Explained: क्यों US अगले 50 सालों के लिए चीन के खिलाफ भारत का साथ चाहता है?

अमेरिका भारत को अगले 50 सालों से लिए चीन के खिलाफ मुहिम में अपने साथ चाहता है- सांकेतिक फोटो
हाल के महीनों में भारत और अमेरिका के बीच कई सैन्य समझौते (India and America military deals) हुए, जो सीधे चीन को कमजोर बनाने की ओर जाते हैं. अमेरिका की एंटी-चाइना भावनाएं वैसे भी अब किसी से छिपी नहीं हैं.
- News18Hindi
- Last Updated: January 18, 2021, 4:55 PM IST
अमेरिका में चीन के खिलाफ एक मुहिम-सी चल पड़ी है. इसी के तहत राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने उसपर कई आर्थिक पाबंदियां लगाई दीं. साथ ही अमेरिका उन सभी देशों से संबंध बढ़ा रहा है, जिनसे चीन का तनाव रहा है. भारत इनमें सबसे ऊपर है. हाल ही में एक रिपोर्ट पर खुलकर चर्चा हो रही है, जिसमें अमेरिका भारत को अगले 50 सालों से लिए चीन के खिलाफ मुहिम में अपने साथ चाहता है.
साल खत्म होते-होते भी डील
साल 2020 के अक्टूबर अमेरिका में राष्ट्रपति चुनाव सिर पर थे. लेकिन वो समय भी राष्ट्रपति ट्रंप को भारत के साथ एक डील करने से नहीं रोक सका जो चीन के खिलाफ था. बेसिक एक्सचेंज एंड कोऑपरेशन एग्रीमेंट (BECA) नाम से इस डील को अमेरिका और भारत के चीन को कमजोर करने की दिशा में काफी अहम डील माना जा रहा है.
भारत को क्या फायदा होगा
लगभग 50 सालों के लिए हुए इस समझौते की मदद से भारतीय मिसाइल और भविष्य के ड्रोन न सिर्फ पहले से ज़्यादा सधा हुआ निशाना लगा सकते हैं, बल्कि इस जानकारी का इस्तेमाल किसी आपदा के वक्त राहत और बचाव के काम को बेहतर तरीके से करने के लिए भी किया जा सकता है. के सैनिक उपग्रहों के पास बेहद सटीक जानकारी मौजूद है और अमेरिका ने अपनी इसी जानकारी का भंडार भारत के लिए भी खोल दिया ताकि चीन उसे किसी तरह का नुकसान न पहुंचा सके.
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इससे पहले एक और समझौता हो चुका है
लॉजिस्टिक एक्सचेंज मेमोरेंडम ऑफ एग्रीमेंट (LEMOA) नाम से इस समझौते के तहत ये पक्का हुआ है कि भारत और अमेरिका दोनों ही देश एक दूसरे के सैन्य ठिकानों का इस्तेमाल कुछ चीजों, जैसे रसद पहुंचाने या ईंधन भरने जैसे कामों के लिए कर सकते हैं.

डेटा के गुप्त आदान-प्रदान में भी मदद
अब जब दोनों देशों के बीच लगातार सैन्य समझौते हो रहे हैं तो इन्हें साझा करने के लिए एक सुरक्षित माध्यम भी चाहिए. लिहाजा एक और डील हुई, जिसे कम्युनिकेशन्स कम्पेटिबलिटी एंड सिक्योरिटी एग्रीमेंट (COMCASA) कहा गया. सिक्योर डेटा लिंक का इस्तेमाल करने वाले खास उपकरणों की खरीदी-बिक्री में ये डील मदद करेगी.
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चीन पर क्यों भड़का हुआ है अमेरिका
यूरेशियन टाइम्स की रिपोर्ट के मुताबिक 10 पन्नों की रिपोर्ट में चीन के खिलाफ एक पूरी रणनीति बनी हुई है, जिसके तहत हो रहे कई समझौतों का जिक्र है. वैसे अमेरिका के डर के पीछे एकाध साल नहीं, बल्कि लंबा इतिहास है. आज से 9 साल पहले तत्कालीन राष्ट्रपति बराक ओबामा ने चीन को रोकने के लिए विदेश नीतियां कुछ बदलीं, जबकि विशेषज्ञों के मुताबिक इसकी शुरुआत दो दशक पहले हो जानी चाहिए थी. लेकिन अमेरिका इस दौरान 9/11 हमले और अफगानिस्तान में युद्ध जैसी बातों में उलझा रहा और आर्थिक नीतियों या फिर चीन के तेजी से बढ़ने पर ध्यान नहीं दे सका.

