भवानीपुर और शोभनदेब, कैसे इन दो नामों से जुड़ी ममता की साख?

न्यूज़18 क्रिएटिव
West Bengal Elections 2021: ममता बनर्जी को 50,000 वोटों से हराने, नहीं तो राजनीति छोड़ने के सुवेंदु अधिकारी (Suvendu Adhikari) के दावे के बाद नंदीग्राम (Nandigram) तो अहम है ही, वो सीट (Assembly Seat) भी चर्चा में है, जिसे ममता ने छोड़ दिया है.
- News18Hindi
- Last Updated: March 25, 2021, 8:39 PM IST
'नंदीग्राम मेरी बड़ी बहन है और भबानीपुर छोटी.. छोटी बहन के साथ कोई समझौता नहीं होगा और मैं इसे मज़बूत उम्मीदवार दूंगी.' पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव (Assembly Elections) में इस बार नंदीग्राम से ताल ठोकने के सीएम ममता बनर्जी (CM Mamata Banerjee) ने ऐलान करते हुए साफ कहा कि भबानीपुर से उनका रिश्ता नहीं छूटेगा. ममता बनर्जी के बड़े ऐलान के बाद यह भबानीपुर सीट (Bhabanipore Constituency) काफी चर्चा में आ गई है, जहां से वो 2011 से लगातार विधायक रही हैं. अब इस सीट का भविष्य और चेहरा क्या होगा?
बंगाल चुनाव 2021 में ममता हालांकि किसी भी कीमत पर भबानीपुर सीट नहीं गंवाना चाहेंगी लेकिन सियासी गणित के जानकार बता रहे हैं कि इस बार इस सीट पर उनका दावा मज़बूत नज़र नहीं आ रहा था इसलिए पूर्व मिदनापुर के नंदीग्राम से लड़ने का फैसला ममता ने किया. इन दो सीटों के बीच सियासत से पहले आपको बताते हैं कि शोभनदेब चट्टोपाध्याय कौन हैं और कैसे ममता बनाम बीजेपी की लड़ाई में खास चेहरा बन गए हैं.
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भबानीपुर की हिस्ट्री, केमिस्ट्री और गणितबंगाल में सभी 294 विधानसभा सीटों के लिए तृणमूल कांग्रेस के उम्मीदवारों की लिस्ट जारी करते हुए पार्टी ने कहा कि इस बार भबानीपुर सीट से शोभनदेब के नाम को चुना गया. वहीं, न्यूज़18 के पास यह सूचना आई कि ममता ने व्यक्तिगत तौर पर शोभनदेब के नाम को चुना क्योंकि उन्हें विश्वास है कि वो ही इस सीट को पार्टी के लिए बचा पाएंगे.

शोभनदेब के बारे में आपको बताने से पहले भबानीपुर की केमिस्ट्री और गणित बताते हैं. दक्षिण कोलकाता में स्थित यह सीट पहले कांग्रेस का गढ़ रह चुकी है. कांग्रेस की ही उम्मीदवार के तौर पर ममता यहां वर्चस्व रखने में कामयाब रहीं. फिर कांग्रेस से अलग होने पर यह सीट टीएमसी के खाते में गई क्योंकि ममता का कालीघाट स्थित घर इसी सीट के दायरे में आता है.
2011 में, ममता ने यहां से उपचुनाव जीता था और यह 54,213 वोटों के अंतर से भारी जीत थी. हालांकि 2014 में यहां लोकसभा चुनाव के दौरान भाजपा का पलड़ा कुछ ही वोटों से हल्का सा भारी रहा, तो 2015 में यहां नगरपालिका चुनाव के दौरान भी दो वार्ड टीएमसी के हाथ से चले गए थे.
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2016 के विधानसभा चुनाव में ममता का जादू और वर्चस्व इस सीट पर बरकरार रहा. लेकिन इस बार ममता ने यह सीट छोड़ दी है, तो इस सीट के आंकड़ों पर चर्चा हो रही है. यहां बंगाली वोटर ही ज़्यादा हैं, लेकिन सिखों और गुजरातियों की संख्या भी कम नहीं है. जानकार मान रहे हैं कि इस सीट के बिज़नेस क्लास के वोटर इस बार ममता के खिलाफ वोटिंग करने के मूड में हैं. कुल मिलाकर अब यह सीट टीएमसी बनाम भाजपा की मुख्य लड़ाई होगी.
कौन हैं शोभनदेब चट्टोपाध्याय?
प्रतिष्ठा और साख की लड़ाई बन चुकी भबानीपुर सीट से ममता ने टीएमसी के मज़बूत नेता शोभनदेब के नाम को चुना तो उन्होंने न्यूज़18 को बताया कि 'दीदी ने मेरा नाम चुना है, यह मेरे लिए गर्व की बात है. उनका और पार्टी का भरोसा रखना मेरे लिए बड़ी चुनौती है और मैं यहां से सम्मान की लड़ाई पूरे जी जान से लड़ूंगा.'

