रिपोर्ट : शिखा श्रेया
रांची. भारत 1947 में आजाद हुआ. उसके बाद सारे अंग्रेज भारत छोड़कर चले गए, लेकिन कई परिवार ऐसे भी थे जो यहीं रह गए. आज भी देश में कई जगहों पर अंग्रेज परिवार नजर आ जाएंगे. एंग्लो इंडियन के लिए भारतीय संविधान में विशेष प्रावधान भी है. ऐसा ही अंग्रेजों का एक गांव है, जो झारखंड की राजधानी रांची से 55 किलोमीटर की दूरी पर है. इसका नाम है मैक्लुस्कीगंज, जिसे मिनी लंदन के नाम से भी जाना जाता है.
यहां की आबोहवा और खूबसूरत घुमावदार सड़कें एक नजर में आप को भी मदहोश कर देंगी. मैक्लुस्कीगंज में कभी सिर्फ गोरे ही रहा करते थे जिसे लेफ्टिनेंट मैक्लुस्की ने बसाया था. लेकिन 400 गोरे परिवार की इस बस्ती में अब बमुश्किल गिने-चुने दो या तीन परिवार रह गए हैं. अब यह कस्बा पर्यटक व फिल्म निर्माता के लिए आकर्षण का केंद्र बन गया है.
गाइड अभय ने News18 Local को बताया, आप यहां आएंगे तो अंग्रेजों द्वारा बनाए गए कई सारे हेरिटेज बंगले दिखेंगे. खासकर डांस क्लब, वॉच टावर, बड़ी-बड़ी कोठियां आपको अंग्रेजों के रहन-सहन व उनका अंदाज महसूस कराएंगी. यहां मौजूद विक्टोरियन स्टाइल के बंगले और फल के बगीचे लोगों को अब भी अपनी तरफ खींचते हैं.
लेकिन अब हालात कुछ और हैं. रोजी-रोटी की तलाश में नई पीढ़ी बाहर निकलती चली गई व बुजुर्ग खत्म होते गए. मकान उपेक्षित हो गए. इनकी पीढ़ी जो बाहर रहती है, यहां घूमने आती है. तो कई अपने पूर्वजों की बस्ती देखने आते हैं. यहां अक्टूबर से मार्च तक पर्यटकों की संख्या अधिक होती है. सरकार की ओर से टूरिस्ट इनफॉरमेशन सेंटर भी खोला गया है.
एंग्लो इंडियन किटी ने News18 Local से कहा, बचपन से यहीं पली-बढ़ी हूं. लंदन अमेरिका नहीं देखी. जब से आंख खुली मैक्लुस्कीगंज को ही अपना गांव माना. माता-पिता लंदन से आए थे, पर आजादी के बाद यहीं बस गए. खेती-बाड़ी करके घर चलाते हैं. लेकिन सरकार को हम एंग्लो इंडियन पर थोड़ा ध्यान देने की जरूरत है. हमारी हालत बेहद खराब है. हमें अपना गुजारा फल बेचकर करना पड़ रहा है. इस उम्र में खेती नहीं की जाती. सरकार से गुजारिश है कि हमारे लिए कोई विशेष योजनाएं लाए.
किटी ने बताया, द्वितीय विश्व युद्ध के बाद एंग्लो इंडियन परिवारों के बढ़ते बच्चों को रोजगार के दृष्टिकोण से यह जगह असुरक्षित लगने लगी और एक-एक कर एंग्लो इंडियन परिवार मैक्लुस्कीगंज से पलायन करते गए. आजादी के बाद लगभग 200 परिवार यहां बचे थे. वर्ष 1957 में बिहार के तत्कालीन राज्यपाल जाकिर हुसैन ने सोसायटी के लोगों को सलाह दी कि जो लोग अभी भी ब्रिटेन जाना चाहते हैं उनके लिए सरकार व्यवस्था करेगी. राजपाल की सलाह पर लगभग 150 परिवार पुनः विदेश चले गए.
मैक्लुस्कीगंज इन दिनों फिल्म कलाकारों की पसंद बनती जा रही है. पहले भी कई बांग्ला फिल्म की शूटिंग यहां हो चुकी है. मार्च 2016 में डायरेक्टर और अभिनेत्री कोंकणा सेन ने निर्देशक के रूप में अपनी पहली फिल्म डेथ इन गंज की शूटिंग की. कोंकणा के बचपन की यादें मैक्लुस्कीगंज से जुड़ी हैं. वहीं, कई दूसरी फिल्म जैसे एमएस धोनी, खाखी वेब सीरीज की शूटिंग हो चुकी है.
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