षण भी दिया जाता है. इससे ग्रामीण काफी खुश हैं. सरकार के इस पहल से किसानों का जीवन बदल रहा है.
पाकुड़ के महेशपुर के अमृतपुर गांव के किसानों ने शहतूत की खेती और रेशम के कोकून को तैयार कर न सिर्फ अपने गांव की अगल पहचान बना रहे हैं बल्कि अच्छी खासी आमदनी कर आत्मनिर्भर भी बन रहे हैं. प्रखंड मुख्यालय से 8 किलोमीटर दूर स्थित अमृतपुर गांव में लगभग दो सौ घर हैं, जिनमें से लगभग 80 परिवार शहतूत की खेती कर रेशम के लिए कोकून तैयार करने में जुटे हुए हैं.
गांव के किसानों का कहना है कि पहले उनका परिवार आर्थिक संकट से गुजरता था, लेकिन अब सब सहज हो गया है. अब वे अपने बच्चों को कोकून की कमाई से अच्छी शिक्षा दे पा रहे हैं.
एक बीघा खेत में लगे शहतूत के पौधे के लिए 20 ग्राम के 100 डीएफएलएस(अंडे) की जरुरत होती है. इसकी कीमत 400 रुपये पड़ती है. शहतूत के पौधे बड़े होने पर उसके पत्तों पर इन अंडों को रखा जाता है. अंडे से लावा बनता है और लावा से कोकून तैयार होता है. इस तरह से एक बीघा में 40 से 50 किलोग्राम कोकून तैयार होता है.बाजार में कोकून प्रति किलो 300 से 400 रुपये की दर से बिकता है. इस प्रकार एक बीधा की खेती में किसानों को लगभग 10 से 15 हजार रुपये की आमदनी होती है. एक कृषक साल में 5 बार शहतूत की खेती कर सकता है.
शहतूत की खेती करने वाले 77 परिवारों को 30 हजार रुपये की दर से केन्द्रीय रेशम अनुसंधान केन्द्र से से मदद राशि मिलती है. इतना ही नहीं ब्लीचिंग पाउडर सहित अन्य सामग्री भी दी जाती है. साथ ही समय- समय पर खेती करने के लिए प्रशिक्षण भी दिया जाता है. इससे ग्रामीण काफी खुश हैं. सरकार के इस पहल से किसानों का जीवन बदल रहा है.