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Beating Retreat 2023: क्या मतलब और महत्व होता है बीटिंग रीट्रीट कार्यक्रम का?

बीटींग रीट्रीट (Beating Retreat) गणतंत्र दिवस समारोह का अंतिम कार्यक्रम होता है. (तस्वीर: Wikimedia Commons)

बीटींग रीट्रीट (Beating Retreat) गणतंत्र दिवस समारोह का अंतिम कार्यक्रम होता है. (तस्वीर: Wikimedia Commons)

Beating Retreat 2023: बीटींग रीट्रीट भारत के गणतंत्र दिवस (Republic Day) के साप्ताहिक समारोह का अंतिम कार्यक्रम होता है ...अधिक पढ़ें

हाइलाइट्स

बीटींग रीट्रीट में भारत के राष्ट्रपति देश की सेनाओं के मुखिया के तौर पर शामिल होते हैं.
विजय चौक पर हर साल 29 जनवरी की शाम को यह आयोजन किया जाता है.
इस साल इस कार्यक्रम में विशेष ड्रोन प्रस्तुति को भी शामिल किया गया है.

हर साल की तरह इस बार भी नई दिल्ली के विजय चौक में 29 जनवरी को बीटिंग रिट्रीट कार्यक्रम (Beating Retreat 20223) का आयोजन हो रहा है. चूंकि यह समारोह भारत के गणतंत्र दिवस (Republic Day of India) के तीन दिन बाद होता है, इसलिए कई लोगों को यह लगता है कि यह कार्यक्रम गणतंत्र दिवस का हिस्सा नहीं हैं लेकिन सच्चाई यह है कि यह गणतंत्र दिवस के साप्ताहिक समारोह (Republic week Celebrations) का ही एक हिस्सा होता है और 29 जनवरी को होने वाला बीटिंग रीट्रीट अंतिम और समापन कार्यक्रम होता है. इस रंगारंग संगीतमय कार्यक्रम का भी अपना एक इतिहास है.

रंगबिरंगी और संगीतमय शाम
वास्तव में इस समारोह की अध्यक्षता भारत की राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू  करेंगीं और यह कार्यक्रम शाम ढलने के पहले शुरू हो जाताहै. जैसे ही दिल्ली में सूर्यास्त होता है, राष्ट्रपति भवन गणतंत्र दिवस की इस संध्या पर विशेष प्रकाश सज्जा से जगमगा उठता है और विजय चौक पर तीनों सेनाओं के अंगों के बैंड मिलकर 29 धुनों को सुनाते हैं.

तीनों सेनाओं की धुन
बीट‍िंग र‍िट्रीट कार्यक्रम में सेना के तीनों अंग शाम‍िल होते हैं. तीनों सेनाओं के बैंड एक साथ म‍िलकर मार्च करते हुए धुन बजाते हैं और ड्रूमर्स कॉल का प्रदर्शन होता है. इस दौरान घंटियों की एक खास धुन अबाइड विद मी (abide with me) भी बजाई जाती थी, जो महात्मा गांधी की प्रिय धुन थी. लेकिन अब सरकार ने अपने एक फैसले में इस समारोह से गांधी जी की प्रिय धुन को हटा दिया है.

सजावट और ऊंटों का मार्च
इस कार्यक्रम के लिए आम लोग भी देखने आते हैं और इसके लिए टिकटों की बिक्री भी होती है. राष्ट्रपति भवन की रंगबिरंगी तिरंगे वाली विशेष रोशनी से सजावट भी दर्शकों का विशेष आकर्षण होती है. इस कार्यक्रम के दौरान सीमा सुरक्षा बल के ऊंटों का एक दस्ता भी विशेष सजावट के साथ मार्च करता है.

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बीटींग रीट्रीट (Beating Retreat) सेना के तीनों अंगों के बैंड शामिल होते हैं. (तस्वीर: Wikimedia Commons)

बीटिंग रीट्रीट का इतिहास
बीटींग रीट्रीट की परंपरा कोई नई नहीं हैं बल्कि इसका 300 साल पुराना इतिहास है. सबसे पहले इसकी शुरुआत 17वीं सदी  इंग्लैंड में हुई थी जब जेन्स द्वितीय ने युद्ध की समाप्ति के बद अपने सैनिकों को शाम को परेड करने और बैंड पर धुनें बजाने का आदेश दिया था. तभी से इसे एक सांकेतिक आयोजन की तरह मनाया जाता है.  यह उस पारंपरिक समय की याद है जब सैनिक दिनभर युद्ध किया करते थे और सूरज ढलने के बाद लौट आया करते थे.

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भारत में बीटिंग रीट्रीट की शुरुआत
भारत में रीट्रीट की शुरुआत 1950 के दशक में शुरू हुई थी. तभी से इसे बीटिंग रीट्रीट कहा जाता है. तह भारतीय सेना के मेजर रॉबर्ट ने इस कार्यक्रम को सेनाओं के बैंड के साथ इसका प्रदर्शन किया था जिसें राष्ट्रपति मुख्य अतिथि  और उनके साथ ब्रिटेन की महारानी एलिजाबेथ द्वितीय और उनके पति प्रिंस फिलिप देश की आजादी के बाद पहली भारत यात्रा के दौरान अथिति के तौर पर शामिल हुए थे.तभी से यह परंपरा गणतंत्र दिवस समारोह का हिस्सा बन गई.

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बीटींग रीट्रीट के समय राष्ट्रपति भवन (President House) की विशेष सजावट की जाती है. (तस्वीर: Wikimedia Commons)

पहली बार इतने बड़े स्तर पर होगा ड्रोन शो
इस साल के बीटींग टीट्रीट में देश के लोग पहली बार अबतक का सबसे बड़ा ड्रोन शो देखेंगे जिसमें 3500 स्वदेश में निर्मित ड्रोन एक साथ इस शो में प्रदर्शन करेंगे जिससे रायसीना हिल्स के ऊपर का आकाश रोशनी से जगमगा उठेगा और दर्शकों को राष्ट्रीय नेताओं और घटनाओं की रंगीली रोशनी से भरी आकृतियां देखने को मिलेंगी.

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कार्यक्रम के अंत में रिट्रीट का बिगुल वादन होता है, ये संकेत है कि समापन के लिए राष्ट्रपति से इजाजत लेने का समय आ चुका है. तब बैंड मास्टर राष्ट्रपति के पास जाकर उनसे गणतंत्र दिवस समारोह खत्म करने की अनुमति लेते हैं. वापस आते समय सारे जहां से अच्छा गीत की धुन बजाई जाती है. इसके बाद तीन दिवसीय समारोह राष्‍ट्रगान के साथ खत्म हो जाता है.

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