अन्य कोर्सों की तरह यहां मिलती है मोबाइल चोरी की ट्रेनिंग, बच्चे बनते हैं 'छोटू उस्ताद'

साहेबगंज का महाराजपूर गांव
एसपी एचपी जनार्दनन का कहना है कि एेसे गिरोहों की पहचान कर उनके खिलाफ कार्रवाई की जाएगी. इसके लिए स्थानीय पुलिस को निर्देश दिया गया है.
- News18 Jharkhand
- Last Updated: November 26, 2018, 1:53 PM IST
झारखंड के साहेबगंज में दूसरे कोर्सों की तरह मोबाइल चोरी का प्रशिक्षण दिया जाता है. पढ़कर ताजुब्ब लगा होगा, लेकिन ये सौ आने सच है. इसके लिए बच्चों को चुना जाता है और उन्हें मोबाइल चोरी के लिए प्रशिक्षित किया जाता है. जिला मुख्यालय से महज 15 किलोमीटर दूर महाराजपूर गांव में इसका खुला रैकेट चलता है.
महाराजपूर गांव मोबाइल चोरी के रैकेट को लेकर जिले में बदनाम है. खास बात यह है कि यहां मोबाइल चोरी करने के तमाम तरीके बच्चों को सिखाए जाते हैं. घरों में चोरी के प्रशिक्षण का कार्यशाला चलता है. प्रशिक्षण के बाद इन बच्चों को महंगे मोबाइलों पर हाथ साफ करने के लिए शहर भेज दिया जाता है. जहां ये बच्चे मोबाइल चुराकर उन्हें रैकेट के सदस्य के हवाले करते हैं. और फिर उन मोबाइलों को स्थानीय बाजार में लाकर बेचा जाता है. इससे गिरोह को सालाना लाखों की कमाई होती है.
कमाई से चोरी में शामिल बच्चों के परिवारों को मोटी रकम दी जाती है. स्थानीय नेता इसके लिए प्रशासन को जिम्मेदार ठहरा रहे हैं. उनका कहना है कि इससे गांव और जिले की बदनामी हो रही है. जिला बाल संरक्षण पदाधिकारी पूनम कुमारी का कहना है कि पुलिस को ऐसे रैकेट के खिलाफ सख्त कार्रवाई करनी चाहिए.
एसपी एचपी जनार्दनन का कहना है कि एेसे गिरोहों की पहचान कर उनके खिलाफ कार्रवाई की जाएगी. इसके लिए स्थानीय पुलिस को निर्देश दिया गया है. बतौर एसपी मोबाइल चोरी के कारोबार से अर्जित सम्पति को जब्त किया जाएगा.साइबर क्राइम के लिए झारखंड देश में पहले से ही बदनाम है. अब मोबाइल चोरी का ये नया खेल सूबे को कलंकित कर सकता है. दुखद पहलू ये है कि इसके लिए बच्चों को जरिया बनाया गया है. परिवारवाले इसमें खुलकर गिरोह का साथ देते हैं.
(निशांत की रिपोर्ट)
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महाराजपूर गांव मोबाइल चोरी के रैकेट को लेकर जिले में बदनाम है. खास बात यह है कि यहां मोबाइल चोरी करने के तमाम तरीके बच्चों को सिखाए जाते हैं. घरों में चोरी के प्रशिक्षण का कार्यशाला चलता है. प्रशिक्षण के बाद इन बच्चों को महंगे मोबाइलों पर हाथ साफ करने के लिए शहर भेज दिया जाता है. जहां ये बच्चे मोबाइल चुराकर उन्हें रैकेट के सदस्य के हवाले करते हैं. और फिर उन मोबाइलों को स्थानीय बाजार में लाकर बेचा जाता है. इससे गिरोह को सालाना लाखों की कमाई होती है.
कमाई से चोरी में शामिल बच्चों के परिवारों को मोटी रकम दी जाती है. स्थानीय नेता इसके लिए प्रशासन को जिम्मेदार ठहरा रहे हैं. उनका कहना है कि इससे गांव और जिले की बदनामी हो रही है. जिला बाल संरक्षण पदाधिकारी पूनम कुमारी का कहना है कि पुलिस को ऐसे रैकेट के खिलाफ सख्त कार्रवाई करनी चाहिए.
एसपी एचपी जनार्दनन का कहना है कि एेसे गिरोहों की पहचान कर उनके खिलाफ कार्रवाई की जाएगी. इसके लिए स्थानीय पुलिस को निर्देश दिया गया है. बतौर एसपी मोबाइल चोरी के कारोबार से अर्जित सम्पति को जब्त किया जाएगा.साइबर क्राइम के लिए झारखंड देश में पहले से ही बदनाम है. अब मोबाइल चोरी का ये नया खेल सूबे को कलंकित कर सकता है. दुखद पहलू ये है कि इसके लिए बच्चों को जरिया बनाया गया है. परिवारवाले इसमें खुलकर गिरोह का साथ देते हैं.
(निशांत की रिपोर्ट)
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