कई मौकों पर अपनी काबिलियत साबित कर चुके हैं बाबू लाल मरांडी
News18Hindi Updated: November 28, 2019, 11:56 AM IST

बाबू लाल मरांडी झारखंड के मुख्यमंत्री रह चुके हैं.
बाबू लाल मरांडी एक शिक्षक रहे हैं और संघ से जुड़ाव के बाद उन्होंने BJP में कई अहम जिम्मेदारियां उठाईं. लेकिन अब वो BJP से अलग हैं, ऐसे में क्या वह दूसरी पार्टियों के लिए चुनौती बन पाएंगे?
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- Last Updated: November 28, 2019, 11:56 AM IST
साल 2000 में झारखंड राज्य के निर्माण के बाद बाबू लाल मरांडी ही वो शख्सियत थे जिन्हें भारतीय जनता पार्टी ने मुख्यमंत्री की गद्दी पर बिठाया था. बाबू लाल मरांडी इससे पहले बीजेपी नेतृत्व वाली एनडीए सरकार में पर्यावरण मंत्रालय में राज्य मंत्री के पद पर विराजमान थे. बाबू लाल मरांडी अब 61 वर्ष के हो चुके हैं और फिलहाल वो झारखंड विकास मोर्चा (प्रजातांत्रिक) पार्टी के अध्यक्ष भी हैं. बाबू लाल मरांडी को साल 2003 में सहयोगी दल जनता दल (युनाइटेड) के दवाब के चलते मुख्यमंत्री की कुर्सी त्यागनी पड़ी थी. बाबू लाल मरांडी इसके बाद साल 2004 में भारतीय जनता पार्टी के टिकट पर गिरिडिह से लोकसभा चुनाव जीते और लोकसभा की सदस्यता ग्रहण की. लेकिन साल 2006 में राज्य में अपनी पार्टी की सरकार के खिलाफ लगातार बयानबाजी के चलते उन्होंने अपने को बीजेपी से अलग कर नई पार्टी बनाने का फैसला किया. इस कवायद में बाबू लाल मरांडी के साथ बीजेपी के पांच विधायक भी आए.
बाबू लाल मरांडी का बीजेपी छोड़ने का फैसला राजनीतिक दृष्टीकोण से सही साबित नहीं हो पाया. उनकी पार्टी झारखंड विकास मोर्चा कभी भी राज्य में सत्ता की भागीदार नहीं बन सकी. पिछले 13 साल में उनकी पार्टी के एमएलए दो बार उनका साथ छोड़ पाला बदल चुके हैं और बाबू लाल मरांडी की झारखंड विकास मोर्चा थोड़ी बहुत सीटों वाली पार्टी बनकर भी इक्के दुक्के तक पहुंच जाती है. हाल के दिनों में झारखंड विकास मोर्चा के छह विधायक बीजेपी में शामिल हो चुके हैं. ज़ाहिर है राज्य में होने वाले विधानसभा चुनाव से पहले बाबू लाल मरांडी की पार्टी में फूट उनके लिए किसी सदमें से कम नहीं है.
वैसे बाबूलाल मरांडी मुख्यमंत्री की कुर्सी तक पहुंचने से पहले काफी संघर्ष कर चुके हैं. वो पेशे से शिक्षक थे लेकिन अपने इस पेशे को छोड़कर उन्होंने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के जुड़कर अलग अलग जिलों में काफी काम किया. बीजेपी पार्टी ने उन्हें पहली बार साल 1991 में लोकसभा चुनाव लड़ने मैदान में उतारा और बाबू लाल मरांडी चुनाव हार गए. बाबू लाल मरांडी दूसरी बार साल 1996 में चुनाव लड़े और झारखंड के तत्कालीन बेहद लोकप्रिय नेता शिबू सोरेन से महज 5 हजार वोटों से चुनाव हारे. बाबूलाल मरांडी अपनी कार्य शैली से केन्द्रीय नेतृत्व के सामने लोहा मनवा चुके थे और उन्हें इसका इनाम प्रदेश का बीजेपी अध्यक्ष बनाकर दिया गया. बाबू लाल के नेतृत्व में साल 1998 में बीजेपी 14 में 12 लोकसभा सीट जीत पाने में कामयाब रही और बाबू लाल मरांडी खुद दुमका से शिबू सोरेन को चुनाव हरा पाने में कामयाब रहे.
अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व में बनी पहली सरकार में बाबू लाल मरांडी को साल 1998 में मंत्री बनाकर पुरस्कृत किया गया. पार्टी के इंचार्ज और वाइस प्रेसिडेंट कैलाशपति मिश्रा के बेहद करीबी बाबू लाल मरांडी झारखंड बीजेपी के सर्वोपरी नेता में गिने जाने लगे.बाबूलाल मरांडी को इसका फायदा राज्य के गठन के फौरन बाद मुख्यमंत्री पद के तौर पर मिला लेकिन घटक दल को साथ नहीं लेकर चल पाने में नाकामयाब बाबू लाल को मुख्यमंत्री की कुर्सी साल 2003 में गंवानी पड़ी.
बाबू लाल के दो साल के कार्यकाल को लोग आज भी याद करते हैं क्योंकि उन दिनों रोड को बेहतर नेटवर्क बनाने में बाबूलाल की सरकार की भूमिका अहम रही. इतना ही नहीं बाबू लाल मरांडी ने झारखंड की राजधानी रांची में भीड़ कम करने के लिए ग्रेटर रांची के आइडिया पर भी काम करना शुरू किया था जो कि आज भी धीरे-धीरे पूरा होता दिखाई पड़ रहा है.
