रांची. झारखंड में स्थानीय नीति का विवाद काफी पुराना है. किसे स्थानीय माना जाए इसे लेकर सरकार व विपक्ष के बीच हमेशा बहस चलती रहती है. स्थानीय भाषा का मुद्दा उठा तो एक बार फिर 1932 खतियान पर सियासत तेज हो गयी है. झारखंड में जिस तरह से भाषा विवाद (Language Dispute In Jharkhand) गहराते जा रहा है उससे कई तरह के सवाल उठने लगे हैं. वहीं, इधर 1932 के खतियान और स्थानीय नीति की मांग भी तेज हो गई है. प्रशासनिक सुधार और राजभाषा विभाग की ओर से 24 दिसंबर को भाषा को लेकर एक लिस्ट जारी की गई.
विधायक सरयू राय (Saryu Rai) ने सदन पटल पर 1932 की स्थानीय नीति को लेकर सरकार से जवाब मांगा कि क्या सरकार स्थानीय नीति के लिए 1932 के खतियान के आधार बनाना चाहती है. उन्होंने यह भी जानना चाहा कि पूर्व की सरकार ने स्थानीय नीति 2016 में तय की थी. उसमें संसोधन भी किया है जो वर्तमान सरकार को स्वीकार नहीं है.
सरयू राय के सवालों को जवाब देते हुए संसदीय कार्य मंत्री आलमगीर आलम (Alamgir Alam) ने कहा कि 1932 का खतियान तो रहेगा ही लेकिन सरकार 1964 और 1974 में हुए सर्वे की भी समीक्षा कर रही है. उन्होंने कहा कि अभी 2016 की स्थानीय नीति चल रही है. सरकार बहुत जल्द नई स्थानीय नीति लाएगी, इसके लिए त्रि स्तरीय मंत्रिमंडलीय उप समिति के गठन का मामला सरकार के समक्ष विचाराधीन है.
बता दें, राज्य में 24 प्रतिशत आदिवासी, 10 प्रतिशत हरिजन और 20 प्रतिशत बाहर से आकर बसे लोगों के अलावा करीब 46 प्रतिशत मूलवासी रहते हैं. आदिवासी और हरिजन के लिए तो आरक्षण नीति लागू है जिससे उन्हें लाभ मिल जाता है, लेकिन ब्राह्मण, राजपूत, तेली, कुर्मी, वैश्यजाति और मुस्लिम अपने अधिकार से वंचित रह जाते हैं. वैसे इस मामले में राजनीति फिर से शुरू हो सकती है. वैसे एक बड़ा वर्ग चाहता है की 1932 के सर्वे में जिनका नाम हो उसे मूलवासी स्थानीय माना जाए.
ब्रेकिंग न्यूज़ हिंदी में सबसे पहले पढ़ें News18 हिंदी | आज की ताजा खबर, लाइव न्यूज अपडेट, पढ़ें सबसे विश्वसनीय हिंदी न्यूज़ वेबसाइट News18 हिंदी |
Tags: Jharkhand Government, Jharkhand news, Jharkhand Politics