ममता की कैबिनेट में ऊर्जा मंत्रालय संभालने वाले शोभनदेब 1998 में पहली बार टीएमसी के विधायक बने थे. यही नहीं वही टीएमसी की लेबर विंग यानी ट्रेड यूनियन कांग्रेस के प्रमुख थे. 2011 से 2016 तक पश्चिम बंगाल विधानसभा में चीफ व्हिप भी रह चुके शोभनदेब को 2016 में राज्य में मंत्री का पद मिला था.
कम ही लोग जानते हैं कि राजनीति के अलावा बॉक्सिंग शोभनदेब का जुनून रहा. कॉलेज के दिनों में वो बॉक्सर थे और बॉक्सिंग चैंपियनशिप के हर मुकाबले को देखने के लिए वो अब भी समय निकालते ही हैं. दूसरी तरफ, कोलकाता के ऑटो रिक्शा ऑपरेटर यूनियन के प्रेसिडेंट भी शोभनदेब हैं.
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शोभनदेब का राजनीतिक सफर कांग्रेस के साथ शुरू हुआ था. 1991 और 1996 में उन्होंने कांग्रेस के टिकट पर बरुईपुर सीट जीती थी, लेकिन बाद में ममता के साथ टीएमसी में चले गए शोभनदेब ने 2001 और 2006 में दक्षिण कोलकाता की रासबिहारी सीट जीती. 2016 में भी वो इसी सीट से चुने गए.
कैसे अहम हो गया मुकाबला?
इसे छोड़कर ममता के नंदीग्राम से लड़ने को राजनीतिक विश्लेषकों का एक वर्ग 'मास्टरस्ट्रोक' कह रहा है तो दूसरा वर्ग इसे भबानीपुर हाथ से निकलता दिखने के चलते 'सोची समझी तरकीब' बता रहा है. ताज़ा स्थिति यह है कि दोनों ही सीटें इस चुनाव में सबसे खास हो गई हैं क्योंकि नंदीग्राम पर भी ममता का मुकाबला सीधे सुवेंदु अधिकारी के साथ होगा, जो ममता के विश्वसनीय थे, लेकिन कुछ ही समय पहले टीएमसी छोड़कर भाजपा में शामिल हुए.

सूत्रों के हवाले से मनीकंट्रोल की रिपोर्ट कहती है कि ममता की इस रणनीति के पीछे प्रशांत किशोर हैं, जिन्होंने ममता को विपक्ष से सीधे टकराने और आक्रामक अंदाज़ के साथ मुकाबला करने की सलाह दी. आखिर में आपको बता दें कि 2016 के विधानसभा चुनाव के बाद टीएमसी के पास 211 सीटें थीं, जबकि भाजपा के पास सिर्फ 3 और 76 सीटें कांग्रेस व लेफ्ट को हासिल हुई थीं.
बंगाल चुनाव 2021 में ममता हालांकि किसी भी कीमत पर भबानीपुर सीट नहीं गंवाना चाहेंगी लेकिन सियासी गणित के जानकार बता रहे हैं कि इस बार इस सीट पर उनका दावा मज़बूत नज़र नहीं आ रहा था इसलिए पूर्व मिदनापुर के नंदीग्राम से लड़ने का फैसला ममता ने किया. इन दो सीटों के बीच सियासत से पहले आपको बताते हैं कि शोभनदेब चट्टोपाध्याय कौन हैं और कैसे ममता बनाम बीजेपी की लड़ाई में खास चेहरा बन गए हैं.
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पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी.
शोभनदेब के बारे में आपको बताने से पहले भबानीपुर की केमिस्ट्री और गणित बताते हैं. दक्षिण कोलकाता में स्थित यह सीट पहले कांग्रेस का गढ़ रह चुकी है. कांग्रेस की ही उम्मीदवार के तौर पर ममता यहां वर्चस्व रखने में कामयाब रहीं. फिर कांग्रेस से अलग होने पर यह सीट टीएमसी के खाते में गई क्योंकि ममता का कालीघाट स्थित घर इसी सीट के दायरे में आता है.
2011 में, ममता ने यहां से उपचुनाव जीता था और यह 54,213 वोटों के अंतर से भारी जीत थी. हालांकि 2014 में यहां लोकसभा चुनाव के दौरान भाजपा का पलड़ा कुछ ही वोटों से हल्का सा भारी रहा, तो 2015 में यहां नगरपालिका चुनाव के दौरान भी दो वार्ड टीएमसी के हाथ से चले गए थे.
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2016 के विधानसभा चुनाव में ममता का जादू और वर्चस्व इस सीट पर बरकरार रहा. लेकिन इस बार ममता ने यह सीट छोड़ दी है, तो इस सीट के आंकड़ों पर चर्चा हो रही है. यहां बंगाली वोटर ही ज़्यादा हैं, लेकिन सिखों और गुजरातियों की संख्या भी कम नहीं है. जानकार मान रहे हैं कि इस सीट के बिज़नेस क्लास के वोटर इस बार ममता के खिलाफ वोटिंग करने के मूड में हैं. कुल मिलाकर अब यह सीट टीएमसी बनाम भाजपा की मुख्य लड़ाई होगी.
कौन हैं शोभनदेब चट्टोपाध्याय?
प्रतिष्ठा और साख की लड़ाई बन चुकी भबानीपुर सीट से ममता ने टीएमसी के मज़बूत नेता शोभनदेब के नाम को चुना तो उन्होंने न्यूज़18 को बताया कि 'दीदी ने मेरा नाम चुना है, यह मेरे लिए गर्व की बात है. उनका और पार्टी का भरोसा रखना मेरे लिए बड़ी चुनौती है और मैं यहां से सम्मान की लड़ाई पूरे जी जान से लड़ूंगा.'

