कोरोना संक्रमण के बीच एक बात बार-बार पूछी जा रही है कि आखिर कौन सी वैक्सीन सबसे प्रभावी है. विश्वस्तरीय वैक्सीन्स, मॉडर्ना और फाइजर में तुलना हो रही है. इस दौरान अधिकतर विशेषज्ञ फाइजर वैक्सीन को सबसे सफल मान रहे हैं. mRNA तकनीक पर काम करने वाली इस वैक्सीन की एफिकेसी लगभग 95% है, अगर दोनों डोज दिए जाएं.
कैसे काम करती है फाइजर वैक्सीन?
इस वैक्सीन में लोगों के शरीर में mRNA डाला जाता है. ये वो जेनेटिक मटेरियल है जिससे शरीर की कोशिकाएं वायरस के प्रोटीन की पहचान कर लेती हैं और सक्रिय हो जाती हैं. ये शरीर को सिखाता है कि अगर वायरस का संक्रमण हो तो कैसे एंटीबॉडी बनानी है. बाद में वायरस के हमले पर शरीर की कोशिकाएं उसकी पहचान कर लेती हैं और इम्यून सिस्टम सक्रिय हो जाता है.
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किस उम्र के लोगों को फाइजर दी जा सकती है?
ये अकेली ऐसी वैक्सीन है, जो 16 साल या उससे ज्यादा उम्र के सभी लोगों को दी जा सकती है. वहीं मॉडर्ना समेत खुद भारत की बनाई वैक्सीन भी 18 साल या उससे अधिक आयुवर्ग के लिए बनी है. यानी देखा जाए तो फाइजर वैक्सीन ज्यादा बड़ी आबादी पर काम कर सकती है.

फाइजर अमेरिकन मल्टीनेशनल फार्मा कंपनी है, जो दुनिया की सबसे बड़ी फार्मा कंपनियों में से एक है- सांकेतिक फोटो
फाइजर वैक्सीन की एफिकेसी क्या है?
इसपर कई शोध लगातार हुए, जिनके नतीजे एक से हैं. जैसे statnews.com की स्टडी के मुताबिक फाइजर की एफिकेसी सबसे ज्यादा 95% है, जबकि मॉडर्ना का असर 94.1% माना जा रहा है.
क्या फाइजर के कोई साइड-इफैक्ट भी हैं?
क्लिनिकल ट्रायल के दौरान इसके जो साइड-इफैक्ट दिखे, उनमें सिरदर्द, वैक्सीन की जगह पर दर्द, लालिमा और सूजन दिखी. लगभग 3.8% लोगों ने इसे लेने के बाद थकान की शिकायत की. दूसरी ओर मॉडर्ना लेने पर लगभग 9.7% लोगों ने थकान की शिकायत की. यानी देखा जाए तो शॉर्ट-टर्म साइड इफैक्ट में भी फाइजर वैक्सीन बेहतर दिखती है.
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किस कंपनी ने फाइजर वैक्सीन तैयार की और वो कितनी बड़ी है?
ये अमेरिकन मल्टीनेशनल फार्मा कंपनी है, जो दुनिया की सबसे बड़ी फार्मा कंपनियों में से एक है. लगभग 47.644 बिलियन डॉलर के साथ इसे साल 2020 में Fortune 500 की सूची में 64वां स्थान मिला था. इसका मुख्य दफ्तर मैनहट्टन में है.

अमेरिकी फार्मा कंपनी फाइजर ने पहले ही भारत में अपने इमरजेंसी इस्तेमाल के लिए आवेदन किया था
फाइजर विषाणुजन्य बीमारियों के अलावा किन पर काम करती है?
इसके कामों की लिस्ट काफी लंबी-चौड़ी है. इसमें केवल इम्युनोलॉजी ही नहीं, बल्कि कैंसर, एंडोक्राइनोलॉजी और तंत्रिका विज्ञान पर भी शोध और दवाएं तैयार होती हैं. इसके अलावा यहां मानसिक इलाज के लिए दवाएं बनाने पर भी खूब ध्यान दिया जाता रहा.
क्या है फाइजर कंपनी का इतिहास, किसने रखी थी नींव?
साल 1849 में जर्मन अप्रवासी चार्ल्स फाइजर और उनके भाई चार्ल्स एफ अरहार्ट ने मिलकर इस कंपनी की शुरुआत की. तब इसका ऑफिस न्यूयॉर्क में था और कंपनी केमिकल बिजनेस का काम करती थी. एकाएक इन्हें पैरासाइट्स जैसे अमीबा के कारण होने वाली बीमारियों जैसे पेट की खराबी पर दवा बनाने में सफलता मिली, जिसके बाद रसायनों का काम छोड़ कंपनी पूरी तरह से बीमारियों पर रिसर्च और दवाएं, वैक्सीन बनाने लगी.
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पहले विश्व युद्ध के दौरान फैली संक्रामक बीमारियों के बाद कंपनी में क्रांतिकारी बदलाव आया. वो दूसरे देशों की दवा कंपनियों से दवाएं लेने की बजाए खुद उनके विकल्प खोजने और बनाने लगी. इसके बाद से फाइजर कंपनी लगातार आगे बढ़ रही है.

लगभग -70 डिग्री तापमान पर स्टोर की जाने वाली ये वैक्सीन भारत में कैसे रखी जाएगी, ये सवाल आता है (Photo- news18 English via AFP)
क्या फाइजर की वैक्सीन भारत में आ रही है?
इस बारे में फिलहाल कोई पक्की बात नहीं कही जा सकती. अमेरिकी फार्मा कंपनी फाइजर ने पहले ही भारत में अपने इमरजेंसी इस्तेमाल के लिए आवेदन किया था. लेकिन फिर इस साल की जनवरी में उसने अपना आवेदन वापस ले लिया. इसकी वजह है वो बॉन्ड, जिसपर उसे हमारी सरकार से मंजूरी नहीं मिली थी. कंपनी की मांग है अगर उसकी वैक्सीन के कारण अगर लोगों में कोई साइड-इफेक्ट होता है तो कंपनी पर कोई कानूनी कार्रवाई न हो.
बेहद ठंडे तापमान पर सुरक्षित रहने वाली फाइजर वैक्सीन को भारत में कैसे स्टोर किया जा सकेगा?
भारत की आबादी के जल्द से जल्द टीकाकरण के लिए स्वदेशी वैक्सीन्स के अलावा फाइजर पर लगातार बात हो रही है. हालांकि ये सवाल भी आ रहा है कि -70 डिग्री तापमान पर स्टोर की जाने वाली ये वैक्सीन भारत में कैसे रखी जाएगी. इसपर खुद फाइजर ने अपनी फैक्टशीट में बताया कि इसके लिए वो एक खास डिब्बे इस्तेमाल कर रहा है. ये थर्मल बॉक्स होता है, जिसका तापमान कंट्रोल किया जा सकता है.बॉक्स में तापमान को मापने वाली डिवाइस भी होती है ताकि कहीं कोई गड़बड़ी न हो.
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FIRST PUBLISHED : April 20, 2021, 11:36 IST