Birthday Yash Pal : आखिरी समय तक खुद के पास मोबाइल नहीं रखते थे प्रोफेसर यशपाल

प्रोफेसर यशपाल
प्रोफेसर यशपाल (Yash Pal) का आज जन्म दिन है. वो देश के शीर्ष वैज्ञानिकों (Leading Indian Scientist) थे. इंदिरा गांधी (Indira Gandhi) के साइंस सलाहकार बने. बाद में देश के शिक्षा के क्षेत्र में भी खास भूमिका अदा की. यशपाल जिंदादिल इंसान थे.
- Last Updated: November 26, 2020, 1:01 PM IST
आज यानि 26 नवंबर को प्रोफेसर यशपाल का जन्मदिन है. वो 1926 को पाकिस्तान का हिस्सा बन गए पंजाब सूबे के झांग में पैदा हुए थे. यशपाल सादगीपसंद थे. उनके घर का कोना कोना किताबों से अटा रहता था. मिलने जाइए तो लगता ही नहीं था कि आप इतनी बड़ी शख्सियत से मिल रहे हैं. निधन से कुछ समय पहले उन्हें कैंसर डिटेक्ट हुआ लेकिन इसका असर शायद ही उनके रुटीन पर पड़ा हो. लगातार लिखते-पढ़ते रहते थे.
प्रोफेसर यशपाल के पास ढेरों किस्से थे. जिन्हें वो बातचीत में सुनाते भी थे. वो ऐसे शख्स थे, जो विज्ञान से लेकर शिक्षा तक के क्षेत्र में शीर्ष पर ही नहीं रहे बल्कि पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के साइंस सलाहकार भी बने.
घर में किताबों का अंबार
उनकी जिंदगी के आखिरी डेढ़-दो दशक नोएडा में बीते. उनका तीन बेड रूम का फ्लैट आमतौर पर सादगी लिए था. ड्राइंग रूम का सोफा, सेंटर टेबल भी किताबों-कागजों से अटी रहती थी. आलमारियों में हर तरफ कितनी ही तरह की किताबें.
समय की बर्बादी उन्हें पसंद नहीं थी
जब साल 2012 में उन्होंने जवाहर लाल नेहरू विश्व विद्यालय के चांसलर पद का कार्यकाल खत्म किया तो भी सरकार की कई समितियों के साथ सक्रिय थे. किताब लिख रहे थे. रिसर्च करा रहे थे. व्याख्यान देने में बिजी रहते थे. उनके दिमाग में हमेशा कुछ न कुछ चल रहा होता था. आमतौर पर वो समय का पूरा उपयोग करने वाले शख्स थे.
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मोबाइल नापंसद था
प्रोफेसर यशपाल का घर हमेशा सबके लिए खुला रहता था. लैंडलाइन नंबर पर फोन करने पर वह खुद खुद उठाते थे. मोबाइल का इस्तेमाल पसंद नहीं था. वह आमतौर पर घर के दूसरे सदस्य के पास होता था. अगर घर से बाहर नहीं हैं तो तुरंत मिलने का समय दे देते थे. उनके पास हर उम्र के लोग आते थे. सबका मुस्कुराहट के साथ स्वागत. चूंकि बातें करना पसंद था, लिहाजा किसी को शायद कभी किसी को संवाद की दिक्कत हुई हो.
पड़ोसियों के लिए जिंदादिल इंसान
पड़ोसियों के लिए वह जिंदादिल इंसान थे. हमेशा हंसी ठट्ठा लगाने वाले. आखिरी कुछ समय में उनका घूमना बंद हो गया था. अन्यथा नोएडा के अपने सेक्टर के पार्क में नियमित तौर पर घूमते हुए दिख जाते थे.

यादों का पिटारा
उनकी यादों के पिटारे में बहुत कुछ था-विज्ञान से लेकर शिक्षा जगत और इंदिरा जी समेत तमाम शख्सियतों से जुड़ी हुई यादें. संयोग है कि उनके अच्छे मित्र वर्गीज कूरियन का भी आज जन्मदिन है. मुझको याद है कि उन्होंने एक भेंट में बताया था कि किस तरह कूरियन जब आणंद में अमूल को संभाल रहे थे तो उनके बीच संवाद बना रहता था.
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प्रो यशपाल बताते थे कि जब वह अहमदाबाद में थे तो किस तरह दूग्ध क्रांति जनक वीजे कूरियन और वह अच्छे दोस्त थे. किस तरह श्वेत क्रांति का सपना पूरा किया गया. ये भी बताते थे कि जब एशियाड होने वाला था, तो देश में टीवी ट्रांसमीटर्स का संजाल बिछाना था, इसे किस तरह कुछ महीनों में किया गया. किस तरह दूरदर्शन रंगीन हुआ. इंदिरा जी उनसे उपाय तलाशने को कहती थीं. वह खोज भी लाते थे.
एंकरिंग भी की
जब उन्हें यूजीसी का चेयरमैन बनाया गया तो टीवी के लिए विज्ञान से जुड़े रोचक शैक्षिक कार्यक्रम बनाने थे. इसके लिए श्याम बेनेगल से लेकर दूसरे लोगों की मदद ली गई. कुछ कार्यक्रमों की एंकरिंग भी की. मूल रूप से वह फिजिक्स और अंतरिक्ष से जुड़े वैज्ञानिक थे, लिहाजा देश की सेटेलाइट क्रांति में भी उनकी अपनी एक भूमिका थी. वह विज्ञान के पैरोकार थे तो भगवान को भी मानते थे. 24 जुलाई 2017 को 90 साल की उम्र में उनका कैंसर से निधन हो गया.
प्रोफेसर यशपाल के पास ढेरों किस्से थे. जिन्हें वो बातचीत में सुनाते भी थे. वो ऐसे शख्स थे, जो विज्ञान से लेकर शिक्षा तक के क्षेत्र में शीर्ष पर ही नहीं रहे बल्कि पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के साइंस सलाहकार भी बने.
घर में किताबों का अंबार
उनकी जिंदगी के आखिरी डेढ़-दो दशक नोएडा में बीते. उनका तीन बेड रूम का फ्लैट आमतौर पर सादगी लिए था. ड्राइंग रूम का सोफा, सेंटर टेबल भी किताबों-कागजों से अटी रहती थी. आलमारियों में हर तरफ कितनी ही तरह की किताबें.

