रांची. किसी ने सच ही कहा है कि सफलता की कहानी संघर्ष की कलम से ही लिखी जाती है. शिक्षा के मामले में पिछड़े झारखंड (Jharkhand) के सुदूर इलाकों की रहने वाली आदिवासी बेटियों में आखिर किस तरह पढ़ाई का जुनून है इसकी बेहतरीन बानगी रांची (Ranchi) से देखने को मिली है. किताबें किस्मत बदलती हैं और किताबों के साथ दोस्ती ही इंसान को उसके मुकाम तक पहुंचाती है. रांची के एक पेट्रोल पंप (Patrol Pump) पर काम करने वाली गुमला की रेखा राखी कच्छप और रंजना लकड़ा की कहानी कुछ ऐसी ही है. पिछले छह सालों से रांची के एक पेट्रोल पंप पर काम करने वाली दोनों आदिवासी लड़कियों (Tribe Girls) ने अपने संघर्ष और जुनून की बदौलत ही पोस्ट ग्रेजुएट तक की पढ़ाई पूरी की और अब दोनों का सपना शिक्षक बनने का है.
गुमला की रहने वाली रेखा बताती है कि वह बी.एड में नामांकन कराने की कोशिश में जुटी हैं लेकिन सपनों को पूरा करने के इस सफर में पैसों की कमी एक दीवार बनकर बार-बार सामने आ रही है क्योंकि पेट्रोल पंप पर उन्हें मिलते हैं साढ़े सात हजार रुपए और बीएड की पढ़ाई के लिए चाहिए करीब डेढ़ लाख. रेखा चार भाई-बहन हैं. उनके पिता पीएचडी विभाग से सेवानिवृत्त हो चुके हैं और पूरा परिवार गुमला में ही रहता है.
रेखा की तरह ही पोस्ट ग्रेजुएट कर चुकी रंजना लकड़ा भी शिक्षक बनने के सपने देख रही हैं. गुमला की रहने वाली रंजना ने हिंदी भाषा में एमए किया है और वह हिंदी की एक बेहतरीन शिक्षिका बनना चाहती हैं, हालांकि पैसों की कमी की वजह से रंजना को बीच में पढ़ाई छोड़नी पड़ी लेकिन अब वह भी अपनी मेहनत के बूते बी.एड में नामांकन लेने की कोशिश में जुटी हैं.
रंजना और रेखा के परिवार की हालत ऐसी नहीं है कि दोनों की बी.एड की पढ़ाई का खर्च उठा सकें, लिहाजा दोनों ने लंबे समय से रांची में ही किराए के मकान में रहकर अपनी मैट्रिक से लेकर एमए तक की पढ़ाई पूरी की और अब लक्ष्य शिक्षक बनकर स्कूल में पढ़ाने का है. पेट्रोल पंप के मैनेजर बताते हैं कि प्रबंधन की ओर से पढ़ने वाली लड़कियों को नौकरी में वरीयता दी जाती है.
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