पाकिस्तान के पूर्व राष्ट्रपति जनरल परवेज मुशर्रफ की मौत एनाइलॉयडोसिस नाम की बीमारी के कारण हुई.
Amyloidosis Disease: पाकिस्तान के पूर्व राष्ट्रपति जनरल परवेज मुशर्रफ की दुबई में इलाज के दौरान रविवार 5 फरवरी 2023 को मौत हो गई. वह 2016 से दुबई में ही रह रहे थे. मुशर्रफ एमाइलॉयडोसिस नाम की गंभीर बीमारी से लंबे समय से जूझ रहे थे. आखिरी समय में वह कुछ बोलना तो दूर, मुंह भी नहीं हिला पा रहे थे. दरअसल, इस बीमारी में मरीज के सभी अंग एक एक करके काम करना बंद कर देते हैं और उसकी मौत हो जाती है. आज हम आपको बता रहे हैं एमाइलॉयडोसिस बीमारी क्या है? इसके लक्षण और बचाव क्या हैं? इस बीमारी का इलाज क्या है?
अमाइलॉयडोसिस बीमारी की शुरुआत एक खास और असामान्य प्रोटीन अमाइलॉयडोसिस के शरीर के अंगों और ऊतकों में बनने के कारण होती है. चूंकि ये प्रोटीन शरीर के अंदर ही होता है, इसलिए कई अंग धीरे-धीरे काम करना बंद कर देते हैं. ये प्रोटीन दिल, किडनी, लीवर, पाचन तंत्र और नर्वस सिस्टम को बुरी तरह प्रभावित करता है. ये असामान्य प्रोटीन शरीर के अलग-अलग अंगों में कई तरह के प्रोटींस को जमा कर स्वास्थ्य समस्याएं पैदा कर देता है. जब यही एमाइलॉयडोसिस प्रोटीन शरीर के अंगों में फैला जाता है तो रोगी की मौत हो जाती है. ये बीमारी अकेले होने के साथ ही कुछ दूसरी बीमारियों के साथ भी शुरू हो सकती है.
क्या हैं इस बीमारी के लक्षण?
एमाइलॉयडोसिस प्रोटीन शरीर के अंगों में जमा होकर उनका आकार बदल देते हैं. इससे उनके नियमित काम पर असर पड़ता है. फिर अंग धीरे-धीरे काम करना बंद कर देते हैं. मेयो क्लीनिक की एक रिपोर्ट के मुताबिक, एमाइलॉयडोसिस बीमारी की सबसे गंभीर समस्या यही है कि इसका कोई खास लक्षण होता ही नहीं है. कई मामलों में रोगी को इसका कोई लक्षण कभी महसूस ही नहीं होता है. दरअसल, एमाइलॉयडोसिस प्रोटीन शरीर के जिस अंग में जमा होना शुरू होता है, रोगी को उसी से जुड़ी बीमारियों के लक्षण महसूस होते हैं. इससे भ्रम की स्थिति बनी रहती है.
फिर मरीज कैसे करें पहचान?
एमाइलॉयडोसिस बीमारी के खास लक्षण तो नहीं हैं, लेकिन अगर आपको आंखें के आसपास कहीं भी बैंगनी निशान नजर आएं तो तुरंत डॉक्टर से परामर्श लें. इसके अलावा बिना मेहनत किए ही थकान, कमजोरी और वजन का कुछ ही दिनों में असामान्य तरीके से गिरना या जीभ का रंग बदलना व किनारों से खुरदरा होना भी इसके सामान्य लक्षण हैं. पीठ के बल सीधे लेटने पर सांस लेने में दिक्कत होना, हाथ या पैर में सुन्न होने के साथ दर्द होना, घुटनों व पैरों में सूजन होने पर भी डॉक्टर से एमाइलॉयोसिस की जांच कराई जा सकती है. इसके अलावा स्किन का मोटा होना और बार-बार खरोंच के निशान आना भी इसके लक्षण हैं. ये सभी लक्षण दूसरी बीमारियों में भी नजर आते हैं. ऐसे में सिर्फ इन लक्षणों को देखकर ये तय कर लेना गलत होगा कि रोगी को एमाइलॉयडोसिस है. इसके लिए डॉक्टर की सलाह अनिवार्य रूप से ली जानी चाहिए.
किसको है सबसे ज्यादा खतरा?
एमाइलॉयडोसिस बीमारी से सबसे ज्यादा खतरा 60 से 70 साल की उम्र के लोगों को होता है. वहीं, महिलाओं के मुकाबले ये बीमारी पुरुषों को ज्यादा चपेट में लेती है. वहीं, इसके गंभीर होने का खतरा भी पुरुषों में ही ज्यादा होता है. अगर किसी व्यक्ति को कोई पुरानी और लंबी बीमारी चली आ रही है तो उसको एमाइलॉयडोसिस बीमारी होने का जोखिम बढ़ जाता है. वहीं, ये बीमारी अनुवांशिक भी हो सकती है. साधारण भाषा में समझें तो अगर आपके परिवार में कभी किसी को ये बीमारी रही हो तो आपको भी इसके होने का खतरा बना रहा है. अब सवाल उठता है कि इससे अंग काम करना बंद कैसे कर देते हैं. दरअसल, एमाइलॉयडोसिस प्रोटीन जब किडनी में जमा होने लगता है तो इसके फिल्टर्स को प्रभावित कर देते है. इससे किडनी फिल्टर करने का काम बंद कर देती है. करीब-करीब ऐसा ही बाकी अंगों के साथ होता है.
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कैसे करें बचाव और इलाज?
मेयो क्लीनिक की रिपेार्ट के मुताबिक, एमाइलॉयडोसिस बीमारी के खास लक्षण नहीं होने के कारण इससे बचाव करना थोड़ा मुश्किल है. लेकिन, किसी भी निष्कर्ष पर पहुंचने से पहले डॉक्टर से जांच करा लेना बेहतर रहता है. डॉक्टर इस बीमारी की पुख्ता तौर पर पहचान के लिए कई परीक्षणों के साथ ही मरीज का इमेजिंग टेस्ट भी कराते हें. जांच में पुष्टि के बाद रोगी का इलाज शुरू किया जाता है. हालात ज्यादा खराब होने की स्थिति में डॉक्टर्स स्टेम सेल ट्रांसप्लांट के जरिये भी इलाज करते हैं. वहीं, कई डॉक्टर्स इसके लिए कीमोथेरेपी का सहारा लेते हैं.
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