दुमका, बरहेट और जामा अंतिम चरण के चुनाव की सबसे महत्वपूर्ण सीटें हैं। इन सीटों पर हार-जीत से एक घराने की किस्मत के साथ साथ यहां की राजनीति की दशा और दिशा भी तय होने वाली है। दुमका और बरहेट से खुद हेमंत सोरेन मैदान में हैं, तो जामा से गुरूजी की विधवा पुत्रवधु सीता सोरेन मैदान में हैं।
गुरूजी के रूप से चर्चित झामुमो सुप्रीमो शिबू सोरेन अपनी विरासत की अंतिम पारी खेल रहे हैं। लंबे समय से बीमार चल रहे गुरूजी में अब दहाड़ने की शक्ति कम हो चुकी है। याद्दाश्त भी कम हो चली है, लंबे संघर्ष और त्याग के बल पर झारखंड को अलग राज्य बनाने में उनकी भूमिका को कतई नहीं नकारा जा सकता है।
लेकिन उम्र के ढलान पर विरासत को संभालना उनके लिए सबसे बड़ी चुनौती है। लिहाजा उन्होंने अपनी बागडोर अपने लाड़ले हेमंत सोरेन को दे दी है। हेमंत सोरेन भी अपनी जिम्मेवारी को बखूबी निभा रहे हैं। झामुमो में हेमंत सोरेन ने जान फूंक दी है। पार्टी के कई दिग्गजों को भी किनारा लगाने में हेमंत सोरेन नहीं झिझके। लेकिन हेमंत सोरेन अच्छी तरह जानते हैं कि दुमका, बरहेट और जामा सीट अगर नहीं बचा पाए तो आगे क्या होगा।
क्योंकि झामुमो को स्थापित करने में बड़ी भूमिका निभाने वाले हेमलाल मुर्मू और साइमन मरांडी सरीखे नेता भाजपा में जाकर झामुमो को डैमेज करने में जुटे हैं। लिहाजा, इन तीन सीटों के चुनावी नतीजे न सिर्फ शिबू सोरेन, हेमंत सोरेन और सीता सोरेन की तकदीर तय करेंगे बल्कि लंबे समय से संथाल की पहली पसंद रही झामुमो की किस्मत भी तय होगी।
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FIRST PUBLISHED : December 18, 2014, 13:37 IST