रांची. नक्सलवाद की जड़ों को उखाड़ने में सुरक्षाबलों और झारखंड पुलिस (Jharkhand Police) ने 2021 में जबर्दस्त अभियान चलाया. 2021 में पुलिस के हाथ सबसे बड़ी सफलता लगी. पहली बार 2021 में केंद्रीय कमिटी के सदस्य प्रशांत बोस (Naxalite Prashant Bose) को पत्नी के साथ गिरफ्तार किया गया. 2021 में प्रशांत बोस के अलावा 410 नक्सलियों को गिरफ्तार करने में पुलिस बलों को सफलता मिली. वर्ष 2021 में नक्सलियों के खिलाफ अभियान से नक्सलवाद भले कमजोर नजर आ रहा हो, लेकिन नक्सली अपने वर्चस्व को खत्म होने नहीं देना चाहते. यही वजह है कि झारखंड में नक्सलियों ने 96 वारदातों को अंजाम दिया है.
गिरफ्तार होने वालों में एक करोड़ का इनामी प्रशांत बोस भी- झारखंड पुलिस और केंद्रीय एजेंसियां लगातार नक्सलवाद के खात्मे में जुटी हैं और इस फेहरिस्त में कामयाबी भी मिली है. झारखंड पुलिस प्रवक्ता सह झारखंड पुलिस के आईजी अभियान अमोल विनुकान्त होमकर ने बताया कि 2021 में राज्य में एक करोड़ का इनामी प्रशांत बोस समेत 28 बड़े नक्सली गिरफ्तार हुए हैं, जिनमें शीला मरांडी, प्रद्युम्न शर्मा, रमेश गंझू, नरेश गंझू, उदय उरांव, किशुन गंझू, नेपाली जी, किशोर सिंह, विनय कुमार सिंह, राजा राम रजक, ओझा पाहन, सौरभ, दीपक नायक, सामुअल कांडुलना, अर्जुन गंझू, राकेश साव, विजय यादव, कुंवर उरांव, सुमन सिंह, अजय पूर्ति, नसीम अंसारी, जोहन टोप्पो, सुजीत कुमार राम, मोदी, श्रवण उरांव और ललन भुइयां शामिल हैं.
2021 में मिली पुलिस को कामयाबी
झारखंड में नक्सलियों ने हत्या की 09, आगजनी की 07, एसॉल्ट की 08, अपहरण की 02 आइइडी बलास्ट की 15, पुलिस पर हमले की एक, हत्या के प्रयास से संबंधित 02, पोस्टरबाजी की 03 और लेवी मांगने से संबंधित 40 घटनाओं को अंजाम दिया है. इस साल पांच नक्सली मुठभेड़ में मारे गये हैं जिनमें बुद्धेश्वर उरांव, सनिचर सुरीन, महेश जी, विनोद भुइयां शामिल हैं. झारखंड पुलिस के समक्ष 17 नक्सलियों ने आत्मसमर्पण भी किया है जिनमें मुकेश गंझू, जीवन कांडुलना, रघुवंश गंझू, नागेश्वर गंझू, नुनुचंद महतो, पातर जी, विष्णु दयाल नगेशिया, संजय गोप, अनिल उरांव, बैलुन सरदार, आकाश नगेशिया और प्रकाश गोप शामिल हैं.
अर्थतंत्र पर भी हमला
वर्ष 2021 झारखंड पुलिस के लिए शानदार रहा. पुलिस ने नक्सलियों के अर्थतंत्र पर भी बड़ा हमला किया तो वहीं नक्सलियों के चेहरे से राज्यवासियों को अवगत भी कराया. इस कारण उनका संगठन कमजोर हुआ. बहरहाल नक्सलवाद पर चोट आनेवाले नए साल में भी दिखेगी, लेकिन नक्सलियों को कमजोर समझना पुलिस और सुरक्षा एजेंसियों के लिए भारी पड़ सकता है. दरअसल नक्सलियों का इतिहास रहा है कि अभी तक वो ज्यादा दिन तक चुप नहीं रहे हैं और मौका मिलते ही पलटवार जरूर करते हैं.
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