भारत में पहली बार लंबी दूरी का तार साल 1854 में आगरा से कोलकाता के बीच भेजा गया था. वो आज का ही दिन था यानी 24 मार्च, जब दोनों छोरों के बीच लगभग 800 मील लंबी तार की लाइन बिछ चुकी थी. इसके बाद ये तार मुंबई (तत्कालीन बॉम्बे) और मद्रास तक भी पहुंचे लेकिन इससे पहले टेलीग्राम काफी लंबा सफर तय कर चुका था. साल 2013 की जुलाई में देश में ये सेवा हमेशा के लिए बंद कर दी गई क्योंकि संचार के कई साधनों के बीच इसका इस्तेमाल कम से कम हो चुका था.
टेलीग्राम की बात सुनते ही काफी लोग पुरानी यादों में खो जाते हैं. पहले टेलीफोन जैसी सुविधा नहीं थी और चिट्ठी पहुंचने में लंबा समय लगता था. ऐसे में बेहद जरूरी सूचनाएं तार के जरिए ही भेजी जाती थीं. खुशी के मौके से लेकर गम के वक्त भी तार भेजा जाता था. इसकी एक खास प्रक्रिया थी. इसके लिए टेलीग्राम दफ्तर में एक चार्ट मौजूद रहता था जिसपर तमाम सामान्य संदेशों के लिए एक खास नंबर लिखा होता था. उपभोक्ता को वह नंबर तार ऑपरेटर को बताना होता था और संदेश कुछ ही समय में अपने तयशुदा जगह तक पहुंच जाता.
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वैसे भारत में इसकी शुरुआत ब्रिटिश काल में और उन्हीं के इस्तेमाल के लिए हुई थी, लेकिन साल 1854 में इसे सार्वजनिक इस्तेमाल के लिए खोल दिया गया. इसके बाद से लगभग 163 सालों तक तार किसी आकस्मिक सूचना के लिए पहली प्राथमिकता बना रहा.

अंग्रेज सरकार अपने सारे दस्तावेज इसी के जरिए भेजती और मंगाती थी- सांकेतिक फोटो (picryl)
इसकी शुरुआत अंग्रेजी हुकूमत ने की थी. टाइम्स ऑफ इंडिया की एक रिपोर्ट के मुताबिक साल 1839 में भारत में इसपर छोटे स्तर का प्रयोग शुरू हुआ. इसके बाद पचास की शुरुआत में ही अंग्रेज अधिकारी और गर्वनर लॉर्ड डलहौजी ने Imperial Telegraph Department की शुरुआत करवाई. टेलीग्राम सेवा शुरू होने पर आगरा एशिया का सबसे बडा ट्रांजिट दफ्तर था. ये अंग्रेजी शासन के लिए काफी फायदेमंद साबित हुआ. शुरुआत में तो वे इसका उपयोग रसद आदि की जानकारी भेजने के लिए करते थे लेकिन फिर ये गोपनीय दस्तावेजों को फटाफट एक से दूसरे अधिकारी तक पहुंचाने का जरिया बन गया.
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अंग्रेज सरकार अपने सारे दस्तावेज इसी के जरिए भेजती और मंगाती थी. शुरुआती समय में ईस्ट इंडिया कंपनी ने तार का इस्तेमाल युद्ध के हालातों के बारे में बताने के लिए किया. आजादी की ज्वाला भड़कने पर अंग्रेज सरकार को कोई भी सुराग मिलता, वो सबसे पहले तार के जरिए इसे नीचे से ऊपर तक पहुंचा देती थी. इससे समय रहते वे युद्ध नीति बना लेते और क्रांति के इरादों को तोड़ देते थे. कुल मिलाकर बंदूकों के अलावा अंग्रेज सकार के पास तार भी किसी हथियार से कम नहीं था.

आगे चलकर तार की सर्विस देश में ज्यादा बेहतर ढंग से आकार ले सकी- सांकेतिक फोटो
बाद में क्रांतिकारियों ने इसी तकनीक को तहस-नहस कर ब्रिटिश हुकूमत को चोट पहुंचाई. हुआ ये कि विद्रोही जगह-जगह पर तार के सेवा को खराब करने लगे. दिल्ली, कानपुर, लखनऊ, इंदौर जैसी जगहों पर विद्रोहियों ने तार लाइनें उखाड़ दीं. यहां तक कि वे वहां काम करते लोगों को भी घायल कर देते ताकि तार का काम प्रभावित हो जाए. बीबीसी की एक रिपोर्ट में इस बात का जिक्र मिलता है कि उस दौरान देश में लगभग 918 मील लंबी तार की लाइनें तोड़ दी गईं.
साल 1870 में यूरोप तथा भारत को टेलीग्राफ लाइन से जोड़ दिया गया जो चार देशों से होकर गुजरती थी. इससे होता ये था कि भारत से ब्रिटेन की महारानी के पास भी संदेश कुछ ही देर में पहुंच जाता था, जो पहले जहाजों के जरिए काफी दिनों या महीनों में पहुंचता था. इससे उनके लिए प्रशासनिक काम करना और फैसले लेना आसान होता चला गया.
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आगे चलकर तार की सर्विस देश में ज्यादा बेहतर ढंग से आकार ले सकी. आजादी के बाद 1 जनवरी 1949 को नौ तारघरों– आगरा, इलाहाबाद, जबलपुर, कानपुर, पटना और वाराणसी में हिंदी में तार सेवा शुरू हुई. यहां तक कि सिक्किम के खांबजांग इलाके में भी तार सर्विस शुरू हो गई, जिसे दुनिया की सबसे ऊंची तार लाइन माना गया. अस्सी के दशक की शुरुआत में हमारे यहां कुल 31457 तारघर थे और केवल देश में ही तारों की बुकिंग 7 करोड़ से ऊपर जा चुकी थी.undefined
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FIRST PUBLISHED : March 24, 2021, 06:56 IST