रांची. पद्म सम्मानों की घोषणा कर दी गई है. चार शख्सियतों को पद्म विभूषण से नवाजे जाने की घोषणा की गई है. कला के लिए महाराष्ट्र की प्रभा अत्रै को पद्म विभूषण दिया जाएगा जबकि शिक्षा और साहित्य के लिए उत्तर प्रदेश के राधेश्याम खेमका (मरणोपरांत), सिविल सर्विस के लिए उत्तराखंड के जनरल बिपिन रावत (मरणोपरांत) और पब्लिक अफेयर के लिए उत्तर प्रदेश के कल्याण सिंह को पद्म विभूषण से सम्मानित किए जाने की घोषणा की गई है.
पद्म भूषण सम्मान कुल 17 विभूतियों को प्रदान की जाएगी जबकि पद्मश्री से 107 लोग नवाजे जाएंगे. इन 107 लोगों में झारखंड के गिरधारी राम गोंझू भी एक हैं. उन्हें शिक्षा और साहित्य के क्षेत्र में मरणोपरांत यह सम्मान दिया जा रहा है. बता दें कि अप्रैल 2021 में गोंझू जी का निधन हो गया था. वे मूलतः नागपुरी भाषी थे और इसे झारखंड में संपर्क भाषा के रूप में बढ़ाने में वीपी केसरी के साथ महत्वपूर्ण काम किया था. गिरधारी राम गोंझू की पुस्तक ‘कोरी भर पझरा’ चर्चित रही है. पझरा का मतलब पानी का सोता होता है.
अपने वक्तृत्व कला की वजह से भी वे झारखंडी साहित्य और संस्कृति के बड़े पैरोकार के रूप में जाने गए. डॉ गिरधारी राम गोंझू रांची विश्वविद्यालय के जनजातीय व क्षेत्रीय भाषा विभाग के पूर्व अध्यक्ष भी थे. जनजातीय व क्षेत्रीय भाषा विभाग के अध्यक्ष रहते हुए वे हिंदी साहित्यकारों के संपर्क में भी आए और कई महत्वपूर्ण आयोजनों में सक्रिय रहे. रांची के एक दैनिक अखबार में वे माय माटी के नियमित लेखक भी रहे.
गिरधारी राम गोंझू का जन्म 5 दिसंबर 1949 को खूंटी के बेलवादाग गांव में हुआ था. इनके पिता का नाम इंद्रनाथ गोंझू और मां का नाम लालमणि देवी था. ये रांची के हरमू कॉलोनी में रहते थे. डॉ. गोंझू रांची विवि स्नातकोत्तर जनजातीय व क्षेत्रीय भाषा विभाग से दिसंबर 2011 में बतौर अध्यक्ष सेवानिवृत्त हुए. इनकी अब तक 25 से अधिक पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं. इन्होंने नाटक भी लिखे. गोंझू के लेखन के केंद्र में झारखंडी अस्मिता को खूब गहरे पहचाना जा सकता है. झारखंडी समाज-संस्कृति के चिंतक और नागपुरी भाषा के पैरोकार के रूप में पहचान बना चुके गोंझू का व्यक्तित्व बेहद सहज और सरल था.
गोंझू की शुरुआती शिक्षा खूंटी में हुई थी. उनकी प्रकाशित रचनाओं में ‘कोरी भर पझरा’, ‘नागपुरी गद तइरंगन’, ‘खुखड़ी- रूगडा’ आदि हैं. वे झारखंड रत्न सहित कई प्रकार के सम्मान से नवाजे गए थे. पद्मश्री मुकुंद नायक जी उनके सहिया रहे हैं. झारखंज की शैक्षिक, सामाजिक और सांस्कृतिक गतिविधियों से उनका सीधा सरोकार रहा था.
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