राजतंत्र की परंपरा को हर साल निभाती है सरकार, SDO करते हैं मां दुर्गे की पूजा

सरकारी खर्च पर मां दुर्गे की पूजा
एसडीओ कयूम कहते हैं कि वह इस परंपरा को निभाकर खुशी महसूस कर रहे हैं. उनके लिए सभी धर्म समान हैं. देश व राजधर्म सर्वोपरी है.
- News18 Jharkhand
- Last Updated: October 16, 2018, 1:56 PM IST
सरायकेला में एक ऐसा स्थान है, जहां सरकारी पैसे से दुर्गा पूजा का आयोजन होता है. राजतंत्र के समय से शुरू हुई यह परंपरा आज भी जारी है. इस परंपरा को हर साल सरायकेला के एसडीओ निभाते हैं. चाहे वह किसी भी धर्म के क्यों ना हों. राजधर्म के तहत एसडीओ पूजा करते हैं. इसबार एसडीओ डॉ बशारत कयूम मां की आराधना में जुटे हुए हैं.
जानकारी के मुताबिक सरायकेला के राजा ने भारत सरकार से यह मांग रखी थी कि राजपरिवार द्वारा आजादी के पूर्व जिन पूजा परंपराओं का निर्वहन किया जाता था, उन्हें आजादी के बाद भारत सरकार जारी रखेगी. इसपर सहमति बनी और उसी आधार पर हर साल दुर्गा पूजा, काली पूजा, अन्नपूर्णा पूजा, मुहर्रम जैसी परंपराओं का निर्वहन सरकारी खर्च पर होता है. सरकार की ओर से इसके लिए मंदिरों व मठों को राशि दी जाती है. वर्षों से चली रही इस परंपरा के तहत सरायकेला एसडीओ तथा राजकीय छऊ नृत्य कलाकेन्द्र के निदेशक पूजा पर बैठते हैं. एसडीओ चाहे किसी भी धर्म के हो, सरकारी स्तर से हो रहे इस पूजा परंपरा का निर्वहन करते हैं.
इस बार यह संयोग है कि सरायकेला एसडीओ के रूप में पदस्थापित डॉ. वशारत कयूम मुस्लिम हैं. अक्टूबर में नव पदस्थापना के ठीक बाद उन्हें इस परंपरा को निभाने की जिम्मेवारी मिली है. जिसे वह पूरी तन्मयता से निभा रहे हैं. खुद पूजा में शामिल हो रहे हैं. एसडीओ कयूम कहते हैं कि वह इस परंपरा को निभाकर खुशी महसूस कर रहे हैं. उनके लिए सभी धर्म समान हैं. देश व राजधर्म सर्वोपरी है.
(विकास कुमार की रिपोर्ट)ये भी पढ़ें- वेदों में है इस मंदिर का उल्लेख, नवरात्र पर मत्था टेकने से पूरी होती हैं सारी मनोकामनाएं
मां शक्ति की सिर्फ पूजा ना करें, नारी का सम्मान भी करें- रघुवर दास
जानकारी के मुताबिक सरायकेला के राजा ने भारत सरकार से यह मांग रखी थी कि राजपरिवार द्वारा आजादी के पूर्व जिन पूजा परंपराओं का निर्वहन किया जाता था, उन्हें आजादी के बाद भारत सरकार जारी रखेगी. इसपर सहमति बनी और उसी आधार पर हर साल दुर्गा पूजा, काली पूजा, अन्नपूर्णा पूजा, मुहर्रम जैसी परंपराओं का निर्वहन सरकारी खर्च पर होता है. सरकार की ओर से इसके लिए मंदिरों व मठों को राशि दी जाती है. वर्षों से चली रही इस परंपरा के तहत सरायकेला एसडीओ तथा राजकीय छऊ नृत्य कलाकेन्द्र के निदेशक पूजा पर बैठते हैं. एसडीओ चाहे किसी भी धर्म के हो, सरकारी स्तर से हो रहे इस पूजा परंपरा का निर्वहन करते हैं.
इस बार यह संयोग है कि सरायकेला एसडीओ के रूप में पदस्थापित डॉ. वशारत कयूम मुस्लिम हैं. अक्टूबर में नव पदस्थापना के ठीक बाद उन्हें इस परंपरा को निभाने की जिम्मेवारी मिली है. जिसे वह पूरी तन्मयता से निभा रहे हैं. खुद पूजा में शामिल हो रहे हैं. एसडीओ कयूम कहते हैं कि वह इस परंपरा को निभाकर खुशी महसूस कर रहे हैं. उनके लिए सभी धर्म समान हैं. देश व राजधर्म सर्वोपरी है.
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