रिपोर्ट : शिखा श्रेया
रांची. आदिवासियों की बात शुरू होते ही अक्सर भूख, गरीबी और लाचारी का खाका खींच दिया जाता है. इनकी जिजीविषा, इनके संघर्ष और इनकी सादगी-सचाई को लोग अक्सर नजरअंदाज कर दिया करते हैं. यह सही है कि आदिवासी मेहनतकश होते हैं. अपनी मेहनत के बल पर वे अपने रास्ते में आनेवाले तमाम समस्याओं के पहाड़ को राई बना डालते हैं. मन में जिम्मेवारियों का अहसास हो तो सिर पर रखा बोझ भी बोझ नहीं लगता, बस उसे जिम्मेवारी की तरह वे ढोते रहते हैं. ये तमाम बातें खादगढ़ा बस स्टैंड में कुली का काम कर रहे अर्जुन पर बिल्कुल फिट बैठती हैं.
बता दें कि इन दिनों सोशल मीडिया पर अर्जुन उस वीडियो के कारण वायरल हैं, जिसमें ये अपने सिर पर बाइक रखकर उसे बस पर लोड करने के लिए सीढ़ियां चढ़ते नजर आ रहे हैं. यह भी जानना रोचक होगा कि अर्जुन कुमार अनपढ़ नहीं हैं, उन्होंने अभी-अभी संत अलोइसिस स्कूल से इंटर की परीक्षा पास की है और अपनी पढ़ाई उन्होंने जारी रखी है.
लेकिन इन सब बातों के साथ यह जानना ज्यादा जरूरी है कि आखिर वे कौन सी मजबूरियां हैं जो अर्जुन को इस कदर मेहनत करने को बाध्य कर रही हैं. बता दें कि अर्जुन रांची के खादगढ़ा में रहते हैं. रोज सुबह 7 बजे वह अपने पिताजी के साथ वह खादगढ़ा बस स्टैंड में पहुंच जाते हैं और शाम 5 बजे तक काम करते हैं. काम है कुली का, यानी बोझ उठाने का. लेकिन यह बोझ भी कैसा? सिर पर बाइक जैसा भारी सामान सिर पर उठाकर उसे बस पर लोड कर देने जैसा.
जब भी कोई शख्स अपनी बाइक को बस के जरिए एक शहर से दूसरे शहर में भेजने के लिए आता है, तो बस स्टैंड में अर्जुन की खोज शुरू हो जाती है. क्योंकि बाइक जैसी वजनी चीज को बस पर लोड करना सबके बूते की बात नहीं. यह तो अर्जुन ही है जो गमछे को गोल घुमाकर अपने सिर पर रखता है और उस पर बाइक लादकर तेजी से बस के बाहर लगी सीढ़ियां चढ़ने लग जाता है. हिम्मत और संतुलन ऐसा कि न पांव डगमगाते हैं और न बाइक ही गिरती है. देखने वाले सिर्फ आंखें फाड़कर अर्जुन का यह कारनामा देखते हैं. और अर्जुन बाइक को खिलौने की तरह सिर पर उठाए बस पर लोड कर पलक झपकते ही उतर आता है.
अर्जुन बताते हैं कि वे अपने पिता-मां एक छोटा भाई और छोटी बहन के साथ रहते हैं. घर की माली हालत अच्छी नहीं है. मुझे अपनी पढ़ाई करनी है. छोटे भाई-बहन को पढ़ा-लिखाकर बड़ा करना है. दोनों की शादी करनी है. वे पूछते हैं कि इन सब काम के लिए पैसे तो चाहिए न? फिर हौले से मुस्कुराते हुए कहते हैं कि जिंदगी का बोझ जब सिर पर हो तो बाइक फिर बोझ नहीं लगती, जिम्मेवारी बन जाती है. और फिर किसी बाइक को बस पर लोड करने की मेहनत के बदले उन्हें 200 रुपए भी तो मिल जाते हैं.
आपको बता दें कि अर्जुन की कहानी में सिर्फ दुख-दर्द और तंगी ही नहीं है. उनकी जिंदगी में जिंदादिली भी है. वे अपने सपनों के बारे में बताते हैं. वे बताते हैं कि वे यू-ट्यूबर भी हैं. वे अपने यू-ट्यूब चैनल पर नागपुरी लोकगीत अपलोड किया करते हैं. इंस्टाग्राम पर भी वे खूब सक्रिय हैं. उन्हें गाना सुनने के साथ ही साथ गाना गाने का भी शौक है. वे कहते हैं कि अगर अच्छा प्लेटफॉर्म मिले तो मैं इंडियन आइडल तक जाना चाहता हूं. जब भी समय मिलता हैं मैं गाना गाता हूं और डांस भी करता हूं. जिंदगी को खुल कर जीता हूं और संघर्ष का आनंद लेता हूं. 19 वर्षीय अर्जुन का सपना है कि वे पुलिस की नौकरी करें. सिस्टम की ढेर सारी खामियां उन्हें नजर आती हैं, जिन्हें ठीक करने का बीड़ा उठाना चाहते हैं अर्जुन
खादगढ़ा बस स्टैंड से दूर-दराज के लिए बसें खुलती हैं. कई लोग बसों के माध्यम से अपनी बाइक भेजने के लिए यहां पहुंचते हैं. अर्जुन ने News18 Local को बताया कि कुछ दिन पहले एक व्यक्ति ने बस पर बाइक चढ़ाते हुए उसका वीडियो शूट किया था. वह बाइक वीडियो बनाने वाले व्यक्ति की ही थी. उन्होंने वीडियो अपने इंस्टाग्राम पर डाला था, जो वायरल हो गया. अर्जुन ने बताया कि इंस्टाग्राम पर जब उसने अपना वीडियो दिखा तो एकबारगी चौंक गया.
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