बाबू लाल मरांडी 12वीं,13वीं,14वीं और 15वीं लोकसभा के सदस्य रहे हैं. साल 2006 में बीजेपी छोड़कर लोकसभा चुनाव जीतकर बाबू लाल मरांडी ने जनता के बीच अपनी लोकप्रियता को साबित किया. साल 2009 में भी बाबू लाल मरांडी ने कोडरमा सीट जीतकर साबित कर दिया कि वो बीजेपी जैसी पार्टी को छोड़कर भी लगातार अपने दम पर चुनाव जीत सकते हैं. लेकिन साल 2014 और 2019 में मोदी के नाम पर चली आंधी में जनता के बीच बाबूलाल की गहरी पैठ की जड़ें हिल गई और वो चुनाव हार गए.फिलहाल बाबूलाल की राजनीति हाशिए पर दिखाई पड़ रही है. कुछ समय पहले तक बीजेपी में वापस आने की चर्चा जोरों पर थी लेकिन इस साल के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस के साथ गठबंधन कर बाबूलाल ने बीजेपी को पटखनी देने की पुरजोर कोशिश की पर वो बुरी तरह फेल हुए. ऐसे में आनेवाले विधान सभा चुनाव में राजनीतिक वजूद को बचाने के लिए बाबूलाल मरांडी क्या फैसला करेंगे ये देखना दिलचस्प होगा.
बाबू लाल मरांडी का बीजेपी छोड़ने का फैसला राजनीतिक दृष्टीकोण से सही साबित नहीं हो पाया. उनकी पार्टी झारखंड विकास मोर्चा कभी भी राज्य में सत्ता की भागीदार नहीं बन सकी. पिछले 13 साल में उनकी पार्टी के एमएलए दो बार उनका साथ छोड़ पाला बदल चुके हैं और बाबू लाल मरांडी की झारखंड विकास मोर्चा थोड़ी बहुत सीटों वाली पार्टी बनकर भी इक्के दुक्के तक पहुंच जाती है. हाल के दिनों में झारखंड विकास मोर्चा के छह विधायक बीजेपी में शामिल हो चुके हैं. ज़ाहिर है राज्य में होने वाले विधानसभा चुनाव से पहले बाबू लाल मरांडी की पार्टी में फूट उनके लिए किसी सदमें से कम नहीं है.
वैसे बाबूलाल मरांडी मुख्यमंत्री की कुर्सी तक पहुंचने से पहले काफी संघर्ष कर चुके हैं. वो पेशे से शिक्षक थे लेकिन अपने इस पेशे को छोड़कर उन्होंने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के जुड़कर अलग अलग जिलों में काफी काम किया. बीजेपी पार्टी ने उन्हें पहली बार साल 1991 में लोकसभा चुनाव लड़ने मैदान में उतारा और बाबू लाल मरांडी चुनाव हार गए. बाबू लाल मरांडी दूसरी बार साल 1996 में चुनाव लड़े और झारखंड के तत्कालीन बेहद लोकप्रिय नेता शिबू सोरेन से महज 5 हजार वोटों से चुनाव हारे. बाबूलाल मरांडी अपनी कार्य शैली से केन्द्रीय नेतृत्व के सामने लोहा मनवा चुके थे और उन्हें इसका इनाम प्रदेश का बीजेपी अध्यक्ष बनाकर दिया गया. बाबू लाल के नेतृत्व में साल 1998 में बीजेपी 14 में 12 लोकसभा सीट जीत पाने में कामयाब रही और बाबू लाल मरांडी खुद दुमका से शिबू सोरेन को चुनाव हरा पाने में कामयाब रहे.
अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व में बनी पहली सरकार में बाबू लाल मरांडी को साल 1998 में मंत्री बनाकर पुरस्कृत किया गया. पार्टी के इंचार्ज और वाइस प्रेसिडेंट कैलाशपति मिश्रा के बेहद करीबी बाबू लाल मरांडी झारखंड बीजेपी के सर्वोपरी नेता में गिने जाने लगे.बाबूलाल मरांडी को इसका फायदा राज्य के गठन के फौरन बाद मुख्यमंत्री पद के तौर पर मिला लेकिन घटक दल को साथ नहीं लेकर चल पाने में नाकामयाब बाबू लाल को मुख्यमंत्री की कुर्सी साल 2003 में गंवानी पड़ी.
बाबू लाल के दो साल के कार्यकाल को लोग आज भी याद करते हैं क्योंकि उन दिनों रोड को बेहतर नेटवर्क बनाने में बाबूलाल की सरकार की भूमिका अहम रही. इतना ही नहीं बाबू लाल मरांडी ने झारखंड की राजधानी रांची में भीड़ कम करने के लिए ग्रेटर रांची के आइडिया पर भी काम करना शुरू किया था जो कि आज भी धीरे-धीरे पूरा होता दिखाई पड़ रहा है.
बाबू लाल मरांडी 12वीं,13वीं,14वीं और 15वीं लोकसभा के सदस्य रहे हैं. साल 2006 में बीजेपी छोड़कर लोकसभा चुनाव जीतकर बाबू लाल मरांडी ने जनता के बीच अपनी लोकप्रियता को साबित किया. साल 2009 में भी बाबू लाल मरांडी ने कोडरमा सीट जीतकर साबित कर दिया कि वो बीजेपी जैसी पार्टी को छोड़कर भी लगातार अपने दम पर चुनाव जीत सकते हैं. लेकिन साल 2014 और 2019 में मोदी के नाम पर चली आंधी में जनता के बीच बाबूलाल की गहरी पैठ की जड़ें हिल गई और वो चुनाव हार गए.
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First published: November 25, 2019, 1:31 PM IST
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