प्रोफेसर यशपाल को किताबों और पढ़ने से बहुत प्यार था. उनके घर में जिधर देखो किताबें ही नजर आती थीं.
समय की बर्बादी उन्हें पसंद नहीं थी
जब साल 2012 में उन्होंने जवाहर लाल नेहरू विश्व विद्यालय के चांसलर पद का कार्यकाल खत्म किया तो भी सरकार की कई समितियों के साथ सक्रिय थे. किताब लिख रहे थे. रिसर्च करा रहे थे. व्याख्यान देने में बिजी रहते थे. उनके दिमाग में हमेशा कुछ न कुछ चल रहा होता था. आमतौर पर वो समय का पूरा उपयोग करने वाले शख्स थे.
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मोबाइल नापंसद था
प्रोफेसर यशपाल का घर हमेशा सबके लिए खुला रहता था. लैंडलाइन नंबर पर फोन करने पर वह खुद खुद उठाते थे. मोबाइल का इस्तेमाल पसंद नहीं था. वह आमतौर पर घर के दूसरे सदस्य के पास होता था. अगर घर से बाहर नहीं हैं तो तुरंत मिलने का समय दे देते थे. उनके पास हर उम्र के लोग आते थे. सबका मुस्कुराहट के साथ स्वागत. चूंकि बातें करना पसंद था, लिहाजा किसी को शायद कभी किसी को संवाद की दिक्कत हुई हो.
पड़ोसियों के लिए जिंदादिल इंसान
पड़ोसियों के लिए वह जिंदादिल इंसान थे. हमेशा हंसी ठट्ठा लगाने वाले. आखिरी कुछ समय में उनका घूमना बंद हो गया था. अन्यथा नोएडा के अपने सेक्टर के पार्क में नियमित तौर पर घूमते हुए दिख जाते थे.

यशपाल नोएडा के जिस सेक्टर में रहते थे, वो बहुत हरा-भरा और खुली हुई जगह थी. उन्हें अक्सर यहां े पार्क में घूमते देखा जा सकता था
यादों का पिटारा
उनकी यादों के पिटारे में बहुत कुछ था-विज्ञान से लेकर शिक्षा जगत और इंदिरा जी समेत तमाम शख्सियतों से जुड़ी हुई यादें. संयोग है कि उनके अच्छे मित्र वर्गीज कूरियन का भी आज जन्मदिन है. मुझको याद है कि उन्होंने एक भेंट में बताया था कि किस तरह कूरियन जब आणंद में अमूल को संभाल रहे थे तो उनके बीच संवाद बना रहता था.
ये भी पढे़ं -अपने लक्ष्य के पक्के थे देश में दूध की नदियां बहाने वाले कुरियन
प्रो यशपाल बताते थे कि जब वह अहमदाबाद में थे तो किस तरह दूग्ध क्रांति जनक वीजे कूरियन और वह अच्छे दोस्त थे. किस तरह श्वेत क्रांति का सपना पूरा किया गया. ये भी बताते थे कि जब एशियाड होने वाला था, तो देश में टीवी ट्रांसमीटर्स का संजाल बिछाना था, इसे किस तरह कुछ महीनों में किया गया. किस तरह दूरदर्शन रंगीन हुआ. इंदिरा जी उनसे उपाय तलाशने को कहती थीं. वह खोज भी लाते थे.
एंकरिंग भी की
जब उन्हें यूजीसी का चेयरमैन बनाया गया तो टीवी के लिए विज्ञान से जुड़े रोचक शैक्षिक कार्यक्रम बनाने थे. इसके लिए श्याम बेनेगल से लेकर दूसरे लोगों की मदद ली गई. कुछ कार्यक्रमों की एंकरिंग भी की. मूल रूप से वह फिजिक्स और अंतरिक्ष से जुड़े वैज्ञानिक थे, लिहाजा देश की सेटेलाइट क्रांति में भी उनकी अपनी एक भूमिका थी. वह विज्ञान के पैरोकार थे तो भगवान को भी मानते थे. 24 जुलाई 2017 को 90 साल की उम्र में उनका कैंसर से निधन हो गया.