जानिए कौन हैं भूपिंदर सिंह मान जो कृषि कानूनों पर बनी समिति से खुद हुए हैं अलग

भूपेंद्र सिंह मान (Bhupender singh Mann) सालों से भारतीय किसानों के लिए आंदोलन करते रहे हैं. (फोटो: ट्विटर)
भूपिंदर सिंह मान (Bhupender singh Mann) को हाल ही में सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने कृषि कानूनों (Farm Bill) पर बनी समिति (Committee) का सदस्य बनाया था उन्होंने अब खुद को इस समिति से अलग कर लिया है.
- News18Hindi
- Last Updated: January 14, 2021, 6:46 PM IST
कृषि कानूनों (Farm Laws) के खिलाफ किसानों का आंदोलन (Farmer protest) सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) के फैसले के बाद भी जारी है. सुप्रीम कोर्ट ने इन कानूनों को लागू करने पर रोक लगाकर एक कमेटी बनाई है जो सरकार को इन कानूनों में जरूरी बदलाव सुझाएगी. इस कमेटी के एक सदस्य भूपेंद्र सिंह मान (Bhupender singh Mann) चर्चा में हैं. किसान आंदोलन के नेताओं का कहना है कि मान सरकारी कानून के समर्थक हैं जबकि उन्होंने खुद को इस कमेटी से अलग कर लिया है.
कौन हैं भूपेंद्र सिंह मान
भूपेंद्र सिंह मान भारतीय किसान यूनियन के अध्यक्ष हैं. 81 साल के मान पंजाब के बटाला जिले के रहने वाले हैं. वो 1990 से 1996 तक राज्यसभा के निर्दलीय सदस्य रह चुके हैं. वो कांग्रेस का साल 2012, 2017 विधान सभा और 2019 में लोकसभा चुनावों में समर्थन कर चुके हैं. इस बार वो केंद्र के कृषि कानूनों का समर्थन कर रहे थे.
किस पक्ष के साथ हैं मानकमेटी में भूपेंद्र सिंह मान के नाम पर शुरू से ही आपत्तियां हो रही थीं. वहीं किसान नेताओं की दलील है कि भूपेंद्र सिंह मान पहले ही तीनों नए कृषि कानूनों का समर्थन कर चुके हैं. भूपेंद्र सिंह मान ने पत्र लिखकर खुद को कमेटी से अलग होने की बात की. पत्र में उन्होंने पंजाब के किसानों के साथ रहने की बात की, लेकिन कृषि कानून को लेकर उन्होंने कुछ भी नहीं कहा. लेकिन उन्होंने इस बात पर जोर जरूर दिया कि वो तटस्थ रहना चाहते हैं.
किसानों के साथ फिर भी
भूपेंद्र सिंह मान के पत्र में सबसे बड़ी बात यही है कि उनका कहना है कि वे किसानों के साथ खड़े हैं. जबकि किसानों ने उनके इस कदम पर यह भी जाहिर नहीं किया कि भूपेंद्र सिंह मान किसानों के साथ हैं. बल्कि इसके विपरीत भारतीय किसान यूनियन ने पंजाब के खन्ना में प्रेस कॉन्फ्रेंस करके भूपेंद्र सिंह मान को अपने संगठन से अलग करने का ऐलान किया है.

किसानों के साथ लंबे समय से
भूपेंद्र सिंह मान इस समय ऑल इंडिया किसान सहयोग समिति के प्रमुख भी हैं. 1966 में भूपेंद्र सिंह मान ने पंब खेती बाड़ी यूनियन का गठन किया था जो 1980 में भारतीय किसान यूनियन में बदल गई. भारतीय किसान यूनियन पहले एक ही संगठन था जिसकी बाद में कई शाखाएं बन गईं. आज बहुत सारी भारतीय किसान यूनियन बन चुकी हैं.
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किसान संगठनों के साथ नाता
भूपेंद्र सिंह मान के संयुक्त परिवार की बटाला के मारियांवाला और पोंदर गांवों में 20 एकड़ जमीन है. उनके दूसरे किसान संगठनों से मतभेद नए नहीं हैं. बल्कि हकीकत यह है कि ज्यादातर भारतीय किसान संगठन की बुनियाद ही भूपेंद्र सिंह मान से मतभेदों के आधार पर रही है. चाहे विश्व व्यापार संगठन हो या किसी नेता की महत्वाकांक्षा किसान आंदोलनों का इतिहास भूपेंद्र सिंह मान से गहराई से जुड़ा है. आज हकीकत यह है कि किसान आंदोलन में बहुत सारे किसान संगठन पूरे देश के प्रतिनिधि होने का दावा कर रहे हैं, लेकिन भूपेंद्र सिंह मान और उनके संगठन उनके विरोध का हिस्सा नहीं हैं.

