न्यूक्लियर लॉन्च कोड, जिससे केवल 30 मिनट में US का राष्ट्रपति परमाणु हमला कर सकता है

अमेरिका में राष्ट्रपति के पास ही परमाणु हमले के लिए कोड होता है- सांकेतिक फोटो (pixabay)
इतिहास में इकलौता परमाणु हमला अमेरिका ने जापान (nuclear attack on Hiroshima and Nagasaki in Japan) पर किया था. तब तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति हैरी ट्रूमैन (Harry Truman) ने न्यूक्लियर कोड लॉन्च किया था.
- News18Hindi
- Last Updated: January 10, 2021, 12:56 PM IST
अमेरिका में कैपिटल हिल हिंसा के बाद राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप (Donald Trump) को पद से हटाने की बात करते हुए स्पीकर नैंसी पेलोसी (Nancy Pelosi) ने ये आशंका तक जता दी कि ट्रंप अपने पद का गलत इस्तेमाल करते हुए परमाणु हमला (nuclear attack) तक करवा सकते हैं. बता दें कि अमेरिका में राष्ट्रपति के पास ही परमाणु हमले के लिए कोड (nuclear launch code) होता है. एक बार लॉन्च जारी होने के बाद सेना के चीफ भी उसे नहीं रोक सकते.
परमाणु हमला किसी भी देश की किसी दूसरे देश के साथ जंग के एक्सट्रीम हालात हैं. तो जाहिर है कि इसका फैसला कोई एक नहीं, बल्कि सेना और संसद मिलकर लेगी. ऐसा सभी देशों के साथ है. इसके अलावा लगभग सभी देशों ने पहले परमाणु हमला न करने की पॉलिसी बना रखी है. ये पॉलिसी हिरोशिमा-नागासाकी पर अमेरिकी हमले के बाद तैयार हुई. भारत ने भी इसपर दस्तखत कर रखे हैं.

वैसे अब तक दुनिया में केवल एक बार ही परमाणु हमला हुआ. जापान के हिरोशिमा-नागासाकी पर हुए इस हमले का असर अब तक महसूस किया जाता है. दूसरी ओर हमला करने वाले देश में तब भी परमाणु हमले का अधिकार राष्ट्रपति के पास था और अब भी ये बना हुआ है. तब दूसरे विश्व युद्ध के दौरान अमेरिकी राष्ट्रपति हैरी ट्रूमैन ने जापान के जुड़वा शहरों पर परमाणु हमले का फैसला लिया था.ये भी पढ़ें: Explained: उत्तर कोरिया क्यों अमेरिका को अपना जानी दुश्मन मानता है?
मानव इतिहास में ये पहला परमाणु हमला था. हालांकि इसके बाद से कई देशों ने खुद को परमाणु शक्ति संपन्न किया और वे तनाव बढ़ने पर दूसरे देशों को हमले की धमकी देते भी रहते हैं लेकिन अब तक ऐसा हुआ नहीं. इसकी वजह ये भी है कि जापान पर हुए हमले का अंजाम सबने देखा था. दूसरी ओर इस हमले के लिए जिम्मेदार रहे अमेरिका में हालात अब भी वही हैं.

ट्रूमैन की तरह कोई भी राष्ट्रपति इस हमले का फैसला ले सकता है. असल में होता ये है कि राष्ट्रपति पद की शपथ लेने के बाद सेना प्रमुखों के साथ उसकी खुफिया मीटिंग होती है. इसी दौरान राष्ट्रपति को न्यूक्लियर कोड सौंपे जाते हैं. किसी भी मिनट राष्ट्रपति ये कोड लॉन्च कर सकता है और उसका फैसला आखिरी फैसला होगा. इसमें कोई चाहकर भी दखल नहीं दे सकता क्योंकि राष्ट्रपति इस फैसले के लिए कानूनी तौर पर अधिकृत है.
ये भी पढ़ें: Explained: क्या होगा अगर डोनाल्ड ट्रंप पर महाभियोग साबित हो जाए?
टाइम पत्रिका में इसकी पूरी प्रक्रिया लिखी है. कोड लॉन्च करने के साथ ही कमांडर इन चीफ की राष्ट्रपति से मुलाकात होती है और तय होता है कि आगे क्या करना है. बता दें कि परमाणु हमले जैसा फैसला लेने के बाद अमेरिका में केवल 30 मिनट के अंदर इसका अमल हो सकता है.

