रांची. जिंदगी हर जीव की सांसों के संतुलन पर चलती हैऔर जब यह संतुलन किसी इलाके में गड़बड़ाने लगे तो फिर वहां इंसानों का गुजारा भी मुश्किल हो जाता है. रांची के कांके प्रखंड के जयपुर पंचायत के सात गांव फिलहाल इसी संतुलन के बिगड़ने से परेशान हैं. दरअसल पिछले कुछ सालों से झिरी कचरा डंपिंग यार्ड से जहरीला पानी बहते हुए कांके प्रखंड के कई गांवों में घुस रहा है, जिसकी वजह से जयपुर पंचायत के सात गांवों की जिंदगी दुभर हो गयी है.
कांके प्रखंड के गारू गांव के ग्रामीण मनीष कुमार बताते हैं कि जब भी बारिश होती है, तब झिरी कचरा डंपिंग यार्ड से जहरीला केमिकल नालों से बहकर पहाड़ी नदियों में मिल जाता है. जिस वजह से कांके प्रखंड के जयपुर पंचायत के सात गांव गारू, कामता, कोंगे, जयपुर, भागलपुर, प्रेमनगर और मनातू की जिंदगी तबाह होने के कगार पर है. गारू गांव से बहकर गुजरने वाली पोट पोटो नदी पूरी तरह इस केमिकल से जहरीली हो चुकी है. इस नदी के मेढक और मछलियों समेत तमाम दूसरे जीव जंतुओं का अब नामोनिशान इस नदी में नजर नहीं आता.
जलीय जीव को हुआ काफी नुकसान
मॉनसून से पहले गर्मी में कई जगहों पर कीचड़ के रूप में तब्दील हो चुकी इस नदी में एक भी जीव वर्तमान में पर्यावरण के सिद्धांत के अनुसार जीवित रूप में मौजूद नहीं है. कचरा डंपिंग जोन से बहते केमिकल और गंदगी से सड़ांध इतनी ज्यादा है कि नदी के किनारे जाना हिम्मत का काम माना जाता है. हालांकि जिन्हें नदी से प्यार है वह नदी की दुर्दशा को बताने के लिए कीचड़ में जरूर उतरते हैं. गांव के बुजुर्ग किसान रमेश महतो बताते हैं कि उनकी पूरी खेती पिछले तीन सालों से बर्बाद हो चुकी है. ऐसे में गांव कई लोगों ने अपना पेशा बदल लिया है. कल तक जो युवा गांव की नदी में मछली पालन कर रोजगार कर रहे थे. अब वही युवा राजधानी जाकर दिहाड़ी मजदूरी कर रहे हैं.
ग्रामीणों ने सरकार से की मांग
कोंगे गांव की कलावंती देवी बताती हैं कि पोटोपोटो नदी के किनारे ही वह सब्जी की खेती करती थी. लेकिन जहरीले पानी की वजह से पिछले दो सालों में पूरी खेती बर्बाद हो गयी. अब शहर जाकर रेजा का काम करती हैं. ग्रामीण बताते हैं कि कल तक जिस नदी के किनारे सात गांवों की जिंदगी बसती थी. आज वही नदी एक जिंदा लाश बन चुकी है. हाल यह है कि जिन गांव के किनारे से पोटपोटो नदी गुजरी है. वहां रास्ते में पड़ने वाली तमाम खेती बर्बाद हो चुकी है. उन इलाकों के खेतिहार किसान अब दिहाड़ी मजदूर बन चुके हैं. सात गावों के ग्रामीण अब मांग कर रहे है कि सरकार कुछ ऐसा उपाय करे जिससे कचरा डंपिंग यार्ड का जहरीले केमिकल को पोट पोटो नदी में जाने से रोका जा सके. ताकि गांव की जिंदगी की बहार फिर से लौट सके.
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