चीन को मान रहे चुनौती
अब अमेरिकी संसद चीन के आगे बढ़ने को और खासकर उसके आक्रामक रवैये को लेकर डरी हुई है और नए सिरे से अपनी नीतियां बना रही है. सीनेट के कहने पर न्यू अमेरिकन सिक्योरिटी ने साल 2020 की शुरुआत में Rising to the China Challenge नाम से एक रिपोर्ट तैयार की. इसमें एशियाई देशों के लिए अलग और चीन के लिए अलग रवैया सुझाया गया.
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ट्रंप जाते-जाते भी चीन पर आर्थिक कड़ाई कायम रखे हैं, वहीं ट्रंप के विरोधी और नव-निर्वाचित राष्ट्रपति जो बाइडन भी चीन की नीतियों को लेकर ट्रंप का साथ देते दिखते हैं. कई बार अपने बयानों से बाइडन ने साफ कर दिया कि चीन के साथ कोई ढिलाई नहीं बरती जाएगी.
कई देशों में है चीन के खिलाफ लहर
चीन के खिलाफ इस अमेरिकी नीति में फ्रांस, जापान, ऑस्ट्रेलिया, दक्षिण कोरिया और थाइलैंड जैसे देश आ मिले हैं. भारत पहले से ही चीन पर भड़का हुआ है, तो इस लिहाज से वो अमेरिका का नया साथी है. अमेरिका से भारत के संबंध हाल में मजबूत हुए हैं तो इसकी वजह भी चीन से उसके तनावपूर्ण संबंध हैं. डॉन में अमेरिकी रिपोर्ट का हवाला देते हुए बताया गया है कि अमेरिका अब भारत को एशियाई देशों में सबसे ताकतवर बनाना चाहता है ताकि चीन कमजोर पड़ जाए.
साल खत्म होते-होते भी डील
साल 2020 के अक्टूबर अमेरिका में राष्ट्रपति चुनाव सिर पर थे. लेकिन वो समय भी राष्ट्रपति ट्रंप को भारत के साथ एक डील करने से नहीं रोक सका जो चीन के खिलाफ था. बेसिक एक्सचेंज एंड कोऑपरेशन एग्रीमेंट (BECA) नाम से इस डील को अमेरिका और भारत के चीन को कमजोर करने की दिशा में काफी अहम डील माना जा रहा है.

भारत-अमेरिका के बीच बेसिक एक्सचेंज एंड कोऑपरेशन एग्रीमेंट हुआ- सांकेतिक फोटो (news18 English via Reuters)
लगभग 50 सालों के लिए हुए इस समझौते की मदद से भारतीय मिसाइल और भविष्य के ड्रोन न सिर्फ पहले से ज़्यादा सधा हुआ निशाना लगा सकते हैं, बल्कि इस जानकारी का इस्तेमाल किसी आपदा के वक्त राहत और बचाव के काम को बेहतर तरीके से करने के लिए भी किया जा सकता है. के सैनिक उपग्रहों के पास बेहद सटीक जानकारी मौजूद है और अमेरिका ने अपनी इसी जानकारी का भंडार भारत के लिए भी खोल दिया ताकि चीन उसे किसी तरह का नुकसान न पहुंचा सके.
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इससे पहले एक और समझौता हो चुका है
लॉजिस्टिक एक्सचेंज मेमोरेंडम ऑफ एग्रीमेंट (LEMOA) नाम से इस समझौते के तहत ये पक्का हुआ है कि भारत और अमेरिका दोनों ही देश एक दूसरे के सैन्य ठिकानों का इस्तेमाल कुछ चीजों, जैसे रसद पहुंचाने या ईंधन भरने जैसे कामों के लिए कर सकते हैं.

