जलवायु परिवर्तन (Climate Change) का असर जीवों पर ही नहीं जैवमंडल में उनकी अंतरक्रियाओं पर भी पड़ रहा है. इसमें ऐसी कई संवेदनशील प्रक्रियाएं भी शामिल हैं जो जीवों के अस्तित्व तक को संकट में डाल रही हैं. बहुत से जानवर (Animals) कई पेड़ पौधों की प्रजनन प्रक्रियाओं में भी योगदान देते हैं. अपने तरह के पहले अध्ययन में शोधकर्ताओं ने इसी विषय पर अध्ययन करते हुए यह पता लगाने के प्रयास किया है कि पक्षियों और स्तनपायी जीवों की जैवविविधता (Biodiversity) हानि के कारण से पौधों की मानव जनित वार्मिंग से जूझने की क्षमता पर क्या असर पड़ा.
60 प्रतिशत तक कमी
इस अध्ययन में स्पष्ट रूप से पाया गया है कि जानवरों की पौधों को फैलाने की क्षमता जलवायु परिवर्नत के कारण 60 प्रतिशत तक घट गई है. आधी से ज्यादा पेड़ पौधों की प्रजातियों के बीज को फैलाने प्रक्रिया जानवरों पर निर्भर होती हैं. पिछले सप्ताह साइंस में प्रकाशित इस अध्ययन में अमेरिकी और डेनमार्क के शोधकर्ताओं ने दर्शाया है कि जानवरों की पौधों को फैलाने की क्षमता में बदलाव आया है.
मशीन लर्निंग का भी उपयोग
इस क्षमता में कम होने की वजह स्तनपायी जानवरों और पक्षियों का कम होना है जो ऐसे पौधों को पर्यावरण में बदलाव के अनुकूल ढालने में सहायता करते हैं. राइस यूनिवर्सिटी, यूनिवर्सिटी ऑफ मैरीलैंड, इओवा स्टेट यूनिवर्सिटी और आरहूस यूनवर्सिटी के शोधकर्ताओं ने इस अध्ययन में मशीन लर्निंग का उपयोग कर हजारों मैदानी अध्ययन से मिले आंकड़ों का उपयोग किया.
एक तुलनात्मक अध्ययन
इन आकड़ों के जरिए शोधकर्ताओं ने दुनिया भर के पक्षियों और स्तनपायी जानवरों की बीज फैलाने की प्रक्रिया में भूमिका और योगदान का नक्शा बनाया. इस गिरावट की गंभीरता का अध्ययन करने के लि शोधक्रतों ने आज के बीज बिखराव के नक्शे से उस नक्शे की तुलना की जो मानव जनित विनाश और सीमितताओं के बिना बीज बिखराव होता.
स्थान परिवर्तन की जरूरत
इस अध्ययन के प्रथम लेखक और राइस यूनिवर्सिटी के इकोलॉजिस्ट ईवान फ्रिकी का कहना है कि कुछ पौधे सैंकड़ों साल जीते हैं और उनके दूसरे इलाकों मे फैलने की संभावना बहुत ही कम समय तक होती है जब उनके बीच विस्तृत भूभाग में फैल पाते हैं. जलवायु परिवर्तन के कारण बहुत से पौधों की प्रजातियों का स्थान बदलना बहुत जरूरी होता है.
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बिखर नहीं पाते पौधे
जो पौधे बीजों के वितरण या बिखराव पर निर्भर होते हैं. वे विलुप्त होने की स्थिति का सामना करने लगते हैं जब उनके आसपास बहुत ही कम ऐसे जानवरो हों जो उनके बीजों को फैलाते हैं. इससे वे बदलते हालातों के मुताबिक खुद को ढाल पाते हैं और नए अनुकूल माहौल में पनप पाते हैं. यदि उनके फल खाने वाला कोई जानवर नहीं होगा, तो उनके बीज दूसरी जगह पर नहीं पहुंच पाएं.
बिखराव का नुकसान
फ्रिकी का बहुत सारे पौधे केवल पक्षियों और जानवरों पर आर्थिक और पारिस्थितिकी के लिहाज से भी निर्भर होते हैं. यह पहले तरह का अध्ययन है जिसमें बीज वितरण की समस्या का वैश्विक और अधिक प्रभावी इलाकों की मात्रा निर्धारित करने का प्रयास किया गया है. शोधकर्ताओं ने बीज बिखराव का मशीन लर्निंग मॉडल बनाया जिसमें फील्ड अध्ययनों का आंकड़ों को डाला और जानवरों के कम होने से बिखराव के नुकसान का आंकलन किया.
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यह अध्ययन इस बात को दर्शाता है कि बीजों के बिखराव का नुकासन उत्तरी और दक्षिणी अमेरिका, यूरोप, ऑस्ट्रेलिया के शीतोष्ण इलाकों में ज्यादा गंभीर है. वहीं यदि कोई विलुप्तप्राय प्रजाति विलुप्त हो जाती है, तो दक्षिण अमेरिका, अफ्रीका, दक्षिणपूर्व एशिया के उष्णकटिबंधीय क्षेत्र ज्यादा प्रभावित होते हैं. इसके अलावा लंबी दूरी की यात्रा करने वाले पक्षी और जानवरों का इनमें ज्यादा प्रमुख और प्रभावी योगदान है.
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Tags: Climate Change, Environment, Research, Science