किसी पार्टी से नहीं जुड़े
उनकी यूनियन ने कृषि कानूनों का विरोध नहीं किया था. न ही उनकी यूनियन की तरफ से कोई दिल्ली आया था. हालांकि उनकी यूनियन के बहुत से सदस्य दिल्ली जरूर पहुंचे थे, लेकिन उन्होंने यूनियन का प्रतिनिधित्व नहीं किया. बहुत सारे किसान आंदोलनों की अगुआई कर चुके भूपेंद्र सिंह मान की यूनियन ने कभी औपचारिक तौर पर किसी पार्टी से संबंध नहीं बनाए हां मुद्दों के मुताबिक वे पार्टियों का समर्थन या विरोध करते जरूर दिखे.
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किसान आंदोलन को 50 दिन का समय हो रहा है. सुप्रीम कोर्ट का फैसला भी उन्हें अपना रवैया बदलने में नाकाम रहा है. सरकार को बातचीत से उम्मीद है. जबकि आंदोलनकारी किसान बार बार यह कह रहे हैं कि उन्हें बिल वापसी से नीचे कुछ मंजूर नहीं है. फिलहाल आंदोलन जारी ही रहने की संभावना है.
कौन हैं भूपेंद्र सिंह मान
भूपेंद्र सिंह मान भारतीय किसान यूनियन के अध्यक्ष हैं. 81 साल के मान पंजाब के बटाला जिले के रहने वाले हैं. वो 1990 से 1996 तक राज्यसभा के निर्दलीय सदस्य रह चुके हैं. वो कांग्रेस का साल 2012, 2017 विधान सभा और 2019 में लोकसभा चुनावों में समर्थन कर चुके हैं. इस बार वो केंद्र के कृषि कानूनों का समर्थन कर रहे थे.
किस पक्ष के साथ हैं मानकमेटी में भूपेंद्र सिंह मान के नाम पर शुरू से ही आपत्तियां हो रही थीं. वहीं किसान नेताओं की दलील है कि भूपेंद्र सिंह मान पहले ही तीनों नए कृषि कानूनों का समर्थन कर चुके हैं. भूपेंद्र सिंह मान ने पत्र लिखकर खुद को कमेटी से अलग होने की बात की. पत्र में उन्होंने पंजाब के किसानों के साथ रहने की बात की, लेकिन कृषि कानून को लेकर उन्होंने कुछ भी नहीं कहा. लेकिन उन्होंने इस बात पर जोर जरूर दिया कि वो तटस्थ रहना चाहते हैं.
किसानों के साथ फिर भी
भूपेंद्र सिंह मान के पत्र में सबसे बड़ी बात यही है कि उनका कहना है कि वे किसानों के साथ खड़े हैं. जबकि किसानों ने उनके इस कदम पर यह भी जाहिर नहीं किया कि भूपेंद्र सिंह मान किसानों के साथ हैं. बल्कि इसके विपरीत भारतीय किसान यूनियन ने पंजाब के खन्ना में प्रेस कॉन्फ्रेंस करके भूपेंद्र सिंह मान को अपने संगठन से अलग करने का ऐलान किया है.

किसान आंदोलन (Kisaan Andolan) के जरिए किसान कृषि बिल (Farm Laws) का करीब 50 दिन से विरोध कर रहे हैं. photo- AP
किसानों के साथ लंबे समय से
भूपेंद्र सिंह मान इस समय ऑल इंडिया किसान सहयोग समिति के प्रमुख भी हैं. 1966 में भूपेंद्र सिंह मान ने पंब खेती बाड़ी यूनियन का गठन किया था जो 1980 में भारतीय किसान यूनियन में बदल गई. भारतीय किसान यूनियन पहले एक ही संगठन था जिसकी बाद में कई शाखाएं बन गईं. आज बहुत सारी भारतीय किसान यूनियन बन चुकी हैं.
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किसान संगठनों के साथ नाता
भूपेंद्र सिंह मान के संयुक्त परिवार की बटाला के मारियांवाला और पोंदर गांवों में 20 एकड़ जमीन है. उनके दूसरे किसान संगठनों से मतभेद नए नहीं हैं. बल्कि हकीकत यह है कि ज्यादातर भारतीय किसान संगठन की बुनियाद ही भूपेंद्र सिंह मान से मतभेदों के आधार पर रही है. चाहे विश्व व्यापार संगठन हो या किसी नेता की महत्वाकांक्षा किसान आंदोलनों का इतिहास भूपेंद्र सिंह मान से गहराई से जुड़ा है. आज हकीकत यह है कि किसान आंदोलन में बहुत सारे किसान संगठन पूरे देश के प्रतिनिधि होने का दावा कर रहे हैं, लेकिन भूपेंद्र सिंह मान और उनके संगठन उनके विरोध का हिस्सा नहीं हैं.

किसानों (Farmers) और सरकार (Government) के बीच फिलहाल कोई सहमति होती नहीं दिख रही है.
किसी पार्टी से नहीं जुड़े
उनकी यूनियन ने कृषि कानूनों का विरोध नहीं किया था. न ही उनकी यूनियन की तरफ से कोई दिल्ली आया था. हालांकि उनकी यूनियन के बहुत से सदस्य दिल्ली जरूर पहुंचे थे, लेकिन उन्होंने यूनियन का प्रतिनिधित्व नहीं किया. बहुत सारे किसान आंदोलनों की अगुआई कर चुके भूपेंद्र सिंह मान की यूनियन ने कभी औपचारिक तौर पर किसी पार्टी से संबंध नहीं बनाए हां मुद्दों के मुताबिक वे पार्टियों का समर्थन या विरोध करते जरूर दिखे.
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किसान आंदोलन को 50 दिन का समय हो रहा है. सुप्रीम कोर्ट का फैसला भी उन्हें अपना रवैया बदलने में नाकाम रहा है. सरकार को बातचीत से उम्मीद है. जबकि आंदोलनकारी किसान बार बार यह कह रहे हैं कि उन्हें बिल वापसी से नीचे कुछ मंजूर नहीं है. फिलहाल आंदोलन जारी ही रहने की संभावना है.