रांची. कोरोना महामारी के बाद सरकारी स्कूलों में दाखिले का ग्राफ बढ़ा है. अभिभावकों का रुझान सरकारी स्कूलों की ओर है. और इसके पीछे की वजह इस महामारी के कारण कुछ लोगों की नौकरी चली गई है, तो कुछ लोगों को वेतन बहुत कम मिल रहा है. इस वजह से बहुत से अभिभावक आर्थिक संकट का सामना कर रहे हैं और इस आर्थिक तंगी के कारण अभिभावक अपने बच्चों को निजी स्कूल से निकाल कर सरकारी स्कूल में पढ़ने के लिए भेज रहे हैं.
तपती दोपहर में अपने आंचल से बच्चों को कड़ी धूप से बचाते हुए स्कूल से घर ले जाती सोनी देवी बताती हैं कि उनके पति रेड़ी लगाकर कपड़ा बेचा करते थे. घर में दो वक्त की रोटी का इंतजाम हो या न हो लेकीन हम अपने बच्चों को प्राइवेट स्कूल में शिक्षा देना चाहते थे. कोरोना की वजह से रोज़गार बिल्कुल ठप हो गया था. प्राइवेट स्कूल में पूरी फीस वसूली जा रही थी. ऐसी स्थिति में हमने सरकारी स्कूलों का रुख किया है. तो वहीं प्राइवेट स्कूल से सरकारी स्कूल में पढ़ने आए बच्चें सरकारी स्कूलों की पढ़ाई से संतुष्ट नज़र आएं.
7वी क्लास में पढ़ने वाले मयंक बताते हैं कि वो सात महीने पहले उनका दाखिला प्राइवेट स्कूल से सरकारी स्कूल में हुआ. सरकारी स्कूलों को लेकर लोगों की अवधारणा यही रहती है कि यहां पढ़ाई नहीं होती है लेकिन प्राइवेट स्कूल हो या सरकारी स्कूल दोनों जगह पढ़ाई एक जैसी ही है.
कांके के नवीन आरक्षी स्कूल की प्रभारी ज्योत्सना मिश्रा का कहना है कि पिछले एक साल में करीब 122 प्राइवेट और कॉन्वेंट स्कूल के बच्चें सरकारी स्कूलों में अपना दाखिला करवा चुके हैं. ये हमारे लिए खुशी की बात है कि अभिभावकों ने सरकारी स्कूलों के प्रति अपना विश्वास दिखाया है. लॉकडाउन के बाद लोगों के सामने आर्थिक चुनौतियां हैं. यह भी एक बड़ा कारण हाे सकता है. लेकिन हम बढ़े हुए एडमिशन के इन आकड़ों काे अवसर के रूप में ले रहे हैं.
दरअसल, लॉकडाउन के बाद लोगों के सामने आर्थिक चुनौतियां हैं और कोरोना काल में सबसे अधिक नुकसान शिक्षा के क्षेत्र में ही हुआ है. संक्रमण काल में सबसे अधिक प्रभावित शिक्षण संस्थान और उनमें पढ़ने वाले छात्र ही हुए हैं. जिसकी वजह से अब यह बच्चें सरकारी स्कूलों का रुख कर रहे हैं और यह बदलाव पूरे देशभर में देखा जा रहा है.
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