इतने कम समय में पूरी प्रक्रिया होने की वजह भी दूसरा विश्व युद्ध ही है. उस दौरान रूस से उपजे तनाव के बीच अमेरिका को डर सताने लगा. शीत युद्ध के हालात में ही ऐसी प्रोसेस तैयार हुई कि खतरे के हालात में राष्ट्रपति 30 मिनट के अंदर किसी भी देश पर परमाणु हमला करवा सकता है.
अब बात करते हैं स्पीकर पेलोसी की, जिन्हें ये डर है कि ट्रंप अपनी सनक में किसी भी देश पर परमाणु हमले का आदेश दे सकते हैं. खासकर चीन और ईरान से ट्रंप की नाराजगी जाहिर है. ऐसे में पेलोसी ने अमेरिकी सेना के ज्वाइंट चीफ ऑफ स्टाफ के चेयरमैन मार्क मिले से मुलाकात की और इसपर चर्चा करते हुए सलाह ही कि वो कोड की सुरक्षा पक्की करें. हालांकि पेलोसी का ये प्रयास बेकार है. ऐसा इसलिए है कि राष्ट्रपति को खुद कानून ऐसा अधिकार देता है और इसके लिए उसे किसी सेकंड वोट की जरूरत नहीं.
डेमोकेट्स ने साल 2017 में ट्रंप के सत्ता में आने के बाद भी परमाणु कोड बदलने की बात की थी. उन्होंने एक बिल ड्राफ्ट किया, जिसमें संसद से सहमति लेने की बात कही गई. हालांकि बिल पास नहीं हो सका और अधिकार राष्ट्रपति के पास ही रहा.
परमाणु हमला किसी भी देश की किसी दूसरे देश के साथ जंग के एक्सट्रीम हालात हैं. तो जाहिर है कि इसका फैसला कोई एक नहीं, बल्कि सेना और संसद मिलकर लेगी. ऐसा सभी देशों के साथ है. इसके अलावा लगभग सभी देशों ने पहले परमाणु हमला न करने की पॉलिसी बना रखी है. ये पॉलिसी हिरोशिमा-नागासाकी पर अमेरिकी हमले के बाद तैयार हुई. भारत ने भी इसपर दस्तखत कर रखे हैं.

अमेरिकी राष्ट्रपति हैरी ट्रूमैन ने जापान के जुड़वा शहरों पर परमाणु हमले का फैसला लिया था सांकेतिक फोटो (picryl)
मानव इतिहास में ये पहला परमाणु हमला था. हालांकि इसके बाद से कई देशों ने खुद को परमाणु शक्ति संपन्न किया और वे तनाव बढ़ने पर दूसरे देशों को हमले की धमकी देते भी रहते हैं लेकिन अब तक ऐसा हुआ नहीं. इसकी वजह ये भी है कि जापान पर हुए हमले का अंजाम सबने देखा था. दूसरी ओर इस हमले के लिए जिम्मेदार रहे अमेरिका में हालात अब भी वही हैं.

अमेरिका में कैपिटल हिल हिंसा के बाद से डोनाल्ड ट्रंप का खुला विरोध हो रहा है
ट्रूमैन की तरह कोई भी राष्ट्रपति इस हमले का फैसला ले सकता है. असल में होता ये है कि राष्ट्रपति पद की शपथ लेने के बाद सेना प्रमुखों के साथ उसकी खुफिया मीटिंग होती है. इसी दौरान राष्ट्रपति को न्यूक्लियर कोड सौंपे जाते हैं. किसी भी मिनट राष्ट्रपति ये कोड लॉन्च कर सकता है और उसका फैसला आखिरी फैसला होगा. इसमें कोई चाहकर भी दखल नहीं दे सकता क्योंकि राष्ट्रपति इस फैसले के लिए कानूनी तौर पर अधिकृत है.
ये भी पढ़ें: Explained: क्या होगा अगर डोनाल्ड ट्रंप पर महाभियोग साबित हो जाए?
टाइम पत्रिका में इसकी पूरी प्रक्रिया लिखी है. कोड लॉन्च करने के साथ ही कमांडर इन चीफ की राष्ट्रपति से मुलाकात होती है और तय होता है कि आगे क्या करना है. बता दें कि परमाणु हमले जैसा फैसला लेने के बाद अमेरिका में केवल 30 मिनट के अंदर इसका अमल हो सकता है.

खतरे के हालात में राष्ट्रपति 30 मिनट के अंदर किसी भी देश पर परमाणु हमला करवा सकता है- सांकेतिक फोटो (pixabay)
इतने कम समय में पूरी प्रक्रिया होने की वजह भी दूसरा विश्व युद्ध ही है. उस दौरान रूस से उपजे तनाव के बीच अमेरिका को डर सताने लगा. शीत युद्ध के हालात में ही ऐसी प्रोसेस तैयार हुई कि खतरे के हालात में राष्ट्रपति 30 मिनट के अंदर किसी भी देश पर परमाणु हमला करवा सकता है.
There is no legal way to do this. The president has sole, unfettered authority to order the use of nuclear weapons with no "second vote" required. If you think that's crazy, I agree with you. But many people being appointed by Biden to national security jobs disagree with us. https://t.co/m0ct1dO5bH
— Dr. Jeffrey Lewis (@ArmsControlWonk) January 8, 2021
अब बात करते हैं स्पीकर पेलोसी की, जिन्हें ये डर है कि ट्रंप अपनी सनक में किसी भी देश पर परमाणु हमले का आदेश दे सकते हैं. खासकर चीन और ईरान से ट्रंप की नाराजगी जाहिर है. ऐसे में पेलोसी ने अमेरिकी सेना के ज्वाइंट चीफ ऑफ स्टाफ के चेयरमैन मार्क मिले से मुलाकात की और इसपर चर्चा करते हुए सलाह ही कि वो कोड की सुरक्षा पक्की करें. हालांकि पेलोसी का ये प्रयास बेकार है. ऐसा इसलिए है कि राष्ट्रपति को खुद कानून ऐसा अधिकार देता है और इसके लिए उसे किसी सेकंड वोट की जरूरत नहीं.
डेमोकेट्स ने साल 2017 में ट्रंप के सत्ता में आने के बाद भी परमाणु कोड बदलने की बात की थी. उन्होंने एक बिल ड्राफ्ट किया, जिसमें संसद से सहमति लेने की बात कही गई. हालांकि बिल पास नहीं हो सका और अधिकार राष्ट्रपति के पास ही रहा.