टीएमसी ने भबानीपुर सीट से शोभनदेब चट्टोपाध्याय को उम्मीदवार बनाया.
ममता की कैबिनेट में ऊर्जा मंत्रालय संभालने वाले शोभनदेब 1998 में पहली बार टीएमसी के विधायक बने थे. यही नहीं वही टीएमसी की लेबर विंग यानी ट्रेड यूनियन कांग्रेस के प्रमुख थे. 2011 से 2016 तक पश्चिम बंगाल विधानसभा में चीफ व्हिप भी रह चुके शोभनदेब को 2016 में राज्य में मंत्री का पद मिला था.
कम ही लोग जानते हैं कि राजनीति के अलावा बॉक्सिंग शोभनदेब का जुनून रहा. कॉलेज के दिनों में वो बॉक्सर थे और बॉक्सिंग चैंपियनशिप के हर मुकाबले को देखने के लिए वो अब भी समय निकालते ही हैं. दूसरी तरफ, कोलकाता के ऑटो रिक्शा ऑपरेटर यूनियन के प्रेसिडेंट भी शोभनदेब हैं.
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शोभनदेब का राजनीतिक सफर कांग्रेस के साथ शुरू हुआ था. 1991 और 1996 में उन्होंने कांग्रेस के टिकट पर बरुईपुर सीट जीती थी, लेकिन बाद में ममता के साथ टीएमसी में चले गए शोभनदेब ने 2001 और 2006 में दक्षिण कोलकाता की रासबिहारी सीट जीती. 2016 में भी वो इसी सीट से चुने गए.
कैसे अहम हो गया मुकाबला?
इसे छोड़कर ममता के नंदीग्राम से लड़ने को राजनीतिक विश्लेषकों का एक वर्ग 'मास्टरस्ट्रोक' कह रहा है तो दूसरा वर्ग इसे भबानीपुर हाथ से निकलता दिखने के चलते 'सोची समझी तरकीब' बता रहा है. ताज़ा स्थिति यह है कि दोनों ही सीटें इस चुनाव में सबसे खास हो गई हैं क्योंकि नंदीग्राम पर भी ममता का मुकाबला सीधे सुवेंदु अधिकारी के साथ होगा, जो ममता के विश्वसनीय थे, लेकिन कुछ ही समय पहले टीएमसी छोड़कर भाजपा में शामिल हुए.

टीएमसी छोड़कर भाजपा में शामिल हुए सुवेंदु अधिकारी.
सूत्रों के हवाले से मनीकंट्रोल की रिपोर्ट कहती है कि ममता की इस रणनीति के पीछे प्रशांत किशोर हैं, जिन्होंने ममता को विपक्ष से सीधे टकराने और आक्रामक अंदाज़ के साथ मुकाबला करने की सलाह दी. आखिर में आपको बता दें कि 2016 के विधानसभा चुनाव के बाद टीएमसी के पास 211 सीटें थीं, जबकि भाजपा के पास सिर्फ 3 और 76 सीटें कांग्रेस व लेफ्ट को हासिल हुई थीं.