सरायकेला में राजतंत्र की पूजा-परंपराओं को राज्य सरकार निभाती आ रही है.
सरायकेला-खरसावां. जिले में आज भी राजतंत्र के जमाने की परंपराएं शिद्दत से निभाई जाती हैं. इसके लिए खर्च राज्य सरकार करती है. जंताल पूजा, मां झूमकेश्वरी पूजा, जगधात्री पूजा, ये ऐसी परंपराएं हैं, जो सामूहिक रूप में वैसे ही निभायी जाती रही हैं, जैसे राजतंत्र के समय में निभायी जाती थीं. दरअसल आजादी के बाद जब राजतंत्र का भारतीय लोकतंत्र में विलय हुआ, तो एकरारनामा में यह सहमति बनी कि जो पूजा- परंपराएं सरायकेला राजा द्वारा निभायी जाती हैं, उन्हें आगे सरकार भी जारी रखेगी. इसी एग्रीमेंट के आलोक में आज भी सरकार द्वारा राजतंत्र की पूजा- परंपराओं को निभाया जाता है.
राजतंत्र की परंपराओं को निभाती है सरकार
राज्य सरकार इसके लिए हर साल मंदिर-मठों के लिए राशियों का आवंटन करती है. यही नहीं सरकारी पदाधिकारी के रूप में राजकीय छऊ नृत्य कला केन्द्र के निदेशक खुद यजमान बनकर राजतंत्र की पूजा-परंपराओं को निभाते हैं. एक ऐसी ही परंपरा मां पाउड़ी की पीठ पर नुआखया जंताल पूजा का हर साल आयोजन होता है. इसमें आम लोग की भागीदारी पहले जैसी ही होती है. लोग पूरी श्रद्धा से यहां पूजा-पाठ में शामिल होते हैं.
सरायकेला की ये पूजा-परंपराएं राजतंत्र के समय की सामाजिक समरसता की कहानी भी बयां करती हैं. मां पाउड़ी की पूजा कोई पंडित नहीं, बल्कि हरिजन नायक जाति के लोग करते हैं. यहां बलि प्रथा की भी परंपरा है.
जिलेवासियों का कहना है कि ये सब सरायकेला की इष्ट देवी मां पाउड़ी को शांत करने के लिए होती है. लोग पूरे भक्तिभाव से इस पूजा में हिस्सा लेते हैं और मां का आशीर्वाद लेते हैं.
रिपोर्ट- विकास कुमार
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