रांची. झारखंड में खतियान की लड़ाई लड़ने के लिए झामुमो के पूर्व विधायक अमित महतो ने बीते 6 अप्रैल को खतियानी झारखंडी पार्टी का गठन किया था. पूर्व विधायक अमित महतो खुद इस पार्टी के अध्यक्ष बने थे और वहीं कांग्रेस से किनारा कर चुकीं पूर्व मंत्री गीताश्री उरांव को इस पार्टी का महासचिव बनाया गया था. लेकिन, अब इस पार्टी के बनने के महज एक हफ्ते के अंदर इसके बिखरने की खबरें भी सामने आने लगी है. दरअसल पार्टी में अमित महतो ने जिस गीताश्री उरांव को पार्टी का महासचिव बनाया था अब उन्होंने खुलकर अपनी नाराजगी जाहिर कर दी है. उन्होंने कहा कि बिना मुझे पूर्व सूचना दिए हुए या फिर हमसे परामर्श किए हुए ही मेरा नाम पार्टी में महासचिव पद शामिल किया गया है.
गीता श्री उरांव ने कहा कि उस समय मैं चुप रही, लेकिन मेरे पास कई लोगों की प्रतिक्रिया आने लगी की सबकी सहमति से आगे बढ़ना चाहिए. मैंने हमेशा अपने शर्तो के साथ काम किया है और मैने सोचा कि इस पार्टी से मैं अपने को अलग कर लूं. अपने आप को अलग करने का फैसला लिया है.
‘जल्दबाजी में हुआ पार्टी का गठन’
उन्होंने कहा कि अब अमित महतो की क्या वजह रही है कि की जल्दबाजी में पार्टी का गठन हुआ है. हमेशा से बैठक बुलाई जाती रही है कोई भी फैसला लेने के लिए. लेकिन इसमें किसी अच्छे और बड़े नेताओं की परमार्श लेना चाहिए. इस तरह का निर्णय कोई एक व्यक्ति ले और इससे जुड़े लोग की राय विचार नही लिया गय.. झारखंडी भावना हमारे माता पिता दोनों के जेहन में रहा है. झारखंड में कांग्रेस को खड़ा करने में बहुत बड़ा योगदान रहा है.
‘बिहार के स्कूल में नहीं होता स्थानीय भाषा का इस्तेमाल’
गीता श्री उरांव ने कहा कि बिहार में रहकर ही मेरे पिता ने छोटानागपुर, कोल्हान को मिलाकर केंद्र शासित प्रदेश की मांग की थी. इसलिए की वह धीरे-धीरे लोगों को शासन व्यवस्था में ढालना चाहते थे. गीता श्री उरांव ने कहा कि यह मेरे अपने जीवन का निजी फैसला है कि मैं क्या करूं. बिहार में किसी भी स्कूल, दफ्तर में कहीं भी स्थानीय भाषा का इस्तेमाल नहीं होता है तो फिर झारखंड में इसे लागू क्यों किया गया था.
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