दोनों देशों के बीच कई सैन्य समझौते हो चुके हैं- सांकेतिक फोटो
डेटा के गुप्त आदान-प्रदान में भी मदद
अब जब दोनों देशों के बीच लगातार सैन्य समझौते हो रहे हैं तो इन्हें साझा करने के लिए एक सुरक्षित माध्यम भी चाहिए. लिहाजा एक और डील हुई, जिसे कम्युनिकेशन्स कम्पेटिबलिटी एंड सिक्योरिटी एग्रीमेंट (COMCASA) कहा गया. सिक्योर डेटा लिंक का इस्तेमाल करने वाले खास उपकरणों की खरीदी-बिक्री में ये डील मदद करेगी.
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चीन पर क्यों भड़का हुआ है अमेरिका
यूरेशियन टाइम्स की रिपोर्ट के मुताबिक 10 पन्नों की रिपोर्ट में चीन के खिलाफ एक पूरी रणनीति बनी हुई है, जिसके तहत हो रहे कई समझौतों का जिक्र है. वैसे अमेरिका के डर के पीछे एकाध साल नहीं, बल्कि लंबा इतिहास है. आज से 9 साल पहले तत्कालीन राष्ट्रपति बराक ओबामा ने चीन को रोकने के लिए विदेश नीतियां कुछ बदलीं, जबकि विशेषज्ञों के मुताबिक इसकी शुरुआत दो दशक पहले हो जानी चाहिए थी. लेकिन अमेरिका इस दौरान 9/11 हमले और अफगानिस्तान में युद्ध जैसी बातों में उलझा रहा और आर्थिक नीतियों या फिर चीन के तेजी से बढ़ने पर ध्यान नहीं दे सका.

अमेरिकी संसद चीन के आगे बढ़ने को और खासकर उसके आक्रामक रवैये को लेकर डरी हुई है- सांकेतिक फोटो (pixabay)
चीन को मान रहे चुनौती
अब अमेरिकी संसद चीन के आगे बढ़ने को और खासकर उसके आक्रामक रवैये को लेकर डरी हुई है और नए सिरे से अपनी नीतियां बना रही है. सीनेट के कहने पर न्यू अमेरिकन सिक्योरिटी ने साल 2020 की शुरुआत में Rising to the China Challenge नाम से एक रिपोर्ट तैयार की. इसमें एशियाई देशों के लिए अलग और चीन के लिए अलग रवैया सुझाया गया.
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ट्रंप जाते-जाते भी चीन पर आर्थिक कड़ाई कायम रखे हैं, वहीं ट्रंप के विरोधी और नव-निर्वाचित राष्ट्रपति जो बाइडन भी चीन की नीतियों को लेकर ट्रंप का साथ देते दिखते हैं. कई बार अपने बयानों से बाइडन ने साफ कर दिया कि चीन के साथ कोई ढिलाई नहीं बरती जाएगी.
कई देशों में है चीन के खिलाफ लहर
चीन के खिलाफ इस अमेरिकी नीति में फ्रांस, जापान, ऑस्ट्रेलिया, दक्षिण कोरिया और थाइलैंड जैसे देश आ मिले हैं. भारत पहले से ही चीन पर भड़का हुआ है, तो इस लिहाज से वो अमेरिका का नया साथी है. अमेरिका से भारत के संबंध हाल में मजबूत हुए हैं तो इसकी वजह भी चीन से उसके तनावपूर्ण संबंध हैं. डॉन में अमेरिकी रिपोर्ट का हवाला देते हुए बताया गया है कि अमेरिका अब भारत को एशियाई देशों में सबसे ताकतवर बनाना चाहता है ताकि चीन कमजोर पड़ जाए.