सरायकेला के डॉ विश्वनाथ चीन की देसी चिकित्सा पद्धति से लोगों का इलाज करते हैं.
सरायकेला. वक्त बदलने के साथ भले ही अंग्रेजी दवा और मॉर्डन चिकित्सा पद्धति ने समाज में पैठ बना ली हो, लेकिन आज भी कई लोग हैं, जो देसी चिकित्सा पद्धति को आगे बढ़ाते हुए मरीजों का इलाज (Treatment) कर रहे हैं. चीन की सदियों पुरानी चिकित्सा पद्धति (China's Old Medical Practice) को अपनाते हुए सरायकेला के कुकड़ू प्रखंड के डाटम में डॉ. विश्वनाथ मरीजों का सफल इलाज कर रहे हैं. यहां मॉर्डन चिकित्सा पद्धति से इलाज कराकर थक-हार चुके मरीज आते हैं और सफल इलाज पाकर घर लौटते हैं. डॉ. विश्वनाथ की इस मुहिम में सात समंदर पार के विदेशी डॉक्टर भी उनका सहयोग करते हैं.
झारखंड के अलावा पड़ोसी राज्यों से पहुंचते हैं मरीज
कुकड़ू प्रखंड मुख्यालय से महज दो किलोमीटर दूर स्थित डाटम में स्थित दस बेड का अस्पताल बीमारी से मायूस लोगों के लिए वरदान साबित हो रहा है. यहां चीन की पद्धति, एक्युप्रेशर और नेचुरोपैथी से शुगर, ब्लडप्रेशर, पैरालाइसिस समेत कई बीमारियों का सफलतापूर्वक इलाज होता है. यहां रांची, सरायकेला, पोटका, पटमदा के साथ-साथ पड़ोसी राज्य ओडिशा और पश्चिम बंगाल से मरीज पहुंचते हैं. और स्वस्थ होकर घर लौटते हैं.
विदेशी डॉक्टर करते हैं सहयोग
डॉक्टर विश्वनाथ सिंह ने इस अस्पताल की शुरुआत वर्ष 2010 में की थी. अब यह अस्पताल और यहां का इलाज धीरे-धीरे प्रसिद्ध हो रहा है. मॉर्डन चिकित्सा पद्धति से अपने बीमारियों का इलाज कराकर थक-हार चुके मरीज यहां आते हैं और स्वस्थ होकर जाते हैं. डॉ विश्वनाथ के इस काम में अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया, इंग्लैंड समेत कई देशों के चिकित्सक उनका सहयोग करते हैं. विदेशी डॉक्टर यहां आकर मरीजों का इलाज भी करते हैं. बिना सरकारी सहयोग से चल रहे इस अस्पताल में अबतक करीब दस हजार मरीज इलाज करा चुके हैं.
डॉ. विश्वनाथ ने बताया कि यह चिकित्सा पद्धति चीन की है.जापान व कोरिया में भी इस पद्धति से इलाज का प्रचलन है. भारत देश में पश्चिम बंगाल और महाराष्ट्र में इस पद्धति को जानने वाले लोग हैं. इन राज्यों में इस तरीके के इलाज का प्रचलन है. बतौर डॉक्टर यहां इलाज पंचतत्व के आधार पर एक्युप्रेशर व नेचुरोपैथी से किया जाता है. इससे विभिन्न बीमारियों का इलाज संभव है.
इस अस्पताल की खासियत यह है कि यहां निःशुल्क सेवा देने हेतु अमेरिका, इंग्लैंड और ऑस्ट्रेलिया के चिकित्सकों का दल समय-समय पर आते हैं. फिलहाल इंग्लैड के डॉक्टर साइमन और डॉक्टर ईवा नेज यहां मरीजों का इलाज करने में जुटी हैं. दोनों चिकित्सक दिन-रात मरीजों की सेवा में व्यस्त रहते हैं. उन्होंने बताया कि यह चीन की सदियों पुरानी चिकित्सा पद्धति है. वे सोशल साइट्स के जरिये इस पद्धति के बारे में जानकारी प्राप्त की. फिर काफी मेहनत व खोजबीन के बाद सरायकेला पहुंचकर मरीजों का इलाज कर रहे हैं.
बगैर सरकारी सहायता के यह अस्पताल लोगों के लिए वरदान साबित हो रहा है. लोगों का कहना है कि सरकारों को इस पारंपरिक चिकित्सा पद्धति को संरक्षित व प्रोत्साहित करने की दिशा में ध्यान देना चाहिए. हालांकि मोदी सरकार ने देसी चिकित्सा पद्धति को बल देने के लिए पिछले दिनों बिल पारित कराया है. इससे डॉ विश्वनाथ जैसे लोगों में खासा उम्मीद जगी है.
रिपोर्ट- विकास कुमार
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