दो दिन बाद देश 200 सालों की गुलामी से आजाद होने वाला था. हर ओर इसकी खुशी थी लेकिन इसके बीच बहुत सी घटनाएं बहुत तेजी से घट रही थीं. उत्तर भारत से काफी बड़ी संख्या में मुस्लिम पाकिस्तान जा रहे थे. केवल पुरानी दिल्ली जिसकी आबादी 09 लाख के आसपास थी, उसकी तिहाई आबादी खाली हो चुकी थी.
आजादी के दो दिन पहले भारत ने सोवियत संघ के साथ दोस्ताना संबंध बनाने का फैसला किया. हालांकि उस सोवियत संघ के प्रमुख स्तालिन थे. उन्हें भारत को लेकर बहुत सी गलतफहमियां थीं. उन्हें लग रहा था कि भारत में आजादी तो मिल रही है लेकिन उसके बाद ये ब्रिटेन का ही पिछलग्गू बना रहेगा.इसके अलावा ना जाने क्यों स्तालिन को इस आजादी होते देश को लेकर कई ऐसी बातें दिमाग में घुसी थीं, जिसका कोई आधार नहीं था.
स्तालिन का भारत के प्रस्ताव पर ठंडा रुख
भारत ने आजादी के विजय लक्ष्मी पंडित को सोवियत संघ में अपना पहला राजदूत बनाकर भेजा. शायद यही वजह थी कि स्तालिन ने उनसे मिलने में कोई दिलचस्पी नहीं दिखाई बल्कि भारत के दोस्ताना संबंध रखने के फैसले पर भी सोवियत संघ ने कोई खास उत्साह नहीं दिखाया था.
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त्रिपुरा की रानी ने अधिमिलन पत्र पर साइन किये
त्रिपुरा लंबे समय से प्रिंसले स्टेट था. 13 अगस्त 1947 को त्रिपुरा की रानी कंचनप्रभा देवी ने अधिमिलन पत्र (Instrument of Accession) पर साइन किये. हालांकि रानी चाहती थीं कि राज्य में उनका स्वायत्तता बनी रहे और राज्य की बागडोर भी वही संभालती रहें. उन्होंने कई शर्तों के साथ भारतीय संघ में आना स्वीकार किया.

त्रिपुरा की महारानी कंचनप्रभा देवी अपने पति वीर विक्रम सिंह के साथ. आजादी से तीन महीने पहले उनके पति का निधन हो गया. उन्होंने भारत के साथ अधिमिलन पत्र साइन जरूर किया लेकिन राज्य का नियंत्रण अपने पास रखा
त्रिपुरा के राजा वीर विक्रम किशोर देवबर्मन का निधन मई 1947 में हो गया था. उस समय उनके पुत्र किरिट विक्रम किशोर नाबालिग थे, इसलिए राज्य की कौंसिल ऑफ रिजेंसी की प्रमुख महारानी कंचन प्रभा देवी थीं.
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हालांकि राज्य में इसका विरोध हुआ. आने वाले महिनों में राज्य में तमाम ऐसी घटनाएं होती रहीं कि स्थिरता बनी रही. बाद में 09 सितंबर 1949 को अंतिम तौर पर महारानी ने विलय पत्र पर सहमति, जो 15 अक्टूबर को जाकर हरकत में आ पाया. तब त्रिपुरा केंद्र शासित प्रदेश बना.
हीरालाल कनिया मुख्य न्यायाधीश बने
हीरालाल जेकीसुदास कनिया फेडरल कोर्ट के चीफ जज थे. उन्हें भारत का पहला मुख्य न्यायाधीश बनाया गया. 14 अगस्त 1947 को संघीय न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश सर पैट्रिक स्पेंज सेवानिवृत्त हो रहे थे. ये पद कनिया को मिला. 26 जनवरी को जब भारत गणराज्य बना तो तो कनिया देश के सर्वोच्च न्यायालय के पहले मुख्य न्यायाधीश बने.
भोपाल के नवाब का रुख
वहीं भोपाल के नवाब हमीदुल्लाह खान ने साफतौर पर कहा कि वो अपनी रियासत को आजाद रखें. भारतीय संघ में शामिल नहीं होंगे. कुछ ऐसा ही लखनऊ में अवध के नवाब के प्रपोत्र ने कहा.

आजादी से पहले उत्तर भारत से मुस्लिमों का पलायन तेजी से पाकिस्तान के लिए हो रहा था. ट्रेन से जाने वालों में बड़े पैमाने पर मुस्लिम महिलाएं भी थीं
लखनऊ में क्या हुआ
लखनऊ में रात में रेजीडेंसी से 90 साल से लटका यूनियन जैक उतार लिया गया. लखनऊ में एक अजीब बात हुई. नवाब वाजिद अली शाह का प्रपौत्र युसुफ अली मिर्जा पहली बार शहर में आए. उन्हें देखने के लिए हजारों की भीड़ उमड़ पड़ी. शाम को घोषणा की गई कि 15 अगस्त के बाद अवध आजाद हो जाएगा और उसके नवाब होंगे मिर्जा. हैदराबाद के निजाम ने एक घोषणा पत्र जारी करते हुए उनका राज्य स्वतंत्र रहेगा. भारत में नहीं मिलेगा.
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लाहौर में स्थिति बिगड़ी, अमृतसर में गोली चली
13 अगस्त 1947 लाहौर में स्थिति औऱ बिगड गई. हर ओर आगजनी, तोडफ़ोड़, लूटपाट, बम धमाके, कत्लेआम और चीखपुकार. वैसे ऐसी ही हृदयविदारक स्थिति पंजाब के और भी इलाकों की थी. कानून और प्रशासन का राज खत्म हो चुका था. अमृतसर में पुलिस को गोली चलानी पड़ी. पंजाब में प्रेस सेंसरशिप लागू कर दी गई. कलकत्ता में गांधीजी के रहने से वहां स्थितियां तेजी से सामान्य होने लगी थीं.
अंग्रेज अब वापस लौटना चाहते थे
ऐसा लगता था कि अंग्रेज अफसरों की इच्छाशक्ति अब कानून-व्यवस्था को बहाल रखने की बची ही नहीं है. वो अनिच्छा से काम कर रहे लगते थे. अंग्रेज फौजें और पुलिस में भी असमंजस थे. वो सब अब वापस लंदन लौटना चाहते थे.
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Tags: Freedom fighters, Independence day, Independence day of India, Tripura
FIRST PUBLISHED : August 13, 2020, 11:36 IST